यूपी: प्रत्याशियों के अहंकार और कार्यकर्ताओं की उपेक्षा से मिली भाजपा को हार

यूपी के लोकसभा चुनाव में मिली शिकस्त के कारणों की पड़ताल के लिए लखनऊ पहुंचे भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री संगठन बीएल संतोष ने शनिवार को पार्टी के पदाधिकारियों के साथ बैठक की। उन्होंने खुद कुछ नहीं कहा, सिर्फ सबकी सुनी। एक-एक करके सभी क्षेत्रीय प्रभारी और अध्यक्षों ने अपनी बात रखी। लोगों ने जनता में नाराजगी के बावजूद मौजूदा सांसदों को ही टिकट देने उनके अहंकार को हार का जिम्मेदार बताया। इसके अलावा जमीनी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा, थाना-तहसील पर अधिकारियों की अनदेखी, जनता का काम न करा पाना और संविधान बदलने व आरक्षण खत्म करने जैसे भ्रामक मुद्दे भी गिनाए।

बता दें कि लोकसभा चुनाव परिणाम से हैरान भाजपा अब हार के कारणों के तह तक समीक्षा करने में जुटी है। इसी कड़ी में प्रदेश संगठन ने हाल में ही दो दर्जन मंत्रियों और पदाधिकारियों की टीम बनाकर लोकसभावार समीक्षा कराई थी। इसी कड़ी में अब भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री बीएल संतोष दो दिवसीय दौरे पर शनिवार को लखनऊ पहुंचे हैं। पहले दिन उन्होंने सिर्फ क्षेत्रीय अध्यक्ष और क्षेत्रीय प्रभारियों को ही बैठक में बुलाया गया था। करीब दो घंटे तक चली बैठक में बीएल संतोष ने हार के कारणों के साथ ही लोकसभा चुनाव में दलितों और पिछड़ों के वोट बैंक के बंटने और भाजपा के वोट प्रतिशत के गिरने के कारणों को लेकर फीडबैक लिया।

बैठक में अधिकांश पदाधिकरियों ने बताया कि स्थानीय, जिला व क्षेत्रीय संगठन के फीडबैक के बाद भी तमाम सांसदों को टिकट दे दिया गया, जबकि उनके खिलाफ जनता में आक्रोश था। वहीं दुबारा टिकट पाकर तमाम प्रत्याशी प्रधानमंत्री मोदी के भरोसे बैठे रहे। वहीं, प्रत्याशी तो अपने अहम के कारण कार्यकर्ताओं को पूछा तक नहीं। इसलिए नाराज होकर कार्यकर्ता भी घर बैठ गया। प्रदेश संगठन और क्षेत्रीय, मंडल, जिला, तहसील और ब्लाक स्तरीय संगठन के बीच आपसी तालमेल का आभाव और प्रदेश के बड़े नेताओं द्वारा छोटे पदाधिकारियों की उपेक्षा भी चुनाव में हार की वजह बना। बैठक में प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी और महामंत्री संगठन धर्मपाल के अलावा अवध, काशी, कानपुर-बुंदेलखंड और ब्रज क्षेत्र के प्रभारियों और अध्यक्ष मौजूद थे।

विधायकों ने भी किया जमकर भिरतरघात
बैठक में बताया गया है कि तमाम सीटों पर विधायकों और प्रत्याशियों के बीच अंदरूनी घमासान भी हार की वजह बना। तमाम विधायक खुद चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन उनको टिकट नहीं मिला तो वह भी विपक्ष के साथ पार्टी प्रत्याशी को ही चुनाव हराने में जुट गए। वहीं, कुछ प्रत्याशी ऐसे भी रहे जिन्होंने विधायक व क्षेत्र के पुराने नेताओं की अनदेखी कर खुद के भरोसे चुनाव जीतने का अहम पाले हुए थे।

नौकरशाही की अनदेखी पर भी सवाल
बैठक में नौकरशाही के रैवेये का भी मुद्दा रखा गया। पदाधिकारियों ने संतोष को बताया कि थाना व तहसील स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार से भी जनता परेशान है। इससे भी लोगों में असंतोष है। जनता की शिकायतों का निस्तारण कराने वाले पार्टी पदाधिकारियों की भी कोई सुनवाई नहीं होती।

संविधान व आरक्षण के मुद्दे से भी नुकसान हुआ
पदाधिकारियों ने विपक्ष की ओर से उछाले गए संविधान और आरक्षण के मुद्दे को हार की प्रमुख वजहों में एक बताया। उनका कहना था कि भाजपा की ओर से 400 पार के नारे का उल्टा असर हुआ। विपक्ष दलित और पिछड़ों को यह समझाने में कामयाब रहा कि अगर भाजपा की सीटें 400 पार आ गई तो ये लोग संविधान बदल देंगे और आरक्षण खत्म कर देंगे।

बाहरी लोगों को शामिल करने से भी बिगड़ा मामला
बैठक में बाहरी लोगों की भाजपा में बंपर भर्ती को लेकर मामला बिगड़ने की बात रखी गई। बताया गया कि बिना हानि-लाभ का आकलन किए 1.90 लाख से अधिक लोगों को शामिल करा दिया गया, लेकिन उनका पार्टी को फायदा मिलने के बजाए नुकसान ही हुआ है। इसमें तमाम ऐसे लोगों को शामिल कर लिया गया जो भाजपा के कॉडर कार्यकर्ताओं के विरोधी रहे हैं।

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