चीन से जुड़ी चिंताओं को लेकर US और जापान ने की सुरक्षा सहयोग बढ़ाने की घोषणा
संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान ने बुधवार को चीन से जुड़ी साझा चिंताओं के मद्देनजर सुरक्षा सहयोग बढ़ाने की घोषणा की है। वाशिंगटन ने पिछले महीने टोक्यो में घोषित एक प्रमुख सैन्य निर्माण का जोरदार समर्थन किया है। इस दौरान अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा, “हम इस बात से सहमत हैं कि चीन हमारे बीच सबसे बड़ी साझा रणनीतिक चुनौती है, जिसका हम दोनों सामना कर रहे हैं।”
अमेरिकी विदेश मंत्री ने पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना का जिक्र करते हुए कहा कि वह और रक्षा मंत्री लॉयड जे ऑस्टिन वाशिंगटन में अपने जापानी समकक्षों से मिले थे। ऑस्टिन ने भी उसी प्रेस कॉन्फ्रेन्स में जापान में एक मरीन लिटोरल रेजिमेंट शुरू करने की घोषणा की, जिसमें एंटी-शिप मिसाइलें भी शामिल होंगी। ब्लिंकन ने यह भी कहा कि दोनों देश अंतरिक्ष को कवर करने के लिए भी रक्षा संधि की शर्तों पर सहमत हैं।
जापानी रक्षा मंत्री यासुकाज़ू हमादा और ऑस्टिन गुरुवार को फिर से पेंटागन में मिलेंगे। इसके बाद शुक्रवार को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और जापानी प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा के बीच मीटिंग होगी।
कहा जा रहा है कि जापान में अमेरिकी सैनिकों की नई तैनाती जल्द होगी। यह एशिया में अमेरिका के सैन्य बलों से जुड़ी घोषणाओं में सबसे आगे होगी। हालांकि, अमेरिकी सैनिकों की कुल संख्या में कोई बदलाव नहीं होगा। नई तैनाती के बाद बीजिंग को कोई भी संघर्ष शुरू करने से पहले दो बार सोचना पड़ेगा।
दोनों देशों के बीच यह समझौता लगभग एक साल की बातचीत के बाद हुआ है। हाल की चीनी हरकतों के बाद जापान ने पिछले महीने अपने रक्षा बजट में बड़ा इजाफा किया था। जापान ने अपनी जीडीपी का दो फीसदी हिस्सा रक्षा पर खर्च करने का फैसला किया है। इसके तहत जापान 1000 किलोमीटर की दूरी तक मार करने वाली मिसाइल खरीदेगा।
अमेरिकी अधिकारियों ने रॉयटर्स को बताया कि जल्द ही एंटी-शिप मिसाइलें और 2,000 सैनिकों की एक संशोधित मरीन कॉर्प्स रेजिमेंट के तहत जापान पहुंचेंगी, जो उन्नत खुफिया निगरानी और परिवहन पर ध्यान केंद्रित करेगी। अमेरिकी अधिकारी के मुताबिक 2025 तक इस कदम के पूरा होने की उम्मीद है।
अमेरिकी अधिकारियों ने कहा कि लगभग 300 सैनिकों और 13 जहाजों की एक अलग अमेरिकी सैन्य टुकड़ी अगले एक-दो महीने में जापान में तैनात की जाएगी। जापान ने ताइवान के प्रति चीन के जुझारूपन को बढ़ती चिंता के रूप में लिया है क्योंकि बीजिंग ताइवान द्वीप पर कब्जा करना चाहता है।