त्योहारी सीजन में वोकल फॉर लोकल से मजबूत होगी अर्थव्यवस्था

इस दीवाली सीजन आत्मनिर्भर भारत की चमक छाई हुई है। ट्रेडिशनल रंगोली से लेकर दीए और फूलों समेत हर व झालरों से लेकर लक्ष्मी गणेश तक में देशी रंग बिखरे हुए है। शहर में ऐसे प्रेंटरपेन्योर है, जो देशी प्रोडक्ट्स को बढावा दे रहे है। ये डेकोरेटिव प्रोडक्ट्स न सिर्फ लोकल मार्केट को बढ़ावा दे रहे है, बल्कि स्थानीय आर्टिजंस और फूल व्यवसाय वालों को भी कोविडकाल से उबार रहे है। मतलब साफ है हम किसी ब्रांड के आकर्षण में न फंसकर स्वदेशी यानी स्थानीय स्तर पर उत्पादित हो रही वस्तुओं को खरीदना व इस्तेमाल करना शुरू कर दें, तो न सिर्फ देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी, बल्कि उसकी आत्मनिर्भरता का मार्ग भी प्रशस्त होगा. अगर मौका हो दीवाली का तो इससे बेहतर और क्या हो सकता है।

सुरेश गांधी

फिलहाल, हर तरफ दीपावली की धूम है। हर ट्रेड में सुबह से रात तक भीड़ दिख रही है. सर्राफा, इलेक्ट्रॉनिक और ऑटोमोबाइल्स सेक्टर में जमकर बुकिंग हो रही है. फोर व्हीलर गाड़ियों की खरीदारी का क्रेज इस बार पहले की अपेक्षा काफी है, लेकिन कई गाड़ियां आउट ऑफ स्टॉक हो चुकी हैं. विभिन्न ट्रेडों के जानकारों की मानें, तो इस बार बाजार पिछले साल की अपेक्षा 10 से 20 फीसदी ग्रोथ पर रहेगा. खरीदारों का उत्साह देख कई सेक्टर ने दुबारा उत्पादों को मंगा कर स्टॉक किया है. दुकानदारों का अनुमान है कि इस बार बाजार में कई अरब बरसेंगे. धनतेरस पर बाजार की तैयारी और खरीदारी को लेकर उत्साह दिख रहा है. लोग बड़ी संख्या में खरीदारी करने बाजार में पहुंच रहे हैं। कहा जा सकता है त्योहारों के इस सीजन में बाजारों का गुलजार होना महामारी से हलकान अर्थव्यवस्था के लिए बेहतर है. नवरात्रि में उपभोक्ता बाजार में खुदरा बिक्री में पिछले साल की तुलना में न केवल बढ़ोतरी देखी गयी, बल्कि वृद्धि दर भी दो अंकों में है. यह अर्थव्यवस्था के पटरी पर आने की प्रक्रिया की शुरूआत का तो संकेत है ही, इससे यह भी इंगित होता है कि उपभोक्ताओं का भरोसा बढ़ने लगा है. देखा जाएं दीपावली के मौके चीनी लाइट्स सहित अन्य उत्पादों की मांग अधिक रहती है, लेकिन इस साल इसके उलट तस्वीर देखने को मिल रही है। लोकल आइटम को लोग काफी पसंद कर रहे है। बाजार में आएं नए-नए देशी प्राडक्ट की जबरदस्त डिमांड है। खासकर स्वयं सहायता समूह की महिलाओं के हाथों बने प्रोडक्ट ज्यादा बिक रहे। व्यपारियों की मानें तो इस साल 2000 करोड़ के कारोबार होने के आसार है।

बता दें, धनतेरस, दीवाली छठ की तैयारी में लोग मशगूल हो गए है। इसे लेकर बाजारों में भी जबरदस्त रौनक है। व्यापारियों की बांझे खिल गयी है। ऑफर्स, छूट और नए आइटम्स से बाजार पटे पड़े हैं। हर कोई शुभ मुहूर्त में खरीदारी कर अपना लाभ पक्का करने की जुगत में है। हालांकि ऑनलाइन खरीदारी का क्रेज भी बढ़ा है। व्यापारियों में ऑनलाइन खरीदारी को लेकर थोड़ी चिंता जरूर है। फिर भी बर्तन बाजार, जूलरी मार्केट, गिफ्ट पैक बाजार, बाइक, कार समेत अन्य मार्केट 2000 करोड़ रुपये का कारोबार होने की संभावना जताई जा रही है। इसमें 200 करोड़ रुपए ऑनलाइन शॉपिंग के होंगे। पिछले साल की तुलना में इस साल बाजार में 15 से 20ः का इजाफा देखा जा रहा है। बता दें, दीपावली पर चीन के उत्पादों से पटे बाजारों की तस्वीर इस बार बदली हुई है। लाइट की झालर, कंदील, पेंटिंग व सजावट के अन्य सामान और गिफ्ट आइटम से लेकर हर जगह स्वदेशी उत्पाद छाए हुए हैं। इस बार 90 फीसदी बाजार पर स्वदेशी उत्पादों का कब्जा है। जिन्हें लोग बड़ी संख्या में पसंद भी कर रहे हैं। ग्राहकों की चीन के उत्पादों से बेरुखी को देखते हुए इस बार व्यापारियों ने भी इनसे दूरी बना ली है। उनका कहना है कि चीन के महज 10 फीसदी उत्पाद ही अब बाजार में हैं।

दीप से दीप जले
दीपावली की खुशियां रोशन करने के लिए मिट्टी के दीयों, खिलौनों, घरौदे, रंगबिरंगी गुजरी और तेल बाती का बाजार सज चुका है। सड़क किनारे गरीब महिलाएं और बच्चे दुकानें सजा चुके हैं। सबके चेहरे पर एक उम्मीद है कि उनके घर में भी दिए जलेंगे। खुशियां आएंगी। इनके मिट्टी के दीयों की वैराइटी में कोई कमी नहीं है, एक से बढ़कर एक सुंदर सजीले दिए और दूसरी साज सज्जा का सामान सजा हुआ है। सिर्फ इंतजार है तो ग्राहकों का। दीपावली दीप से दीप जलाने वाला त्यौहार है। इसलिए सब की सामूहिक पहल इन जरूरतमंदों के घरों में खुशियों का दीप जला सकती है। इनके चेहरे पर मुस्कान ला सकती है। इसलिए अपने दिवाली के बजट का कुछ प्रतिशत खर्च कर इनके जीवन में भी उल्लास लाया जा सकता है। साथ में इनकी दुकानों पर जाएं तो मोल भाव ना करके पूरे पैसे दें। क्योंकि ये बाजार में काफी उम्मीद के साथ आए है। कई तो घर परिवार छोड़कर दूसरे शहरों से यहां आए हैं। वैसे भी मेहनत की तुलना में इनक कमाई उतनी नहीं हो पाती, जितनी होनी चाहिए। यहां जिक्र करना जरुरी है कि दिवाली एक ऐसा त्योहार है, जब गरीब से लेकर अमीर तक अपने घर-परिवार में कुछ न कुछ नया जोड़ने की कोशिश करता है, और इस तरह से पूंजी का प्रवाह बाजार और देश की अर्थव्यवस्था को नई उम्मीदें सौंपता है। चूंकि इससे साफ-सफाई, स्वच्छता की सुखद पारंपरिक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं, इसलिए यह त्योहार गरीब मजदूरों की जेब में भी कुछ न कुछ राशि पहुंचा ही देता है, जिससे वह अपने हिस्से की कुछ खुशियां जी सके और यही दिवाली की खूबसूरती भी है। हमारे लिए सुकून की बात यह भी है कि दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं की हालत आंकने वाली रेटिंग एजेंसियों ने भारतीय अर्थव्यवस्था के पक्ष में लगातार सकारात्मक बातें कही हैं। हाल के दिनों में डॉलर के बढ़ते दाम और पेट्रो-उत्पादों की महंगाई ने चिंताएं बढ़ाई हैं। लेकिन इस बीच ईरान से तेल आयात पर अमेरिकी छूट राहत की खबर लेकर आई है।

उत्साहित हैं हस्तशिल्पी
इको फ्रेंडली दीये बनाने वालों के चेहरे पर इस बार मुस्कान दिख रही है। इसकी दो मुख्य वजहे हैं। पहली चीनी उत्पादों के बहिष्कार, दूसरी वजह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा वोकल फॉर लोकल के लिए जनता से आह्वान करना। दरअसल, लोग गाय के गोबर से बने दीये और लक्ष्मी-गणेश की खरीदारी करने के लिए आगे आए हैं। हर कोई अपनी-अपनी पसंद के सामानों की खरीदारी कर रहा है। सबसे ज्यादा दीयों की खरीदारी हो रही है। दीया, मूर्ति बनाने वाले बनवारी बताते हैं कि पर्यावरण के अनुकूल गाय के गोबर से कई उत्पाद तैयार किए जाते हैं। गाय के गोबर से दीया, मूर्ति, लकड़ी सहित सजावट और पूजा पाठ के कई उत्पाद बनाते हैं। अब पीएम के आह्वान के बाद यह उम्मीद है कि कारोबार और अच्छा होगा। इसको देखते हुए अभी से ही तैयारी चल रही है। बता दें, भारत में दो वर्ष पहले 90 फीसद बाजार पर चीन से आने वाली इलेक्ट्रिक झालरों का कब्जा था लेकिन अब वह 10 फीसदी रह गया है और भी वह पुराना माल है। बिजली बाजार में अब दिल्ली और जयपुर की स्वदेशी झालरों की बाहर है और कानपुर से कई जिलों में आपूर्ति हो रही है। स्वदेशी झालर चीन की झालर से 15 फीसद महंगी जरूर हैं लेकिन ये टिकाऊ भी हैं।

जलाओ दिये तो रहे ध्यान इतना, अंधेरा धरा पर कहीं रह न जाये
दीये का प्रकाश उन श्रमजीवियों की ही संतान है. इसी तरह भोजन करते समय उनके कल्याण की कामना करनी चाहिए, जिनके उपजाये अन्न व फल और दुहे दूध से भूख शांत होती है. यह प्रार्थना करनी चाहिए कि नदियां बहें और बादल बरसें. सारे पेड़-पौधे फूलें-फलें. उन सबकी समृद्धि में अपनी समृद्धि देखनी चाहिए, जिनके बुने कपड़े पहनते हैं, जिनके बनाये घरों में रहते हैं और जिनकी औषधियों से अपने स्वास्थ्य का संवर्धन करते है. कवि ने यह कह कर मनीषियों की इस सीख में नयी कड़ी जोड़ी है कि जलाओ दिये तो रहे ध्यान इतना, अंधेरा धरा पर कहीं रह न जाये. ऐसा कर हम ‘सर्वे भवंतु सुखिनः’ की अपने पूर्वजों की अभीष्ट दिशा में बढ़ सकते हैं. इस दीपावली पर हमारे पास सेवा करने का एक अद्भुत मौका है. दीपावली की खरीदारी के लिए हम बाजार जाएं, तो उनकी उगायी और बनायी चीजें घर लायें और उनकी मार्फत खुशियां मनाएं. इससे न सिर्फ आपकी, बल्कि उनकी दीपावली भी शुभ होगी. यह संतोष भी हासिल होगा कि जो पूरे साल खुद चिंतित रह कर भी आपका इतना ख्याल रखते हैं, आपने भी दीपावली पर उनका थोड़ा ख्याल रखा. साथ ही, देशवासियों के जीवन स्तर में सार्थक परिवर्तन भी होगा, खासकर उनके, जो विविध वस्तुएं बना और उगा कर या नाना सुविधाएं जुटा कर हमारा जीवनयापन सुगम बनाते हैं. उत्पादन निर्माण और विपणन का यह सिलसिला चल निकला, तो नौकरियों व रोजगारों की कमी को भी पूरा करेगा और अन्य देशों की कंपनियां पर निर्भरता घटायेगा और हम लोकल से ग्लोबल बनने का सपना देख पायेंगे.

विडंबना यह है कि लोग कोरोना काल के संकट में अपने आसपास के लोगों जैसे किराना दुकानदार, सब्जी वाला, दूध वाला आदि की सेवाओं को लगभग भुला बैठे हैं. ऑनलाइन शॉपिंग खुल जाने से डिजिटली होने वाले कारोबार में जहां उत्सव का माहौल है और लोग धड़ल्ले से वहां खरीदारी कर रहे हैं वहीं गली मोहल्लों के दुकानदार और वस्तु निर्माता ग्राहकों के इंतजार में बैठे हैं. हालांकि कई संस्थाओं और संगठनों ने इस बार दिवाली पर स्वदेशी वस्तुओं के इस्तेमाल और अपने आसपास के ही दुकानदारों से खरीदारी किए जाने को लेकर अभियान चलाए हैं लेकिन यह भी सच है कि झालर और सजावट का सामान ही नहीं दीये, मोमबत्ती, अगरबत्ती, देवी देवताओं की मूर्तियों से लेकर गोबर के कंडे (उपले) जैसी शुद्ध देशी और घरेलू चीजें तक ऑन लाइन खरीदी जा रही हैं. टीवी चैनलों पर आज भी देशी और परंपरागत मिठाइयों के बजाय बहुराष्ट्रीय कंपनियों के चमकीले ‘चॉकलेटी’ गिफ्ट के विज्ञापन छाए हुए हैं. एक तरफ हमारा परंपरागत मिठाइयों का बाजार ठप है, त्योहारों के समय थोड़ा बहुत कमा लेने वाले हमारे हलवाई बेकार बैठे हैं और दूसरी तरफ विज्ञापनी मिठाइयां लेकर घरों की घंटियां बजाने और उन्हीं के साथ त्योहार मनाने के बाजारी संदेश वायरल हो रहे हैं. कुल मिलाकर शॉपिंग के ऑनलाइन प्लेटफॉर्म लुभावने ऑफर्स से भरे पड़े हैं और लोग दीवाने होकर उन पर टूटे जा रहे हैं.

अर्थव्यवस्था स्वदेशी से ही होगी मजबूत
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि कोरोना काल ने देश की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया है. अब जब स्थितियां कुछ सामान्य हो चली हैं और सामान्य होती इन स्थितियों में दीवाली जैसा भारत का सबसे बड़ा त्योहार आया है तो हमारा रवैया क्या हो? निश्चित रूप से भारत की अर्थव्यवस्था को हमें दुबारा पटरी पर लाना है तो हमें अपने घरेलू या स्वदेशी उत्पादों को ही प्राथमिकता देनी होगी और उनकी खरीदारी के लिए अपने आसपास के, गली-मोहल्ले और स्थानीय बाजार के दुकानदारों को ही महत्व देना होगा. भारत में बनी चीज खरीदना, भारतीयों द्वारा बनाई चीज खरीदना, ये हमें व्यवहार में लाना ही होगा. और मुझे विश्वास है, सबके प्रयास से हम ये भी करके रहेंगे. अगर मेरे देश की वैक्सीन मुझे सुरक्षा दे सकती है तो मेरे देश का उत्पादन, मेरे देश में बने सामान, मेरी दीवाली और भी भव्य बना सकते हैं. जाहिर है आज की परिस्थितियों में त्योहार मनाने का अर्थ सिर्फ अपने उत्सव के बारे में सोचना ही नहीं है बल्कि सही मायनों में हम दिवाली तभी मना पाएंगे जब हम दूसरों के आनंद और उत्सव के बारे में सोचें. देश की दीवाली और उसकी समृद्धि के बारे में सोचें. यदि हम इस मौके पर अपने लोगों को, छोटे-बड़े स्वदेशी उत्पादकों को, स्थानीय दुकानदारों को अहमियत देते हैं, उनसे सामान खरीदते हैं तो हम अपनी ही नहीं देश की दिवाली मनाने का उपक्रम कर रहे होते हैं.

छोटे दुकानदारों से ही सुदृढ़ होगी अर्थव्यवस्था
ये वे पिलर हैं, जिन्होंने अपने कंधों पर देश की अर्थव्यवथा संभाल रखा है। अब ऐसा समय है, जब इन्हें सहारे की जरूरत है… कौन देगा…? कैसे देगा..? और क्यों देगा…? यह कहना कठिन है। लेकिन मेरा थोड़ा प्रयास इनके काम जरुर आ सकता है। उनके मुताबिक हमारी एक दिन में 400 से 500 रुपए की कमाई हो जाती है। जिससे बड़ी मुश्किल से घर खर्च चलता है, बचत हमारे लिए दूर की बात है। हम किसी तरह से अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं। हमारे सामने दुकान का किराया और बिजली का बिल भरना हमेशा चुनौती रहता है।

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