सुप्रीम कोर्ट से मिली ‘जीत’ अध्यादेश से छिन जाने के बाद आप सरकार संसद में मुकाबले की तैयारी…
दिल्ली में सर्विसेज पर कंट्रोल को लेकर अरविंद केजरीवाल सरकार और केंद्र के बीच छिड़ी जंग लगातार तेज होती जा रही है। सुप्रीम कोर्ट से मिली ‘जीत’ अध्यादेश से छिन जाने के बाद आम आदमी पार्टी (आप) सरकार ने अब विपक्षी एकजुटता के सहारे संसद में मुकाबले की तैयारी शुरू कर दी है। राज्यसभा में एनडीए अभी बहुमत से कुछ दूर है और ऐसे में केजरीवाल की कोशिश है कि विपक्षी दलों से समर्थन हासिल करके बिल को राज्यसभा में अटका दिया जाए। हालांकि, मौजूदा समीकरण को देखते हुए ऐसा करना उनके लिए आसान नहीं है। कुछ समय पहले तक तमाम दलों से दूरी बनाकर चलते रहे आप संयोजक को किस-किस का साथ मिलेगा, यह अभी साफ नहीं है। सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि कांग्रेस भी खुलकर उनके साथ नहीं दिख रही है।
11 मई को सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने एक अहम फैसले में पुलिस, पब्लिक ऑर्डर और लैंड को छोड़कर अन्य मामलों में अधिकारियों के ट्रांसफर पोस्टिंग का अधिकार केजरीवाल सरकार को सौंप दिया था। 19 मई को केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश जारी करते हुए ‘राष्ट्रीय राजधानी लोक सेवा प्राधिकरण’ का गठन कर दिया और ट्रांसफर पोस्टिंग का अधिकार का जिम्मा इस प्राधिकरण को सौंप दिया गया, जिसका अध्यक्ष दिल्ली के मुख्यमंत्री को बनाया गया है, लेकिन फैसले सिर्फ उनकी मर्जी से नहीं होंगे। मुख्य सचिव, प्रधान सचिव गृह और मुख्यमंत्री मिलकर ग्रुप ए अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग पर फैसला लेंगे। विवाद की स्थिति में एलजी फैसला लेंगे। नियम के मुताबिक इस अध्यादेश को 6 महीने में संसद से पास कराना होगा। केंद्र सरकार मॉनसून सत्र में इस बिल को संसद में पेश कर सकती है।
समर्थन जुटाने की मुहिम
केंद्र से झटका मिलने के तुरंत बाद अरविंद केजरीवाल ने आगे की लड़ाई के लिए तैयारी शुरू कर दी है। उन्होंने रविवार को दिल्ली में बिहार के मुख्यमंत्री और इन दिनों विपक्षी एकता के सूत्रधार बने नीतीश कुमार से मुलाकात की। इसके बाद केजरीवाल 23 मई को कोलकाता जाकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात करेंगे। नीतीश से बातचीत के बाद केजरीवाल ने यह भी कहा है कि वह सभी विपक्षी दलों से समर्थन जुटाने की कोशिश करेंगे ताकि अध्यादेश की जगह लाए जाने वाले बिल का रास्ता राज्यसभा में रोक सकें।
क्या ऐसा कर पाएंगे केजरीवाल?
लोकसभा में भाजपा और एनडीए को बहुमत हासिल है। लोकसभा में बिल आसानी से पास हो जाएगा। लेकिन राज्यसभा का मौजूदा गणित मुकाबले को दिलचस्प बना रहा है। मौजूदा समय में 238 सदस्यों वाले सदन में एनडीए के पास 110 सांसद हैं। 2 मनोनीत सदस्यों के रिक्त पदों को भरकर संख्या में कुछ इजाफा जरूर होगा लेकिन इसके बावजूद बहुमत के आंकड़े से 8 सांसद कम रह जाएंगे। केजरीवाल की कोशिश है कि विपक्षी सभी दलों का साथ बीजेपी की अगुआई वाली केंद्र सरकार को संख्याबल से दूर किया जाए। हालांकि, भाजपा को आसानी से जरूरी आंकड़ा मिल जाने की उम्मीद है। एक तरफ जहां कांग्रेस ने आप को लेकर अपना रुख साफ नहीं किया है तो बीजेपी, वाईएसआर कांग्रेस जैसे कुछ दल विपक्षी एकता से दूरी बनाए हुए हैं और कई अहम मौकों पर इन्होंने संसद में एनडीए का साथ दिया है। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगनमोहन रेड्डी और ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक ने खुद को विपक्षी मोर्चे से दूर रखा है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि नीतीश की मध्यस्थता से कांग्रेस संसद में ‘आप’ का साथ दे सकती है। आरजेडी, जेडीयू, सपा जैसे कुछ दल केजरीवाल का साथ दे सकते हैं, लेकिन एनडीए को बिल पास कराने से रोकना ‘आप’ के लिए आसान नहीं है।