जम्मू-कश्मीर में पांच साल बाद दिसंबर और जनवरी के 45 दिन निकल गए सूखे

जम्मू-कश्मीर में पांच साल बाद दिसंबर और जनवरी के 45 दिन सूखे निकल गए। घाटी में 40 दिन का चिल्ले कलां भी आधा शुष्क बीत गया है। सर्दी के इस मौसम में न बारिश हुई है और न बर्फबारी। विशेषज्ञों के अनुसार, इसका असर पारिस्थितिकी तंत्र, कृषि और आजीविका पर पड़ सकता है। हिमपात न होने से घाटी के जल निकायों में जलस्तर कम हो सकता है। इससे गर्मियों में पानी की किल्लत गहरा सकती है। मौसम विभाग के अनुसार 15 जनवरी तक मौसम शुष्क रहने के आसार हैं। मौसम विभाग के निदेशक डॉ. मुख्तार अहमद ने कहा कि ऐसा सूखा दौर पहले भी देखा गया है। 2022 में दिसंबर बिना किसी बारिश के गुजर गया, जबकि 2018 में भी दिसंबर और जनवरी में बारिश नहीं हुई थी।
ग्लेशियर विशेषज्ञ एवं जलवायु परिवर्तन शोधकर्ता प्रो. शकील अहमद रोमशू के अनुसार, इस सर्दी के सीजन में औसत से कम बर्फबारी और शरद ऋतु लंबे समय तक शुष्क रहना चिंताजनक है। इससे गर्मियों में पानी की कमी हो सकती है। हालांकि फरवरी, मार्च और अप्रैल में बर्फबारी या बारिश की भविष्यवाणी करना जल्दबाजी होगी। आम तौर पर इस महीनों में 40 फीसदी तक बारिश व बर्फबारी होती है। यदि शुष्क मौसम फरवरी तक रहा तो गर्मियों में जल निकायों पर इसका काफी प्रभाव पड़ेगा।
जल निकायों को सहेजने के लिए स्थानीय स्तर पर सहयोग जरूरी
एसपी कॉलेज श्रीनगर के पर्यावरण विज्ञान के सहायक प्रोफेसर डॉ. सुहैब अहमद बंद का कहना है कि कश्मीर के जल निकायों पर लंबे समय तक शुष्क मौसम का प्रभाव पर्यावरणीय चिंताएं बढ़ा रहा है। झीलों और नदियों के लिए प्रसिद्ध कश्मीर शुष्क मौसम के कारण काफी प्रभावित हुआ है। कम वर्षा और तेज वाष्पीकरण दर के कारण सभी जल निकायों में जलस्तर में आ सकती है, जिससे पारिस्थितिकी संतुलन बिगड़ेगा। बारिश और बर्फबारी पर निर्भर वनस्पतियों और वन्यजीवों पर खतरा बढ़ेगा। कृषि पर भी असर पड़ेगा। डल जैसी ऐतिहासिक झीलों के सिकुड़ने का असर पर्यटन और स्थानीय अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है। इन चिंताओं को दूर करने के लिए सतत जल प्रबंधन दृष्टिकोण, प्रभावी सिंचाई तकनीक और संरक्षण उपाय महत्वपूर्ण हैं। बदलते जलवायु रुझान के सामने कश्मीर के जल निकायों का लचीलापन सुनिश्चित करने के लिए क्षेत्रीय और स्थानीय स्तर पर सहयोगात्मक प्रयासों की जरूरत है।
नदी नालों और झीलों में जलस्तर गिरने का संकट
जम्मू-कश्मीर के उच्च शिक्षा विभाग में पर्यावरण विज्ञान के व्याख्याता डॉ. आमिर हुसैन भट ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में लंबे समय तक शुष्क अवधि के दौरान कम वर्षा से नदियों, झीलों और नालों में जलस्तर घटेगा। यह कमी न केवल जलीय पारिस्थितिक तंत्र को खतरे में डालेगी, बल्कि स्थानीय निवासियों के लिए प्राथमिक आजीविका कृषि पर भी गंभीर बाधा डाल सकती है। डॉ. भट ने कहा कि जल निकायों के सूखने से सिंचाई क्षमताएं कम हो जाती हैं, जिससे फसल पैदावार और समग्र कृषि उत्पादकता प्रभावित होती है। जलजनित बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है। स्कॉस्ट श्रीनगर के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. तारिक रसूल के मुताबिक सर्दियों के दौरान बर्फबारी न केवल गर्मियों के आखिरी दिनों में बारिश के स्रोत के रूप में काम करती है, बल्कि यह भूजल को भी रिचार्ज करती है। इसलिए शुष्क सर्दी निश्चित रूप से गर्मियों के दौरान जलस्तर को प्रभावित कर सकती है।