तारा सिंह के बाद अब तेजस का मिशन पाकिस्तान, देखिये कंगना रणौत का करिश्मा

कंगना रणौत की फिल्म आ रही है। सिर्फ ये एक लाइन किसी भी दर्शक या समीक्षक को उत्साहित करने के लिए काफी है। उनके प्रशंसक और उनके आलोचक दोनों उनकी फिल्मों का इंतजार करते हैं। इससे एक बात तो ये बिल्कुल साफ है कि किसी फिल्म के लिए उत्सुकता जगाने के लिए हिंदी सिनेमा के जिन गिने चुने सितारों का बस नाम ही काफी होता है, उसमें कंगना भी शुमार हैं। मुझे याद है कंगना की फिल्म ‘वो लम्हे’ की रिलीज से पहले की वह स्क्रीनिंग जिसके लिए इसके निर्देशक मोहित सूरी के न्यौते पर मैं दिल्ली से खासतौर पर मुंबई पहुंचा। फिल्म के बाद इसके निर्माता महेश भट्ट से लंबी बात हुई और तब मैंने उनसे एक ही बात कही थी कि इस अभिनेत्री के भीतर आत्मविश्वास गजब का है। उस बात को कोई 16 साल हो गए। कंगना की नई फिल्म ‘तेजस’ की कहानी भी जिन दो समय रेखाओं पर साथ साथ चलती आगे बढ़ती है, उनमें 15 साल का फासला है। एक तेजस तब की और एक तेजस, आज की।

लिंग भेद को मिटाने निकली तेजस गिल
तेजस गिल नाम है उस भारतीय वायुसेना की अफसर का, जिसका सेलेक्शन जिस भी एसएसबी (स्टाफ सेलेक्शन बोर्ड) से गुजरकर हुआ हो, और जिस बोर्ड ने भी उसकी ओएलक्यूज (ऑफिसर लाइक क्वालिटीज) जांची हो, ये तो तय है कि वह अपने अफसरों की फेवरेट कैडेट रही। तभी तो प्रशिक्षण के पहले ही साल में उसे फाइटर पायलट बनने की जल्दी है और ये उतावलापन वह कक्षा में दिखा भी देती है।

उसके प्रशिक्षक भी उसकी तारीफ करते नहीं थकते कि ‘काम आसान हो तो उसे मत देना, हां अगर जिस मिशन को कोई न कर सके तो वह तेजस को ही देना!’ फिल्म ‘तेजस’ का टारगेट बस एक है और वह है कंगना रणौत को एक ऐसा हीरो बनते हुए दिखाना जो लड़के और लड़कियों के बीच विभेद को मिटा सके। और, एक ऐसी नजीर बना सके कि लोग कहें, ‘इस मिशन के लिए लड़कियों को क्यों नहीं भेजा!’ शुरुआत एक पायलट को एक निषिद्ध क्षेत्र घोषित द्वीप से बचाने से होती है और अंत वहां जिसका ख्वाब तेजस ने अपने बॉयफ्रेंड को कब का बता दिया था। दर्शकों को हालांकि ये उत्तर जानने के लिए फिल्म के अंत का इंतजार करना होता है। कहानी की आत्मा 2008 का मुंबई आतंकी हमला है और अपना सब कुछ खोकर वापस ड्यूटी पर लौटी तेजस का शरीर ही इसका जज्बा है।

एक और मिशन पाकिस्तान
लेखक, निर्देशक सर्वेश मेवाड़ा कहते तो हैं कि ये कहानी उन्होंने कंगना को हैदराबाद जाकर सुनाई थी और उसके बाद फिल्म के निर्माता रॉनी स्क्रूवाला से बातचीत में कंगना ने फिल्म के लिए हां की, लेकिन फिल्म देखकर लगता यही है कि ये फिल्म सौ फीसदी कंगना को ही ध्यान में रखकर और उनकी छवि के मुताबिक लिखी गई। उनकी वास्तविक उम्र के हिसाब से वर्तमान में उनका किरदार उनका विंग कमांडर का है और कहानी जब 15 साल पीछे जाती है तब ‘डीएजिंग’ के लिए की गई मेहनत भी परदे पर साफ नजर आती है।

निर्देशक विशाल भारद्वाज की फिल्म ‘रंगून’ के बाद से कंगना ने किसी स्थापित हीरो के साथ कोई फिल्म नहीं की है और उनकी ये जिद भी उनकी फिल्मों को लोकप्रिय बनाने में अक्सर बाधा बनती है। कहानी ‘तेजस’ की बहुत खास नहीं है। पाकिस्तान जाकर एक एजेंट को छुड़ाकर लाना है। एजेंट को तेजस पहचान सके, इसके लिए सेटअप भी कहानी में शुरू से तैयार किया जाता है। एजेंट आंखो की पुतलियों से जो संदेश भेज रहा है, उसे भी तेजस के अलावा दूसरा कोई नहीं पकड़ पाता है। हवाई दृश्यों को देखते हुए बार बार बीते साल की ‘टॉप गन मैवरिक’ याद आती रही लेकिन ऐसे हर ख्याल पर दिल को समझाना पड़ा कि ये एक देसी फिल्म है।

लेखन और निर्देशन में औसत फिल्म
फिल्म ‘तेजस’ को देखते हुए भले लगे कि ये किसी वास्तविक घटना पर आधारित फिल्म है लेकिन ये एक काल्पनिक कहानी है जिसे फिल्माने में इसके लेखक, निर्देशक सर्वेश मेवाड़ा ने पूरी फिल्मी छूट ली है। कहानी की नाटकीयता गढ़ने में फिल्म समय भी खूब सारा लेती है और फिल्म का जितना हिस्सा तेजस की युवावस्था का है, वह फिल्म की गति में बाधा ही बनता है। फिल्म हालांकि दो घंटे से भी कम की है और इंटरवल के बाद फिल्म की रफ्तार भी अच्छी है, लेकिन चूंकि कहानी शुरू होते ही अपने अंत का इशारा कर देती है लिहाजा इसमें रोमांच का विकास क्रमिक नहीं होने पाता। फिल्म को भारतीय वायुसेना का अच्छा साथ मिला है।

एक सेवानिवृत्त वायुसेना अधिकारी ने फिल्म को बनाए जाने के दौरान इसका पर्यवेक्षण भी किया है लिहाजा तकनीकी रूप से कहीं कोई सेवा संबंधित गड़बड़ी फिल्म में नजर नहीं आती है। यहां ये ध्यान रखना भी जरूरी है कि फिल्म ‘तेजस’ एक सीमित बजट में बनी फिल्म है जिसका एकमात्र उद्देश्य कंगना रणौत की उस छवि को मजबूत करना है, जिसका पोषण करते हुए वह आगे चलकर सक्रिय राजनीति में भी दिख सकती हैं। एक मजबूत इरादों वाली महिला जिसका विचार कौशल उनकी पहचान बन चुकी है, उनके लिए ऐसी फिल्में ही मुफीद हैं। लेखन और निर्देशन में फिल्म औसत है।

कंगना रणौत के अभिनय का ठहराव
अभिनय के लिहाज से फिल्म ‘तेजस’ में कंगना रणौत ने बहुत मेहनत की है। बस दिक्कत ये है कि ये मेहनत अब परदे पर नजर आने लगी है। अपनी दोस्त के एक साथ दो बॉयफ्रेंड से रिश्ता बनाए रखने की बात खुलने पर आती हंसी में कंगना का बनावटीपन साफ दिखता है और जब विंग कमांडर के तौर पर कंगना खुद को मिशन पर लिए जाने की जिद पर अड़ती है तो भी वे दृश्य कंगना की मेहनत के बावजूद असरदार साबित नहीं होते। इसकी एक वजह ये भी है कि सर्वेश शायद चाहकर भी कुछ दृश्यों के रीटेक के लिए नहीं कह सके होंगे। और, दूसरी वजह ये है कि जब भी कंगना के चेहरे पर भाव आने शुरू होते हैं, फिल्म का शोर करता बैकग्राउंड म्यूजिक दर्शकों का ध्यान अभिनय से हटा देता है। कंगना की जोड़ीदार बनी अंशुल चौहान का अभिनय इस फिल्म में गौर करने लायक है।

वह बिल्कुल स्वाभाविक दिखती हैं और अपने किरदार के हिसाब से परफेक्ट भी। आशीष विद्यार्थी को देखकर लगता है कि वह रौबदार अफसर का रोल करने के लिए ही उम्रदराज हो रहे हैं। मोहन अगाशे देश के प्रधानमंत्री के रूप में एक दृश्य में ही दिखते हैं और अपना रुआब गालिब करने में सफल रहते हैं। स्टेज सिंगर के तौर पर वरुण मित्रा का काम अच्छा है।

स्पेशल इफेक्ट्स बने कमजोर कड़ी
फिल्म ‘तेजस’ की एक और खामी है, इसके स्पेशल इफेक्ट्स। अपने पहले ही दृश्य में ये फिल्म स्पेशल इफेक्ट्स का सहारा लेती है और इसी के साथ ही एक ऐसा मूड दर्शकों का स्थापित कर देती है जिसमें आगे जो भी हवाई करतब कलाकार दिखाते हैं, उन्हें देखकर उनका रोमांच बढ़ता नहीं है। अयोध्या में बन रहे राम मंदिर का शुभारंभ होने से पहले ही उसमें खून खराबा दिखाने का भी असर अच्छा नहीं रहा। फिल्म की सिनेमैटोग्राफी साधारण है। हरि के वेदांतम के पास मौका था कि इस फिल्म की शूटिंग के दौरान वह अपने फ्रेम्स और शॉट टेकिंग में कुछ प्रयोग कर सकते थे, लेकिन पूरी फिल्म एक सेट पैटर्न में ही उन्होंने शूट की है।

फिल्म की कहानी में चूंकि क्षेपक कथाएं हैं ही नहीं, इसलिए आरिफ शेख को भी फिल्म की एडिटिंग में कोई खास मेहनत करनी नहीं पड़ी होगी। उन्हें बस वर्तमान और अतीत के बीच साम्य बनाना था, जो उन्होने बना दिया है। फिल्म के पंजाबी गाने फिल्म को इसके मूल लक्ष्य से विचलित करते हैं। देखने वाली बात ये है कि जो किरदार इसमें अच्छी हिंदी बोल रहे हैं, वे गाने पंजाबी में गाते हैं और तेजस गिल के पिता जो खांटी सरदार नजर आते हैं, वह जब गाते हैं तो एक कमाल का हिंदी गाना गाते हैं। यही गाना फिल्म का सर्वश्रेष्ठ गाना है और फिल्म देखने के बाद याद भी रह जाता है।

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