क्यों मनायी जाती है धनतेरस व दिवाली, इसके वैज्ञानिक पहलू
धनतेरस के शाब्दिक अर्थ
धनतेरस हिंदी के दो शब्दों से बना है- धन और तेरस। धन का मतलब बैभव (धन) और तेरस का मतलब तेरहवा। धनतेरस कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष के तेरहवें दिन अर्थात दीवाली के दो दिन पूर्व में मनाया जाता है। धनतेरस को “धन्वंतरी त्रिदोशी” या “धन्त्रोधी” भी कहा जाता है। भारत वर्ष में, धनतेरस को बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। किवदंती है कि इस दिन, भगवान कुबेर की देवी लक्ष्मी के साथ भी पूजा की जाती है।
धनतेरस के बारे में कुछ कहानियां
भगवान धन्वंतरी जिसे देवताओं के चिकित्सक और भगवान विष्णु का अवतार भी माना जाता है, को महासागर से देवताओं और राक्षसों द्वारा मंथन के उपरान्त (जो धन्तेरस के दिन किया गया था), बाहर आया हुआ माना जाता है, भगवान धन्वंतरी – मानव जाति के कल्याण के लिए आयुर्वेदिक के साथ उत्पन्न हुए। कहानी यह भी है कि राजा हिमा के पुत्र के बारे में भविष्यवाणी की गई थी कि वह अपनी शादी के चौथे दिन मर जायेंगे और इनकी मृत्यु सांप के काटने से होगी। जब इस तरह की भविष्यवाणी के बारे में उनकी बुद्धिमान पत्नी को पता चला, तो उसने अपने पति की मृत्यु नहीं होने देने का फैसला किया और उसने एक योजना बनाई।
उनकी शादी के चौथे दिन उसने सभी प्रवेश द्वार पर धन और जवाहरात एकत्र किए और जगह के प्रत्येक नुक्कड़ और कोने को रोशनी कर दी। तब वह गाने गाती रही और अपने पति को सोने नहीं दिया और एक के बाद एक कहानियाँ सुनाती रही। मध्यरात्रि में भगवान यम, एक साँप का रूप धर कर आए। दीपक की उज्ज्वल रोशनी और चमक से उनकी आँखों को अंधा कर दिया और वह उसके पति के कक्ष में प्रवेश नहीं कर सके। इस प्रकार, भगवान यम, राजा के पुत्र को काटने का मौका ना पा सके और वो अपने पति के जीवन को बचाने में सफल रही। तब से धनतेरस दिवस को दिव्य देवता या भगवान के समक्ष- दीपक, दीया पूरे रात में जलाना एक अनुष्ठान बन गया है और इसे यमादीपदान का दिन भी कहते है|
धनतेरस के पीछे वैज्ञानिक पहलू
धनतेरस के उक्त कथनों को यदि गौर करे तो धनतेरस और दीवाली मौसम जो वरसात के अन्त और शरद ऋतू (जाड़े) के शुरुआत के दौरान आती है, घर व उसके आस-पास बाग़-बगीचे में तरह तरह के कीड़े-मकोड़े, सांप-विच्छु आदि अपने लिए कोई सुरक्षित स्थान ढूढने में लग जाते है और रात के अँधेरे में कंही न कंही वह घरो आदि में भी घुस जाते है, जिससे काटने का खतरा रहता है और कभी-कभी इनके दंश से मनुष्य के मरने का भी खतरा बना रहता है|ऐसे में धनतेरस की उपरोक्त कहानी का अर्थ भी स्पष्ट हो जाता है तथा कडुआ तेल से दीप जलने व उसकी तीखी गन्ध से कीड़े-मकोड़े व सांप-विच्छु या तो मर जाते है या भाग जाते है| इसको संभवतः भगवान धन्वन्तरी की कथा से जोड़ा गया है|रही बात धन-कुबेर की– तो जब आप किसी पीले धातु पर रोशनी डालेगे तो वह बहुत अधिक प्रकाशित होगी जिसके चमक से भी कीड़े-मकोड़े व सांप-विच्छु आस-पास नहीं आयेगे और इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि यह धातुये संचित करने से जीवन में आगे के लिए भी अधिक उपयोगी होगी| प्रकाश जीवन के लिए बहुत उपयोगी होता है और पूजा –पाठ से मूर्तियों में उर्जा का संचयन होता है जो आपको सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती है|आप प्रसन्न रहते हैं और आप में प्रतिरोधक क्षमता का भी विकास होता है|इसी लिए हिन्दू रीति–रिवाज में मूर्ति पूजा का अधिक महत्व दिया गया है| आइये धनतेरस और दीवाली के त्यौहार मे क्रेकर–आतिशबाजी से दूर हटकर पर्यावरण के संरक्षण में भाग ले तथा धरती और मानवता को बचाए और त्योहार को भी बड़े उत्साह से मनाये|