बर्खास्त और निलंबन में क्या अंतर है? सरकारी नौकरी में डरावने माने जाते हैं ये शब्द!

भारत में सरकारी नौकरी के क्रेज से भला कौन अनजान है. यहां कर शख्स की चाहत होती है कि उसकी सरकारी नौकरी लग जाए. आखिर ऐसी चाहत हो भी क्यों ना? सरकारी नौकरी में जितनी सुविधाएं होती हैं, उससे ज्यादा होती है इज्जत. अगर किसी की सरकारी नौकरी लग जाए, तो समझ लीजिये कि उसने तो जैकपोट ही जीत लिया. लेकिन इस नौकरी में ऐसे कुछ शब्द हैं, जो काले साए की तरह होते हैं. इसी में निलंबन और बर्खास्त शामिल है.
आपने निलंबन और बर्खास्त शब्द कई बार सुना होगा. इनके इस्तेमाल के बाद शख्स को उसकी नौकरी से छुट्टी मिल जाती है लेकिन इज्जत के साथ नहीं. हालांकि, इन दो शब्दों के बीच काफी बड़ा डिफ़रेंस भी है. उनके मतलब अलग होते हैं और इसका प्रभाव भी अलग होता है. आज हम आपको इन्हीं दो शब्दों के बीच का डिफ़रेंस बताने जा रहे हैं.
बर्खास्त यानी परमानेंट छुट्टी
अगर सरकारी नौकरी में किसी को बर्खास्त कर दिया गया है, यानी अब वो कभी कोई दूसरी सरकारी नौकरी नहीं कर सकता. इसे अंग्रेजी में डिसमिस करना कहा जाता है. जब कोई कर्मचारी किसी ऐसे कार्य में सम्मिलित पाया जाता है जो नियमों को ताक पर रख दे या जिससे काफी बड़ा नुकसान हो जाए, तब उस कर्मचारी को तत्काल बर्खास्त कर दिया जाता है. उसकी करेंट जॉब तो चली ही जाती है. साथ ही आगे वो किसी अन्य सरकारी नौकरी के काबिल नहीं रह जाता.
निलंबन में होता है स्कोप
वहीं निलंबन शब्द में फिर भी कर्मचारी के लिए थोड़े चांसेस होते हैं. जब कोई कर्मचारी किसी ऐसे कार्य में संलग्न पाया जाता है जो उसकी जॉब की प्रतिष्ठा के खिलाफ हो, तब उसे निलंबित कर दिया जाता है. इस दौरान कर्मचारी पर जांच कमिटी बैठाई जाती है. वो सबूतों के साथ छेड़छाड़ ना करे, इस वजह से उसके ऑफिस आने पर रोक लगा दी जाती है. इसे अंग्रेजी में सस्पेंड करना कहते हैं. इस दौरान कर्मचारी को आधी सैलरी मिलती है. अगर जांच में वो निर्दोष निकलता है तो उसकी नौकरी फिर से बहाल कर दी जाती है. लेकिन अगर आरोप सही पाए जाते हैं तो फिर वो बर्खास्त कर दिया जाता है.