दमोह: ब्रिटिशकालीन हॉकगंज बरंडा शॉपिंग मॉल निर्माण की खुदाई के दौरान गिरा

दमोह शहर की प्राचीन ब्रिटिशकालीन इमारत हॉकगंज बरंडा का एक द्वार शनिवाररात करीब 10 बजे शॉपिंग मॉल निर्माण की खुदाई के दौरान ढह गया। इसका मलबा खुदाई कर रही पोकलेन मशीन पर जा गिरा। कई लोगों के दबे होने की आशंका होने से अफरातफली का माहौल बन गया। तत्काल जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन के साथ एसडीआरएफ की टीम मौके पर पहुंची। मलबे के नीचे दबे दो लोगों को बाहर निकाल कर इलाज के लिए जिला अस्पताल लाया गया।

जानकारी के अनुसार हाकगंज बरंडा के सामने वाले गेट के बाजू से किसी सोनू नामक व्यक्ति द्वारा अपने मकान का निर्माण कार्य किया जा रहा है। इसके चलते उसके द्वारा बरंडा के आसपास के क्षेत्र की पोकलेन मशीन से खुदाई कराई गई है। यह काम रात में भी चल रहा था। इसी दौरान रात 10 बजे बरंडा का एक साइड का सामने के गेट का हिस्सा ढह गया और खुदाई कर रही पोकलेन मशीन पर जा गिरा और मशीन मलवे में दब गई। पोकलेन मशीन चालक जितेंद्र पिता बहादुर लोधी (22) व परिचालक सुनील पिता सत्यमान लोधी (18) दोनों निवासी हरईया थाना कैमोर जिला कटनी दोनों मलबे में दबकर घायल हो गए। दोनों को निकालकर इलाज के लिए जिला अस्पताल लाया गया।

चालक जितेंद्र को सिर व पैर में गंभीर चोट आने पर इलाज जारी है वहीं परिचालक भी घायल है। मौके पर पुलिस प्रशासन पहुंचा और जेसीबी मशीन बुलाकर बरंडा का मलबा निकलवाया और चेक कराया गया कि कोई और व्यक्ति दबा तो नहीं है। कलेक्टर सुधीर कुमार कोचर का कहना है कि अधिकारियों को मौके पर भेजा गया था, जो व्यक्ति मलबे में दबे थे वे सुरक्षित हैं। इसकी अगले 48 घंटे में जांच होगी। दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। घटना स्थल के आसपास किसी भी प्रकार के निर्माण कार्य पर तत्काल प्रभाव से अनिश्चित काल के लिए रोक लगाई जा रही है। एसपी श्रुत कीर्ति सोमवंशी ने बताया कि हॉकगंज बरंडा का एक हिस्सा गिरने से दो लोग दबे थे, जिन्हे इलाज के लिए अस्पताल भेज दिया है मामले की जांच की जा रही है।

बरंडा में कभी लगता था कमिश्नर कार्यालय
शहर के गांधी चौक के पास स्थित हॉकगंज बरंडा में ऊंची-ऊंची पत्थरों की तीन इमारतें बनी हैं। इसका निर्माण अंग्रेजी शासन काल में किया गया था। 1861 में मध्य प्रांत का गठन हुआ, उस समय दमोह को जिला बनाया गया। उसी दौरान कमिश्नर हॉक ने दमोह में पत्थरों की तीन अलग-अलग इमारतें बनाई थीं जो तीन ओर से आपस में जुड़ी हुई थीं। जिनमें कमिश्नर बैठते थे। हॉक कमिश्नर द्वारा इन्हें बनवाने के कारण ही यहां का नाम हॉकगंज रखा गया था।

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