योद्धाओं ही नहीं, मतदाताओं के भी बदले पाले; महराष्ट्र में गुटों में बंटे नजर आए समर्थक
इस लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र जैसी असमंजस की स्थिति शायद किसी अन्य राज्य में नहीं हुई होगी, क्योंकि शिवसेना एवं राकांपा इस बार टूटकर दो भागों में बंट चुकी हैं। दोनों दलों के दोनों गुट आमने-सामने चुनाव लड़ते नजर आ रहे हैं।
दलों में टूट के बाद उनके समर्थक भी बंटे नजर आए। उनके समर्थकों में अपना सांसद चुनने का असमंजस अंत तक बना रहा। महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा का गठबंधन करीब 40 वर्ष पुराना था। तब से अब तक दोनों दल लोकसभा चुनाव साथ-साथ लड़ते आ रहे थे, लेकिन इस बार शिवसेना-भाजपा तो अलग हो ही गए, शिवसेना भी दो भागों में बंट गई।
अलग-अलग गठबंधन में शामिल गुट
शिवसेना से अलग हो चुके एकनाथ शिंदे गुट ने भाजपा संग गठबंधन कर चुनाव लड़ा तो शिवसेना (यूबीटी) कांग्रेस और राकांपा (शपा) के साथ महाविकास आघाड़ी का हिस्सा बनकर चुनाव लड़ी। दूसरी ओर शिवसेना की तरह ही शरद पवार की राकांपा को भी करीब एक साल पहले टूट का सामना करना पड़ा।
उनके भतीजे अजीत पवार पार्टी के दो तिहाई से अधिक विधायकों को लेकर अलग हो गए थे। चुनाव आयोग ने उनके गुट को ही असली राकांपा की मान्यता दे दी। वह भाजपा एवं शिवसेना (शिंदे) के साथ राजग का हिस्सा बनकर चुनाव लड़े। टूट का परिणाम यह हुआ कि उनके समर्थक भी आपस में बंटे नजर आए।
बंटे मतदाता
इसका प्रत्यक्ष उदाहरण शरद पवार के गढ़ कहे जाने वाले बारामती संसदीय क्षेत्र में दिखाई दिया। वहां शरद पवार की पुत्री सुप्रिया सुले का मुकाबला अजीत पवार की पत्नी सुनेत्रा पवार से था। बारामती के करीब-करीब हर परिवार में दो गुट नजर आए। बुजुर्ग मतदाताओं का झुकाव शरद पवार की ओर रहा, तो युवा वर्ग अजीत पवार के साथ खड़ा दिखाई दिया।
शरद पवार और उद्धव ठाकरे जैसे नेता अपनी पार्टियों में टूट का ठीकरा क्रमशः अजीत पवार एवं एकनाथ शिंदे के अलावा भाजपा पर भी फोड़ते दिखाई दिए। उद्धव ठाकरे, एकनाथ शिंदे को गद्दार बताकर पुराने शिवसैनिकों की सहानुभूति हासिल करने का प्रयास करते रहे, तो शरद पवार अपने बुजुर्ग होने का वास्ता देते नजर आए।
मराठा आरक्षण भी रहा मुद्दा
महाराष्ट्र में इसके अलावा मराठा आरक्षण का मुद्दा भी चुनाव में बड़ी भूमिका अदा करता दिखाई दिया। कुछ माह से मराठा समाज को कुनबी का दर्जा देकर ओबीसी कोटे में आरक्षण की मांग कर रहे मनोज जरांगे पाटिल ने मराठा समाज से परोक्ष आह्वान किया था कि वह उनकी मांग का विरोध करने वालों को हराएं।
जरांगे पाटिल का यह ‘फतवा’ कितना असर दिखाएगा, कहा नहीं जा सकता। उत्तर महाराष्ट्र की कुछ लोकसभा सीटों पर प्याज निर्यात पर प्रतिबंध भी एक बड़ा मुद्दा बना रहा। केंद्र सरकार ने पूरे देश में प्याज की कीमतों पर नियंत्रण रखने के लिए प्याज निर्यात पर प्रतिबंध लगाया था। इसका असर नासिक के आसपास की कुछ सीटों पर दिखाई दे सकता है।