बच्चे को खिलाड़ी बनाना आसान नहीं, हर अभिभावक को इन बातों का रखना चाहिए ध्यान
अगर आप अपने बच्चे को एक खिलाड़ी की तरह उभरता हुआ देखना चाहती हैं, तो कुछ बातों का ध्यान आपको रखना होगा और कुछ बातों का उसे। यदि आपके बच्चे की रुचि खेल में है। वह भिन्न-भिन्न खेलों में हिस्सा लेता है तो आप खुशनसीब हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि आजकल अधिकतर बच्चे मोबाइल में ही अपना वक्त बिताना पसंद करते हैं। इनडोर गेम्स में जहां चोट लगने का खतरा कम होता है। वहीं आउटडोर गेम्स में ये खतरा काफी बढ़ जाता है। ऐसे में एक मां होने के नाते आपको अपने इन खिलाड़ी बच्चों का विशेष ध्यान रखना होगा। ताकि वह स्वस्थ रहें, मस्त रहें, आगे बढ़े और एक अच्छा स्पोर्ट्स स्टार बने।
ट्रेनर हो प्रशिक्षित
आप अपने बच्चे के लिए ऐसे कोच या ट्रेनर का चुनाव करें, जो कि प्रशिक्षित हो। वह अच्छी तरह से अपनी जिम्मेदारियों को निभाने वाला और बच्चे को सुरक्षित रख सकने वाला हो। खेल के दौरान बच्चे को कई बार छोटी तो कई बार बड़ी और गंभीर चोट लग जाती है। इस स्थिति में परिवार वाले घबरा जाते हैं कि वह ठीक है या नहीं, उसे डॉक्टर की जरूरत है या नहीं। ऐसे में इन सवालों को जवाब आपको तभी सही मिल पाएगा, जब आप उनका ट्रेनर चोट की स्थिति को समझने वाला हो। इसलिए बच्चों के ट्रेनर का चुनाव सोच-विचार कर ही करें।
प्राथमिक चिकित्सा
‘बच्चा खेलेगा तो गिरेगा भी!’ ये बात भी सही है। उसे खेल के दौरान मोच और चोट लगना भी स्वाभाविक है। लेकिन चोट से बचा कैसे जाए, खासकर गंभीर चोट से। वहीं यदि चोट लग जाए तो तत्काल उसका इलाज कैसे हो इसका आपको ध्यान रखना होगा। आपको ध्यान देना होगा कि उन्हें कोई भी चोट इतनी गंभीर न पहुंचे, जिससे उन्हें अधिक नुकसान हो और उसका खेलना ही छूट जाए। इसलिए जरूरी है कि बच्चे को समझाया जाए। उसे बताया जाए कि वह खेल-खेल में ऐसे कोई भी जोखिम न उठाए, जिससे उसे आगे परेशानी हो। उन्हें खेल को सुरक्षात्मक तरीके और छोटी-मोटी चोट लगने पर तत्काल उपचार के तरीके बताएं। साथ ही आप बच्चे के बैग में भी प्राथमिक चिकित्सा की सामग्री जरूर रखें।
सेफ्टी गार्ड जरूरी
खेलों में हड्डी से जुड़ी परेशानियां होना भी आम है। खासकर क्रिकेट, हॉकी, फुटबॉल और जिम्नास्टिक जैसे खेलों में। इसलिए आपको अपने बच्चों को उनके खेलों के अनुसार पूरी सेफ्टी किट मुहैया करवानी चाहिए, ताकि वह इन परेशानियों से बच सकें।
आत्मजागरूकता
बच्चों में आत्म-जागरूकता की भावना का विकास करना भी जरूरी है। ताकि वह सहजता से अपनी कमजोरियों और ताकत को पहचाने और उसे स्वीकार करें। उन्हें कब खुद पर नियंत्रण रखना है और कब दूसरों से मदद लेनी है, सिखाएं। वहीं कई बार बच्चे अपनी चोट को सामान्य समझकर अनदेखा कर देते हैं, जिनसे उन्हें बाद में परेशानी हो सकती है। इसलिए उन्हें ऐसा करने से रोकें। इस तरह उन में आत्म-जागरूकता के साथ दूरदर्शिता की शक्ति पैदा होने लगती है।
स्पोर्ट्स बैग में फर्स्ट-एड बॉक्स
जवाहर लाल नेहरू अस्पताल, इंदौर के वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. ओ.पी. गोयल कहते हैं, बच्चों को खेल के दौरान चोट लगना स्वाभाविक है। इसे रोका या टाला नहीं जा सकता। लेकिन जरूरी है कि समय रहते इसका इलाज किया जाए, ताकि चोट, मोच या मांसपेशियों का खिंचाव गंभीर स्थिति तक न पहुंचे। बच्चों की आदत होती है कि वे खेल के दौरान लगी चोट को छुपाते हैं, इससे स्थिति ज्यादा बिगड़ सकती है। आप बच्चों को पहले ही बताए कि मैदान में खेल के दौरान कुछ भी हो तो घर आकर बताएं। साथ ही अपने स्पोर्ट्स टीचर को भी इसकी जानकारी दें। आप आउटडोर खेलों से जुड़े बच्चों के स्पोर्ट्स बैग में एक छोटा फर्स्ट-एड बॉक्स रखें, जिसमें प्राथमिक उपचार से जुड़ी सभी चीजें हो।