हर वक्त दूसरों को खुश रखना संभव नहीं, जानें ऐसी स्थिति में क्या करें

आज हर कोई सामाजिक दबाव से जूझ रहा है। लोग क्या कहेंगे? और कई बार इसी ‘डर’ से हम कुछ नया नहीं कर पाते।

सोना की तबियत ठीक नहीं है और आज उसकी दोस्त सौम्या के भाई की शादी है। सोना का पति विनय उसे शादी में जाने के लिए मना कर रहा है, लेकिन सोना है कि कुछ सुन ही नहीं रही और बस बोले जा रही है कि “उसने बड़े प्यार से बुलाया है, मुझे जाना ही होगा, वरना उसे बुरा लगेगा।” विनय सोना को बोल रहा है कि “एक बार तुम सौम्या को अपनी स्थिति बता कर तो देखो, वह जरूर समझेगी।” आप भी कभी न कभी ऐसी स्थिति में जरूर फंसी होंगी। यह सच है कि हमें अपने आस-पास के लोगों की भावनाओं का ख्याल रखना चाहिए, लेकिन आपकी अपनी प्राथमिकताएं भी तो अहमियत रखती हैं, जिनको नजरअंदाज करके हमेशा ही दूसरों को खुश करना या रखना संभव नहीं है। तो ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए?

प्यार से इनकार

कुछ लोग सामाजिक दबाव में आकर दूसरों की हर बात बिना सोचे-समझे ही मान लेते हैं, लेकिन आप ऐसी गलती न करें। अगर खराब सेहत, बच्चों की परीक्षा या अन्य किसी वजह से आप अपने पारिवारिक या सामाजिक समारोह में जाने में असमर्थ हैं तो जिसने आपको आमंत्रित किया है, उसे प्यार से इनकार करें। उसे अपनी परेशानी बताएं। इससे उसे बुरा भी नहीं लगेगा और आपकी समस्या का समाधान भी हो जाएगा।

मन की उधेड़बुन

कुछ लोगों को बहुत ज्यादा सोचने की आदत होती है। कोई उनसे कुछ भी नहीं कहता, फिर भी वे यह सोचकर परेशान रहते हैं कि अगर मैंने ऐसा किया तो पता नहीं, वह व्यक्ति मेरे बारे में क्या कहेगा? ऐसी स्थिति में आप हमेशा खुद को ही दोषी समझने लगती हैं, जिस कारण आप बेवजह ही सामाजिक दबाव महसूस करती हैं और तनावग्रस्त रहती हैं। इसलिए खुद को हमेशा दोषी न मानें और इस आदत को छोड़ दें।

थोड़ा खुद का साथ

लोगों से मिलना-जुलना, बातचीत करना और पार्टियों में जाना आपके सामाजिक व्यवहार का जरूरी हिस्सा है। लेकिन कई बार व्यक्ति थोड़ा वक्त खुद को भी देना चाहता है, दोस्तों के साथ कहीं पिकनिक या आउटिंग पर जाने के बजाय कुछ पल अपने परिवार के साथ सुकून से बिताना चाहता है। इसमें कोई बुराई भी नहीं है, इसलिए अपने लिए भी थोड़ा समय जरूर निकालें।

दबाव की सीमा

अति किसी भी चीज की बुरी होती है। सामाजिक नियमों को पूरी तरह नकार देना या अपनी खुशियों को त्याग कर सामाजिक दबाव के भय में जीना, दोनों ही अति हैं और गलत हैं। इसलिए संयम के साथ संतुलित मार्ग पर चलें। अब सवाल है कि सामाजिक दबाव की सीमा कौन निर्धारित करेगा? इसके लिए व्यक्ति को स्वविवेक से तय करना चाहिए कि उसके लिए क्या जरूरी है और किन बातों की परवाह उसे नहीं करनी चाहिए।

मन का विश्वास कम न हो

समाजशास्त्री डॉ. ऋतु सारस्वत बताती हैं, हम सब सामाजिक प्राणी हैं और समाज से पूरी तरह कट कर नहीं रह सकते। ऐसे में सामाजिक दबाव को पूरी तरह अस्वीकारना असंभव है। अक्सर ही अत्यधिक सामाजिक दबाव में जीने वाले व्यक्ति का मन कुंठित हो जाता है, जिससे उसे चिंता, तनाव और अवसाद जैसी मनोवैज्ञानिक समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं। साथ ही उनका आत्मविश्वास कमजोर होता है और उन्हें हमेशा सामाजिक स्वीकृति की जरूरत महसूस होती है। ऐसे व्यक्तियों को अक्सर सामाजिक दबाव अधिक महसूस होता है। इसके विपरीत जो लोग आत्मविश्वासी होते हैं, वे सही-गलत की पहचान करके अपने लिए स्वयं उचित निर्णय लेते हैं। ध्यान रखें, व्यक्ति से ही समाज बनता है, इसलिए अपनी प्राथमिकताओं को पहचान कर बिना किसी दबाव के निर्णय लें।

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