‘बोलने की आजादी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की भी है एक सीमा’, बॉम्बे हाईकोर्ट ने की अहम टिप्पणी

बॉम्बे हाईकोर्ट ने बोलने की आजादी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर बड़ी टिप्पणी की है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने बोलने की आजादी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दायरे से बाहर जाकर नहीं किया जा सकता। अगर ऐसा होता है तो इसके परिणाम विनाशकारी हो सकते हैं।

कंपनी ने कर्मचारी को नौकरी से निकाला था
न्यायमूर्ति मिलिंद जाधव की एकल पीठ ने मंगलवार को ऑटो पार्ट्स निर्माण कंपनी हिताची एस्टेमो के एक कर्मचारी की सेवा समाप्त करने को बरकरार रखते हुए यह टिप्पणी की। बता दें कि कर्मचारी ने कंपनी के खिलाफ सोशल मीडिया पर टिप्पणी की थी, जिसके बाद उसे नौकरी से निकाल दिया गया था।

श्रम अदालत के फैसले को दी थी चुनौती
हालांकि, कंपनी ने हिताची के खिलाफ भड़काऊ पोस्ट करने के लिए कर्मचारी की बर्खास्तगी को रद्द करने के श्रम अदालत के आदेश को बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। जज जाधव ने आदेश में कहा कि ये पोस्ट नफरत भड़काने के इरादे से कंपनी के खिलाफ किए गए थे।

कड़ा संदेश देने की जरूरत- हाईकोर्ट
अदालत ने कहा कि ऐसे कृत्यों के खिलाफ एक कड़ा संदेश देने की जरूरत है। अदालत ने कहा कि इस तरह के कृत्यों को खत्म कर देना चाहिए। पीठ ने अपने आदेश में कहा कि बोलने की आजादी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दायरे से बाहर जाकर करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। अगर इसकी अनुमति दी गई तो इसके विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं।

कर्मचारी की पहचान होती है अनुशासनहीनता- हाईकोर्ट
कोर्ट ने कहा कि अनुशासनहीनता किसी भी कर्मचारी की पहचान होती है, जब उसे खुद को एक श्रमिक के रूप में व्यवहार करने की आवश्यकता होती है। अदालत ने कहा कि हर व्यक्ति के पास 24 घंटे मोबाइल फोन रहता है। मोबाइल फोन के जरिए फेसबुक अकाउंट तक पहुंच अधिक आसानी से हो जाती है। हिताची ने दावा किया था कि कर्मचारी ने वेतन समझौता विवाद के दौरान अपने फेसबुक अकाउंट पर दो पोस्ट डाले थे, जो विवादित थे।

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