बनारस और वाराणसी रेलवे स्टेशन के चक्कर में यात्री घनचक्कर बन जा रहे..
जैसे अपने देश को भारत, हिन्दुस्तान और इंडिया तीन नामों से जाना जाता है। उसी प्रकार बाबा विश्वनाथ की नगरी भी काशी, वाराणसी और बनारस तीन नामों से विख्यात है। इन तीन नामों से यहां तीन रेलवे स्टेशन भी हैं। इनमें वाराणसी और काशी के नाम से बहुत पहले से स्टेशन हैं। मंडुवाडीह स्टेशन का नाम बदलकर बनारस कर दिया गया है। यह नाम बदलना यात्रियों के लिए फजीहत बना हुआ है। बनारस और वाराणसी रेलवे स्टेशन के चक्कर में यात्री घनचक्कर बन जा रहे हैं।
यहां आने वाले यात्रियों को लगता है कि जैसे शहर का नाम बनारस बोलिए या वाराणसी एक ही बात है। उसी तरह दोनों स्टेशन भी एक ही होंगे। ऐसे में ऑटो रिक्शा और ई रिक्शा वाले को वाराणसी स्टेशन बोलिए या बनारस स्टेशन कोई फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन जब यात्री स्टेशन पहुंचते हैं तो असलियत पता चलती है और कई बार देरी हो चुकी होती है।
ट्रेन बनारस से पकड़नी होती है और पहुंच वाराणसी स्टेशन जाते हैं। वाराणसी से बनारस पहुंचने में ट्रेन निकल चुकी होती है। वाराणसी स्टेशन के मुख्य यात्री हाल में स्थित पूछताछ केंद्र में प्रतिदिन 300 से 500 यात्री ऐसे होते हैं, जो बनारस की बजाय यहां पहुंच जाते हैं।
खासकर बनारस-देहरादून जनता एक्सप्रेस, मुंबई जाने वाली कामायनी एक्सप्रेस, दिल्ली जाने वाली गरीब रथ एक्सप्रेस, बुंदेलखंड एक्सप्रेस, दिल्ली जाने वाली काशी विश्वनाथ एक्सप्रेस, दिल्ली जाने वाली शिवगंगा एक्सप्रेस, बनारस-नई दिल्ली सुपरफास्ट एक्सप्रेस जैसी प्रमुख ट्रेनों के यात्री आए दिन परेशान होते हैं।
कई बार तो ऑटो या ई-रिक्शा वालों को भी जब बनारस स्टेशन कोई यात्री बताता है तो वह वाराणसी जंक्शन समझ लेते हैं और यात्रियों को यहां लाकर छोड़ देते हैं। इससे इनका समय और धन दोनों का नुकसान होता है। ट्रेन छूटने में मानसिक परेशानी अलग होती है।
मांडवी ऋषि के नाम पर बना मंडुवाडीह स्टेशन का नाम एक-एक व्यक्ति की जबान पर चढ़ा हुआ था। इसे बदल कर बनारस कर दिया गया। शहर के लोग तो आज भी बनारस स्टेशन को मंडुवाडीह ही बोलते हैं। इसी तरह कैंट स्टेशन अब वाराणसी जंक्शन के नाम से जाना जाता है। ये दोनों बदलाव पूरी तरह प्रचारित न होने के कारण यात्रियों की परेशानी का सबब बनते हैं।
ट्रेनों के शिफ्ट होने की जानकारी भी नहीं
वाराणसी जंक्शन स्टेशन पर गाड़ियों का ज्यादा दबाव होने से दर्जनभर ट्रेनों को कुछ समय पहले बनारस (मंडुवाडीह) शिफ्ट कर दिया गया। इनमें काशी विश्वनाथ, कामायनी, गरीब रथ, बुंदेलखंड एक्सप्रेस जैसी प्रमुख ट्रेनें शामिल हैं। इन ट्रेनों के कई यात्री भी पहले की जानकारी के हिसाब से वाराणसी जंक्शन स्टेशन पहुंच जाते हैं।
रेलवे एप पर कोड से भी भ्रम की स्थिति
रेलवे के एप पर वाराणसी जंक्शन का कोड बीएसबी है, जबकि बनारस का कोड बीएसबीएस है। इससे भी कई बार यात्रियों में भ्रम की स्थिति पैदा हो जाती है। सिर्फ एक अक्षर के फर्क से यात्री दोनों स्टेशनों में फर्क नहीं समझ पाते हैं।
धार्मिक महत्व से जुड़े हैं स्टेशनों के नाम
धर्म और अध्यात्म की नगरी वाराणसी को बनारस, काशी आदि नामों से भी जाना जाता है। इन्हीं नामों के हिसाब से शहर और आसपास के स्टेशनों के नाम वाराणसी जंक्शन, बनारस, वाराणसी सिटी और काशी रखे गए हैं। इनमें वाराणसी जंक्शन स्टेशन से 112 जोड़ी (डेली, अर्द्ध साप्ताहिक, साप्ताहिक, द्विसाप्ताहिक आदि को मिलाकर) ट्रेनों से लगभग 70 हजार से एक लाख तक यात्री सफर करते हैं। वहीं, बनारस स्टेशन से 70 जोड़ी गाड़ियों से 20 से 25 हजार यात्रियों का आवागमन होता है।
स्क्रीन पर डायग्राम से दर्शाए गए हैं स्टेशन: निदेशक
कैंट स्टेशन के डायरेक्टर गौरव दीक्षित का कहना है कि सर्कुलेटिंग एरिया में लगे स्मार्ट सिटी के स्क्रीन पर डायग्राम बनाकर दर्शाया गया है। जिससे यहां से बनारस, वाराणसी सिटी, काशी, लोहता व शिवपुर स्टेशनों को एरो के माध्यम से बताया गया है। पूछताछ केंद्र के कर्मचारी और आरपीएफ के जवान भी अन्य स्टेशनों के बारे में यात्रियों को जानकारी देते हैं।