जोशीमठ में दरार और जमीन धंसने की घटनाओं ने बढ़ाई सरकार की चिंता…
उत्तराखंड के जोशीमठ में दरार और जमीन धंसने की घटनाओं ने सरकार से लेकर पर्यावरणविदों तक के माथे पर चिंता की लकीरें बना दी हैं। एक्शन में आई केंद्र सरकार ने इससे निपटने के उपाय तेज कर दिए हैं। इसके लिए जल शक्ति मंत्रालय के तहत काम कर रहे राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) ने इन घटनाओं के अध्ययन और प्रभाव को समझने के लिए एक उच्चस्तरीय कमेटी गठित की है।
छह सदस्यीय इस कमेटी में वन और पर्यावरण, मंत्रालय केंद्रीय जल आयोग समेत प्रमुख संस्थाओं के प्रतिनिधियों को शामिल किया गया है। यह समिति तीन दिन के भीतर एनएमसीजी को अपनी रिपोर्ट देगी।
एनएमसीजी ने शुक्रवार को इस समिति का गठन करते हुए कहा, समिति जमीन धसने की घटनाओं के कारण, स्थितियों और प्रभाव का आकलन और अध्ययन करेगी। इसमें मकानों के आवासीय और अन्य भवनों के निर्माण, राष्ट्रीय राजमार्ग और विभिन्न निर्माण को हो रहे नुकसान एवं नदी प्रणाली का अध्ययन शामिल है। इसके अलावा समिति क्षेत्र में चल रही विभिन्न जल विद्युत परियोजनाओं और राजमार्गों पर पड़ने वाले प्रभाव का भी अध्ययन करेगी। गंगा नदी के प्रवाह का भी अध्ययन किया जाएगा। अन्य गतिविधियों पर भी समिति अपनी नजर रखेगी और रिपोर्ट देगी। समिति का समन्वय राज्य कार्यक्रम प्रबंधन समूह उत्तराखंड के परियोजना निदेशक करेंगे।
सिहंधार में भगवती का मंदिर टूटा
नगर के सिंहधार वार्ड के तला क्षेत्र में शुक्रवार दोपहर भगवती का मंदिर भू-धंसाव की जद में आने से टूट गया। वार्ड के निवासी आशीष ने बताया कि, जिस समय मंदिर टूटा, वह छत में ही खड़े थे। उन्होंने देखा कि, मंदिर में अचानक दरार आनी शुरू हुई और कुछ ही देर में मंदिर जमीन पर गिर गया। उन्होंने कहा कि, यह मंदिर यहां रह रहे छह परिवारों का पारिवारिक मंदिर था। जोशीमठ में भू-धंसाव के बाद दरारों की दशहत है। गुरुवार रात छह और घरों में दरारें आ गईं। अब तक 580 घर को नुकसान पहुंचा है।
वरुणावत से भूस्खलन का खतरा बरकरार
शंकराचार्य की तपस्थली पर गहराए संकट से स्थानीय लोग दहशत में हैं। इस घटना के बाद जोशीमठ जैसे बाकी पहाड़ी शहरों के भविष्य को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं। संवेदनशील पहाड़ियों पर बसे नगरों एवं कस्बों के लोगों को भी चिंता सताने लगी है। जोशीमठ पर आसन्न खतरे के बीच उत्तरकाशी में वरुणावत पर्वत से भूस्खलन का खतरा बरकरार है। सितंबर 2003 में शहर के शीर्ष पर स्थित इस पहाड़ी से भूस्खलन शुरू हुआ था। करीब डेढ़ महीने तक भूस्खलन ने नगरवासियों की सांसें अटकाए रखी।