‘चमड़ी जाए दमड़ी न जाए’ में क्या है ये ‘दमड़ी’?

कहावतें और लोकोक्तियां हमारी ज़िंदगी का अहम हिस्सा हैं. हर चौथी-पांचवीं बात पर बड़े-बुजुर्गों को आपने या तो स्थानीय लोकोक्तियां या फिर मुहावरे और कहावतें कहते सुना होगा. ये कहावतें भी हमारी रोज़ की ज़िंदगी से जुड़ी हुई होती हैं और इनका कुछ न कुछ इतिहास होता ही है. आज एक ऐसी ही कहावत पर हम बात करेंगे, जिसे लोग खूब इस्तेमाल करते हैं.

कुछ लोकप्रिय कहावतों की बात करें, तो उनमें ‘चमड़ी जाए दमड़ी न जाए’ वाली कहावत हम सबने सुनी है. कई बार तो ये इस्तेमाल भी की होगी लेकिन क्या आपको पता है कि इस कहावत में ‘दमड़ी’ का मतलब क्या है? हो सकता है कि कुछ लोगों को इसका मतलब पता हो लेकिन बहुत से लोग ऐसे हैं, जिन्हें आइडिया ही नहीं है दमड़ी क्या होती है?

‘चमड़ी जाए दमड़ी न जाए’ में क्या है ‘दमड़ी’?
गांवों और शहरों में दो कौड़ी की औकात, दो कौड़ी की बात जैसे जुमले खूब सुनने में आते हैं. इसका मतलब होता है, जिसकी कोई वैल्यू न हो. फिर दमड़ी क्या है, जिसे चमड़ी से भी ज्यादा वैल्यू वाला बताया जाता है. दरअसल दमड़ी भी कौड़ी की तरह ही पुराने ज़माने में पैसे-रुपये की इकाई होती थी. पुराने जमाने में रुपये की कैटेगरी देखें तो यह फूटी कौड़ी से शुरू होता था. फूटी कौड़ी से कौड़ी और कौड़ी से दमड़ी बनता था. जब ये कहावत बनी होगी, तो दमड़ी चलन में रही होगी और इसकी वैल्यू भी आर्थिक व्यवस्था में ठीक-ठाक होगी. यही वजह है कि चमड़ी यानि खुद को नुकसान होने पर भी जेब से दमड़ी यानि पैसा न निकलने की ये कहावत बनी, जो कंजूस शख्स के लिए इस्तेमाल होती है.

इसे भी जान लीजिए…
दमड़ी की कहानी तो आपने जान ली, अब ये भी जान लीजिए कि दमड़ी के बाद धेला और धेले से पाई/पैसा बनता था. इसके बाद पैसे का बड़ा रूप आना होता था. आना फिर रुपये में बदल जाता था. चवन्नी-अठन्नी आज भी कहा जाता है, ये 25 और 50 पैसा थे, जिन्हें 4 आना और 8 आना से आंका जाता था.

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