क्यों की जाती है बासे भोजन के साथ शीतला माता की पूजा

images (9)एजेन्सी/यदि देखा जाये तो भारतीय हिन्दू संस्कृति में किये जाने वाले विधि विधान या सिधांत कई प्रकार से वैज्ञानिक सिधान्तो पर भी खरे उतरे है जैसे अभी कुछ ही दिनों पश्चात सहेली सप्तमी या इसे शीतला सप्तमी भी कहते है आने वाली है रीती रिवाजो के चलते इस दिन सभी के यहाँ बासा भोजन ही उपयोग में लाया जाता है अत: इस व्रत को बसौड़ा, बसियौरा व बसोरा भी कहते हैं। आइये जानते है क्यों की जाती है इस दिन बासे भोजन के साथ माता की पूजन और क्यों उपयोग में लाया जाता है एक दिन पहले बना हुआ भोजन।  चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी को शीतल सप्तमी कहते हैं। इस दिन शीतला माता के निमित्त व्रत करने का विधान है। धर्मशास्त्र में बासे भोजन को त्याज्य यानी त्यागने योग्य कहा गया है। यह तामसी होने से बुद्धि को मंद करने वाला होता है। लेकिन यह कुछ विशेष परिस्थितयों में यह औषधि कार्य करता है। इस दिन शीतला देवी की पूजा तथा व्रत किया जाता है। दरअसल शीतला सप्तमी-अष्टमी बासा भोजन करने से रक्त के दबाव यानी ब्लड प्रेशर पर नियंत्रण होता है। जिससे रोगी को आराम मिलता है। भगवती शीतला की पूजा का विधान बहुत ही विशिष्ट है क्योंकि शीतला सप्तमी के दिन उन्हें बासी भोजन का भोग लगाया जाता है।यही वजह है कि संपूर्ण उत्तर भारत में शीतलाष्टमी को बसौड़ा के नाम से भी जाना जाता है। किसी त्योहार पर बासी खाने की परंपरा थोड़ी चौंकाती है लेकिन इसके पीछे तर्क यह है कि इस समय से वसंत की विदाई होती है और ग्रीष्म का आगमन होता है और इसलिए अब यहां से आगे बासी भोजन से परहेज करना चाहिए। तथा इस त्यौहार के पीछे कई पौराणिक कथाए भी है जो इसे मानाने का कारण हमारे सामने प्रस्तुत करती है

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button