कानपुर: पहली वंदे भारत के मुकाबले दूसरी में 30 प्रतिशत बुकिंग ज्यादा

दिल्ली से बनारस के बीच शुरू हुई दूसरी वंदे भारत एक्सप्रेस के चलने के तीसरे दिन ही वेटिंग दिखने लगी है। इस ट्रेन ने पहली वंदे भारत एक्सप्रेस से ज्यादा जल्दी यात्रियों का भरोसा जीता है। पहली वंदे भारत एक्सप्रेस के चलने के दो से तीन महीने तक 20 से 30 प्रतिशत सीटें खाली रह जाती थीं।

पहली वंदे भारत एक्सप्रेस देश की पहली वंदे भारत थी, जिसे ट्रेन-18 का नाम दिया गया था। अत्याधुनिक सुविधाओं और तकनीकी से लैस होने की वजह से इस ट्रेन को अपनाने में यात्रियों को समय लगा। हालांकि चार साल में लोग वंदे भारत के इस कदर मुरीद हुए कि दूसरी वंदे भारत को यात्रियों ने हाथोंहाथ लिया। वंदे भारत एक्सप्रेस के सुबह-शाम के शेड्यूल ने यात्रियों को आकर्षित किया है।

यह है वंदे भारत एक्सप्रेस में सीटों का हाल
रिकॉर्ड के मुताबिक 15 फरवरी 2019 में शुरू हुई पहली वंदे भारत एक्सप्रेस में चलने के एक सप्ताह तक रोजाना इस ट्रेन में 100 से 150 सीटें खाली रहती थीं। अगले दिन या तीसरे दिन रिजर्वेशन कराना हो तो भी इस ट्रेन में छह महीने तक सीटें आसानी से मिल जाती थीं। हालांकि अब दिल्ली से आने वाली पुरानी वंदे भारत एक्सप्रेस 22436 में अगले एक सप्ताह तक 27 दिसंबर तक 132 तक लंबी वेटिंग है। दिल्ली जाने वाली 22436 वंदे भारत एक्सप्रेस में 74 तक लंबी वेटिंग है।

नई नवेली वंदे भारत में 24 तक सीटें नहीं
नई नवेली वंदे भारत एक्सप्रेस अपने शेड्यूल की वजह से यात्रियों की पहली पसंद बन गई है। सिर्फ दो दिनों के संचालन में ही वेटिंग शुरू होने से रेलवे भी उत्साहित है। दरअसल, यह ट्रेन रात में बनारस और दोपहर में दिल्ली पहुंचा रही है। खासकर काम निपटाने के बाद काशी जाने वालों की मांग अधिक है। काशी जाने वाली नई वंदे भारत एक्सप्रेस 22416 में 24 दिसंबर तक सीटें नहीं हैं। वहीं, दिल्ली जाने वाली वंदे भारत एक्सप्रेस में अगले एक सप्ताह 24, 27 और 28 दिसंबर को ही सीटें मिल सकती हैं।

अन्य प्रीमियम ट्रेनों में वंदे भारत ने मारी बाजी
कानपुर से होकर चलने वाली प्रीमियम ट्रेनों में वंदे भारत एक्सप्रेस ने बाजी मारी है। वंदे भारत एक्सप्रेस को दिल्ली जाने और आने में अगर कोई ट्रेन टक्कर दे रही है, तो वह लखनऊ से चलने वाली स्वर्ण शताब्दी एक्सप्रेस है। इस ट्रेन में अभी अगले एक सप्ताह तक सीटें नहीं मिलेंगी। हालांकि इस ट्रेन की बुकिंग की सबसे बड़ी वजह है कि लखनऊ से दिल्ली तक कोई वंदे भारत नहीं है। यह ट्रेन लखनऊ के यात्रियों की सालों से पहली पसंद बनी है। वंदे भारत तेजस, रिवर्स शताब्दी से आगे है।

लखनऊ से दिल्ली वाया कानपुर सेंट्रल जाने वाली पहली कारपोरेट ट्रेन तेजस एक्सप्रेस में रोजाना सीटें खाली हैं। 22 दिसंबर से लेकर अगली तारीखों में 200 से 400 तक सीटें खाली हैं। दिल्ली से आने के लिए 22 और 23 दिसंबर को छोड़कर अगली तारीखों में 200 से साढ़े चार सौ तक सीटें खाली हैं।

कानपुर रिवर्स शताब्दी 12033 में भी 22 दिसंबर को छोड़कर संचालन वाली तिथियों में दिल्ली जाने और आने में सीटें 150 से 500 तक सीटें तक खाली हैं। हालांकि लखनऊ-दिल्ली स्वर्ण शताब्दी में अगले 15 दिनों में किसी भी दिन सीटें खाली नहीं हैं। यही हाल इस ट्रेन में दिल्ली से आने वाली शताब्दी का है।

यात्रियों से बातचीत
पहले दोपहर में दिल्ली से आने के लिए सिर्फ रिवर्स शताब्दी और तेजस एक्सप्रेस चेयरकार प्रीमियम ट्रेनें थीं। अब दिन में तीन बजे दिल्ली से बैठकर शाम सात बजे कानपुर आ जाते हैं। -कृष यादव, यात्री
वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेन में बैठकर सफर करना वीआईपी एहसास दिलाता है। दूसरी ट्रेनों की अपेक्षा इसमें बैठने में ज्यादा जगह होने से थकान नहीं होती है। लंबा सफर भी आसान लगता है। -हर्षित मिश्रा, यात्री
हर प्रीमियम ट्रेन का एक क्लास है, जो उसमें सफर करता है। यात्रियों के मनमाफिक शेड्यूल इसमें बड़ी वजह होता है। वंदे भारत एक्सप्रेस देश की सबसे आधुनिक ट्रेन होने की वजह से इसमें सफर करने की लोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। -हिमांशु शेखर उपाध्याय, सीपीआरओ, एनसीआर

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