पढ़े षटतिला एकादशी की व्रत कथा..
हिंदू धर्म में माघ महीने को बेहद पवित्र माना जाता है। माघ कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी के कहा जाता है। इस महीने में स्नान, दान और पूजा-पाठ का विशेष महत्व है। षटतिला एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन तिल का दान करने से अनाज की कमी नहीं होती है। आइए जानते हैं आखिर क्यों मनाई जाती है षटतिला एकादशी।
षटतिला एकादशी व्रत कथा-
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार प्राचीन काल में एक ब्राह्मणी थी, वह बेहद धार्मिक स्वभाव की थी। जो हर व्रत और भगवान की पूजा बड़ी ही श्रद्धापूर्वक करती थी। लेकिन कभी कुछ दान नहीं करती। उसकी श्रद्धा से भाव से प्रसन्न होकर एक बार भगवान विष्णु उसके घर ब्राह्मण का वेश धारण कर भिक्षा मांगने पंहुचे। ब्राह्मणी ने भगवान विष्णु को दान में एक मिट्टी का ढेला पकड़ा दिया। मृत्यु के बाद, जब ब्राह्मणी बैकुंठ पहुंची तो उसे रहने के लिए एक बड़ा- सा महल मिला। लेकिन वहां खाने के लिए कुछ न था। तो ब्राह्मणी ने भगवान विष्णु से पूछा कि मैंने तो जीवनपर्यंत इतना धर्म कर्म किया। उसके बदले में मुझे ऐसा फल मिल रहा है। तब भगवान विष्णु ने बताया कि तुमने सच्चे मन से व्रत और पूजा तो की थी। जिसके फलस्वरूप तुम्हें बैकुंठ में इतना अच्छा जीवन मिला। लेकिन तुमने कभी- भी अन्न का एक दाना तक दान नहीं किया इसीलिए आज तुम्हारे पास खाने को एक दाना अन्न नहीं है। अगर तुम अपने गलती का प्रायश्चित करना चाहती हो, तो षटतिला एकादशी का व्रत करों और उस दिन तिल का दान करो। जिससे बाद तुम्हें अनाज की कमी कभी महसूस नहीं होगी।