शरद पूर्णिमा : होगी औषधियुक्त अमृत वर्षा, बरसेगी मां लक्ष्मी की कृपा

शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा धरती पर अमृत की वर्षा करेगा। इस दिन चंद्र देव की पूजा के साथ महालक्ष्मी की पूजा अर्चना करने से सुख और स्वास्थ्य का लाभ मिलेगा। इस दिन उत्तराभाद्रपद और रेवती नक्षत्र होने से सुस्थिर योग और वर्धमान नाम के योग के साथ ध्रुव योग बन रहे हैं। इसके साथ ही शरद पूर्णिमा पर्व पर कन्या राशि में त्रिगह योग भी रहेगा। इस दिन कन्या राशि में सूर्य, बुध और शुक्र की युति बनेगी। सूर्य बुध की युति से बुधादित्य योग और बुध और शुक्र की युति से लक्ष्मी नारायण योग बनेगा। इन्हें ज्योतिष शास्त्र में राजयोग कहा जाता है। इसी दिन शनि और गुरु अपनी अपनी राशि में वक्री अवस्था में रहेंगे। इस दिन चंद्रोदय का समय शाम 5ः58 पर रहेगा। बता दें, हर माह में पूर्णिमा आती है, लेकिन शरद पूर्णिमा का महत्व ज्यादा है. हिंदू धर्म ग्रंथों में भी इस पूर्णिमा को विशेष बताया गया है. अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को रास पूर्णिमा या शरद पूर्णिमा कहा जाता है. शरद पूर्णिमा की रात्रि पर चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है. इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण रहता है. चंद्रमा की किरणें अमृत की वर्षा करती हैं. इस साल शरद पूर्णिमा तिथि रविवार, 09 अक्टूबर को सुबह 03 बजकर 41 मिनट से शुरू होगी. पूर्णिमा तिथि अगले दिन सोमवार, 10 अक्टूबर को सुबह 02 बजकर 25 मिनट पर समाप्त होगी

सुरेश गांधी

प्रेम और कलाओं से परिपूर्ण होने के कारण श्रीकृष्ण ने इसी दिन महारास रचाया था। इसलिए यह तिथि खास तो है ही, इसी दिन से शरद ऋतु का आरम्भ भी होता है। चंद्रमा इस दिन संपूर्ण सोलह कलाओं से युक्त होता है। कहते है इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होती है, जो धन, प्रेम और स्वास्थ्य तीनों देती है। इस दिन व्रत रख कर विधि-विधान से लक्ष्मीनारायण का पूजन करने से हर मनोकामनाएं पूरी होती है। मान्यता है इस दिन रात को खीर खुले आसमान में रखी जाती है। सुबह इसे प्रसाद के रूप में खाया जाता है। इस प्रसाद को ग्रहण करने से अनेक प्रकार के रोगों से छुटकारा मिल जाता है। व्यक्ति दीर्घायु होता है। शरद पूर्णिमा का व्रत जो भी रखता उसे जीवन में उन्नति तरक्की मिलती है और सभी प्रकार की बाधाएं जीवन से समाप्त हो जाती है।

शरद पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी संग चंद्रमा की आराधना करने का दिन होता है। वो दिन जब चंद्रमा की किरणों से बरसता है अमृत और मां लक्ष्मी भक्तों के लिए खोल देती हैं धन का भंडार। क्योंकि सोम चन्द्र किरणें धरती में छिटक कर अन्न-वनस्पति आदि में औषधीय गुणों को सींचती है। मान्यता है कि इस दिन की गई पूजा और खीर का प्रसाद आपको दिला सकता है दीर्घ आयु होने का वरदान। अगर आपकी किसी खजाने तक पहुंचने की ख्वाहिश है, तो वह पूरी हो सकती है। आपका घर धन से भर सकता है, क्योंकि शरद पूर्णिमा के मौके पर खजाने के वो तीन द्वार जो खुलते हैं सीधे कुबेर के धाम। मान्यता है कि देवी-देवताओं के अत्यंत प्रिय पुष्प ब्रह्मकमल केवल इसी रात में खिलता है। इस रात को ऐरावत हाथी पर बैठे इंद्रदेव और महालक्ष्मी की पूजा की जाती है।

दरअसल, दशहरे के पांचवे दिन यह त्योहार मनाया जाता है। खास यह है कि यह सिर्फ धार्मिक त्योहार ही नहीं है, बल्कि ऋतु परिवर्तन के साथ-साथ आध्यात्मिक और रचनात्मक उत्सव भी होता है। वर्षा में शीत की तरफ बढ़ते दिनों का संक्रमणकाल हुआ करता है शरद। उसी का उत्सव है शरद पूर्णिमा। आश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं। इसे कोजागरी और रास पूर्णिमा भी कहते हैं। किसी-किसी स्थान पर व्रत को कौमुदी पूर्णिमा भी कहते हैं। कौमुदी का अर्थ है चांद की रोशनी। इस दिन चांद अपनी सोलह कलाओं से पूर्ण होता है। इस पूर्णिमा पर व्रत रखकर पारिवारिक देवता की पूजा की जाती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन से इसी दिन लक्ष्मी का उदय हुआ था। इस दृष्टि से यह लक्ष्मी के आगमन का दिन माना जाता है। इसलिए अधिकतर जगहों पर इस दिन लक्ष्मी की पूजा की जाती है।

वैज्ञानिक लिहाज से भी उत्तम
कार्तिक का व्रत भी शरद पूर्णिमा से प्रारंभ होता है। शरद पूर्णिमा का चांद बदलते मौसम अर्थात मानसून के अंत का भी प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चांद धरती के सबसे निकट होता है इसलिए शरीर और मन दोनों को शीतलता देता है। इसका चिकित्सकीय महत्व भी है जो स्वास्थ्य के लिए अच्छा है। वैज्ञानिकों की मानें तो दशहरे से शरद पूर्णिमा तक चंद्रमा की चांदनी विशेष गुणकारी, श्रेष्ठ किरणों वाली और औषधियुक्त होती है। कहा जाता है कि लंकाधिपति रावण शरद पूर्णिमा की रात किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था। इस प्रक्रिया से उसे पुनर्योवन शक्ति प्राप्त होती थी। चांदनी रात में 10 से मध्यरात्रि 12 बजे के बीच कम वस्त्रों में घूमने वाले व्यक्ति को ऊर्जा प्राप्त होती है। सोमचक्र, नक्षत्रीय चक्र और आश्विन के त्रिकोण के कारण शरद ऋतु से ऊर्जा का संग्रह होता है और बसंत में निग्रह होता है। इस दौरान खीर बनाकर उसे खुले आसमान के नीचे रखने का विधान किया गया है। माना जाता है कि इससे खीर में चंद्रमा का अमृत आ जाता है। यह तो है अध्यात्मिक बात, लेकिन इसका एक वैज्ञानिक पहलू भी है। एक अध्ययन के अनुसार, दुग्ध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है। इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर को खुले आसमान के नीचे रखने और अगले दिन खाने का विधान तय किया था। यह परंपरा विज्ञान पर आधारित है। हर किसी को कम से कम 30 मिनट तक शरद पूर्णिमा की रात में चंद्रमा के सामने रहने की कोशिश करनी चाहिए। रात 10 से 12 बजे तक का समय इसके लिए बेहद उपयोगी बताया गया है, क्योंकि शरद ऋतु में मौसम एकदम साफ रहता है। इस दिन आकाश में न तो बादल होते हैं और न हीं धूल-गुबार। यही वजह है कि शरद पूर्णिमा की रात दमा रोगियों के लिए वरदान बनकर आती है। इस रात्रि में दिव्य औषधि को खीर में मिलाकर उसे चांदनी रात में रखकर प्रातः 4 बजे सेवन किया जाता है। रोगी को रात्रि जागरण करना पड़ता है और औषधि सेवन के पश्चात 2-3 किमी पैदल चलना लाभदायक रहता है।

आंखों की रोशनी बढ़ाने में कारगर
आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए दशहरे से शरद पूर्णिमा तक हर रोज रात में 15 से 20 मिनट तक चंद्रमा को देखकर त्राटक करें। जो इन्द्रियां शिथिल हो गई हैं, उन्हें पुष्ट करने के लिए चंद्रमा की चांदनी में रखी खीर खाएं। शरण पूर्णिमा की रात में चंद्रकिरणों का शरीर पर पड़ना बहुत शुभ माना जाता है। प्रति पूर्णिमा को व्रत करने वाले इस दिन भी चंद्रमा का पूजन करके भोजन करते हैं। इस दिन शिव-पार्वती और कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है। यही पूर्णिमा कार्तिक स्नान के साथ राधा-दामोदर पूजन व्रत धारण करने का भी दिन है। मान्यता है कि देवी-देवताओं के अत्यंत प्रिय पुष्प ब्रह्मकमल केवल इसी रात में खिलता है। इस रात को ऐरावत हाथी पर बैठे इंद्रदेव और महालक्ष्मी की पूजा की जाती है। कहीं-कहीं हाथी की आरती भी उतारते हैं। इंद्र देव और महालक्षमी की पूजा में दीया, अगरबत्ती जलाते हैं और भगवा को फूल चढ़ाते हैं। लक्षमी और इंद्र देव रात भर घूम कर देखते हैं कि कौन जाग रहा है और उसे ही धन की प्राप्ति होती है। इसलिए पूजा के बाद रात को लोग जागते हैं। अगले दिन पुनः इंद्र देव की पूजा होती है।

मां लक्ष्मी का है जन्मदिन
पुराणों के अनुसार मान्यता है कि इस दिन मां लक्ष्मी का जन्म हुआ था। जिसके उत्सव आज के दिन मनाते है। इतना ही नहीं शास्त्रों के अनुसार ये भी माना जाता है कि मां लक्ष्मी इस दिन उल्लू में सवार होकर धरती पर आती है और वह देखती है कि कौन इस रात को जगकर उनकी पूजा-अर्चना कर रहा है। इसके उपरांत वो फल देती है। ज्योतिषियों की मानें तो इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा सच्चे मन और श्रृद्धा के साथ करने से सभी मनोकामनाएं, धन की प्राप्ति होती है। यदि उसकी कुण्डली में धन योग नहीं भी हो तब भी माता उन्हें धन-धान्य से अवश्य ही संपन्न कर देती हैं। उसके जीवन से निर्धनता का नाश होता है, इसलिए धन की इच्छा रखने वाले हर व्यक्ति को इस दिन रात को जाग कर जरुर माता लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए। नारदपुराण के अनुसार इस दिन रात में मां लक्ष्मी अपने हाथों में वर और अभय लिए घूमती हैं। जो भी उन्हें जागते हुए दिखता है उन्हें वह धन-वैभव का आशीष देती हैं। एक अन्य कथानुसार एक साहूकार की दो बेटियां थी। दोनों पूर्णिमा का व्रत रखती थी। बड़ी बेटी ने विधिपूर्वक व्रत को पूर्ण किया, जबकि छोटी ने व्रत को अधूरा ही छोड़ दिया। फलस्वरूप छोटी लड़की के बच्चे जन्म लेते ही मर जाते थे। एक बार बड़ी लड़की के पुण्य स्पर्श से उसका बालक जीवित हो गया। उसी दिन से यह व्रत विधिपूर्वक पूर्ण रूप से मनाया जाने लगा। हर प्रांत में शरद पूर्णिमा का कुछ-न-कुछ महत्व अवश्य है। विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग भगवान को पूजा जाता है। परंतु अधिकतर स्थानों में किसी-न-किसी रूप में लक्ष्मी की पूजा अवश्य होती है। बंगाल में शरद पूर्णिमा को कोजागोरी लक्ष्मी पूजा कहते हैं, महाराष्ट्र में कोजगरी पूजा कहते हैं और गुजरात में शरद पूनम। शरद पूर्णिमा पर तरह-तरह के की रस्मों का पालन किया जाता है। इस दिन खीर का भोग लगाया जाता है। दूध के बर्तन में चांद देखा जाता है। चंद्रमा की रोशनी में सूई में धागा डाला जाता है। खीर, पोहा, मिठाई रात भर चांद के लिए रखी जाती है।

शरद पूर्णिमा के दिन दिखता है पूरा चांद
शरद पूर्णिमा के दिन पूरा चांद दिखता है। इसी कारण इसे महापूर्णिमा भी कहा जाता है। अगर इस दिन कुछ खास उपाय किए जाएं तो सुख-समृद्धि आती है। शरद पूर्णिमा की रात जब चारों ओर चांदनी बिखरी हुई होती है, उस समय मां लक्ष्मी का पूजन करने से व्यक्ति को धन लाभ होता है। लक्ष्मी पूजा घर के पूजा स्थल या तिजोरी रखने वाले स्थान पर करनी चाहिए। व्यापारियों को अपनी तिजोरी के स्थान पर पूजन करनी चाहिए। मां लक्ष्मी को सुपारी बहुत पसंद है, सुपारी को पूजा में रखें, पूजा के बाद सुपारी पर लाल धागा लपेट कर उसका अक्षत, कुमकुम, पुष्प आदि से पूजन करके उसे तिजोरी में रखें, धन की कभी कमी नहीं होगी। जो व्यक्ति 16 वर्षों तक करता है ये व्रत, वह किसी भी जन्म में नहीं बनता निर्धन। शरद पूर्णिमा के दिन अगर आप काम-विलास में लिप्त रहें तो विकलांग संतान अथवा जानलेवा बीमारी होती है। इसलिए इससे दूर रहना चाहिए। शरद पूर्णिमा पर पूजा, मंत्र, भक्ति, उपवास, व्रत आदि करने से शरीर तंदुरुस्त, मन प्रसन्न और बुद्धि आलोकित होती है। आध्यात्मिक पक्ष यह है कि जब मानव अपनी इन्द्रियों को वश में कर लेता है तो उसकी विषय-वासना शांत हो जाती है। मन इन्द्रियों का निग्रह कर अपनी शुद्ध अवस्था में आ जाता है। मन का मल निकल जाता है और मन निर्मल एवं शांत हो जाता है। तब आत्मसूर्य का प्रकाश मन रुपी चन्द्रमा पर प्रकाशित होने लगता हैं। इस प्रकार जीवरूपी साधक की अवस्था शरद पूर्णिमा की हो जाती है और वह अमृतपान का आनंद लेता है। यही मन की स्वस्थ्य अवस्था होती है। इस अवस्था में साधक अपनी इच्छाशक्ति को प्राप्त होता है। योग में इसी को धारणा कहते है। धारणा की प्रगाढ़ता ही ध्यान में परिवर्तित हो जाती है और यहां से ध्यान का प्रारंभ होता है।

शुभ मुहूर्त
रात के समय मां लक्ष्मी के सामने घी का दीपक जलाएं. उन्हें गुलाब के फूलों की माला अर्पित करें. उन्हें सफेद मिठाई और सुगंध भी अर्पित करें. “ॐ ह्रीं श्रींकमले कमलालये प्रसीद प्रसीद महालक्ष्मये नमः“ का जाप करें. मां लक्ष्मी जीवन की तमाम समस्याओं का समाधान कर सकती हैं. बस उनतक सच्चे मन से अपनी बात पहुंचानी होगी और जब धरती पर साक्षात आएं तो इससे पावन घड़ी और क्या हो सकती है.

नेत्र समस्या होगी दूर
कहते है चन्द्रमा की चाँदनी गर्भवती महिला की नाभि पर पड़े तो गर्भ पुष्ट होता है। इस पूर्णिमा को आरोग्य का वरदान माना जाता है। कहा जाता है कि यदि इस दिन विधि-विधान से नियमों का पालन कर लिया जाए तो मनुष्य को कभी भी रोग, बीमारियां नहीं होंगी। इस रात को चन्द्रमा अपनी पूर्ण कलाओं के साथ पृथ्वी पर शीतलता, पोषक शक्ति एवं शांतिरूपी अमृतवर्षा करता है। दशहरा से शरद पूनम तक चन्द्रमा की चाँदनी में विशेष हितकारी रस, हितकारी किरणें होती हैं। इन दिनों चन्द्रमा की चाँदनी का लाभ उठाना, जिससे वर्षभर आप स्वस्थ और प्रसन्न रहें। नेत्रज्योति बढ़ाने के लिए दशहरे से शरद पूर्णिमा तक प्रतिदिन रात्रि में 15 से 20 मिनट तक चन्द्रमा के ऊपर त्राटक करें। अश्विनी कुमार देवताओं के वैद्य हैं। जो भी इन्द्रियाँ शिथिल हो गयी हों, उनको पुष्ट करने के लिए चन्द्रमा की चाँदनी में खीर रखना और भगवान को भोग लगाकर अश्विनी कुमारों से प्रार्थना करना कि ‘हमारी इन्द्रियों का बल-ओज बढ़ायें।’ फिर वह खीर खा लेना इस रात सुई में धागा पिरोने का अभ्यास करने से नेत्रज्योति बढ़ती है।

खीर को बनायें अमृतमय प्रसाद
खीर को रसराज कहते हैं। सीताजी को अशोक वाटिका में रखा गया था। रावण के घर का क्या खायेंगी सीताजी ! तो इन्द्रदेव उन्हें खीर भेजते थे। खीर बनाते समय घर में चाँदी का गिलास आदि जो बर्तन हो, आजकल जो मेटल (धातु) का बनाकर चाँदी के नाम से देते हैं वह नहीं, असली चाँदी के बर्तन अथवा असली सोना धो-धा के खीर में डाल दो तो उसमें रजतक्षार या सुवर्णक्षार आयेंगे। लोहे की कड़ाही अथवा पतीली में खीर बनाओ तो लौह तत्त्व भी उसमें आ जायेगा। इलायची, खजूर या छुहारा डाल सकते हो लेकिन बादाम, काजू, पिस्ता, चारोली ये रात को पचने में भारी पड़ेंगे। रात्रि 8 बजे महीन कपड़े से ढँककर चन्द्रमा की चाँदनी में रखी हुई खीर 12 बजे के आसपास भगवान को भोग लगा के प्रसादरूप में खा लेनी चाहिए। खीर दूध, चावल, मिश्री, चाँदी, चन्द्रमा की चाँदनी – इन पंचश्वेतों से युक्त होती है, अतः सुबह बासी नहीं मानी जाती ।
अमावस्या और पूर्णिमा को चन्द्रमा के विशेष प्रभाव से समुद्र में ज्वार-भाटा आता है। जब चन्द्रमा इतने बड़े दिगम्बर समुद्र में उथल-पुथल कर विशेष कम्पायमान कर देता है तो हमारे शरीर में जो जलीय अंश है, सप्तधातुएँ हैं, सप्त रंग हैं, उन पर भी चन्द्रमा का प्रभाव पड़ता है। इन दिनों में अगर काम-विकार भोगा तो विकलांग संतान अथवा जानलेवा बीमारी हो जाती है और यदि उपवास, व्रत तथा सत्संग किया तो तन तंदुरुस्त, मन प्रसन्न और बुद्धि में बुद्धिदाता का फल मिलता है।

श्री कृष्ण रचाते हैं महारास
शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। शरद पूर्णिमा के देवता श्री कृष्ण हैं। इस दिन भगवान श्री कृष्ण महा रास रचाते हैं। इसलिए वृंदावन में इसे रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के नजदीक होने से चंद्रमा की शक्ति ग्रहण करने से मनुष्य को यौवन प्राप्त होता है। क्योंकि चंद्रमा की किरणें सभी तत्वों से भरपूर होती हैं।

महालक्ष्मी का होगा व्रत
शरद पूर्णिमा को कोजागरी व्रत का विधान है। महिलाएं महालक्ष्मी देवी की 108 दीपक जलाकर पूजा-अर्चना करती हैं। शास्त्रों के अनुसार इस दिन महालक्ष्मी धरती पर भ्रमण के लिए निकलती हैं। खीर के हवन से मां को प्रसन्न किया जाता है। महिलाएं घर की सुख समृद्धि के लिए यह व्रत और पूजा करती है। इस दिन चंद्रमा को सबसे पहले अर्घ देना चाहिए। इसके बाद उसका पूजन कर खीर का भोग लगाएं, चंद्रमा की किरणों का तेज रात 10ः00 बजे से लेकर 12ः00 बजे तक अधिक रहेगा। इसलिए इस बीच खीर के बर्तन को ढक कर खुले में रखना अधिक लाभदायक होता है। सुबह इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करने से स्वास्थ्य लाभ मिलता है। दूध चंद्रमा की किरणों को अवशोषित कर लेता है। और यह फलदाई होती है।

आश्रमोें और मंदिरों पर लगेगा खीर का भोग
शरद पूर्णिमा के पर्व पर शहर के प्रतिष्ठित मंदिरों व आश्रमों पर खीर का भोग लगाकर प्रसाद श्रद्धालुओं को वितरित किया जाएगा। इस त्योहार को भगवान कृष्ण, देवी लक्ष्मी और इंद्र देव के साथ भी जोड़कर देखा जाता है.

सावधानियां

  • इस दिन पूर्ण रूप से जल और फल ग्रहण करके उपवास रखने का प्रयास करें।
  • उपवास रखें या न रखें, लेकिन इस दिन सात्विक आहार ही ग्रहण करें तो ज्यादा बेहतर होगा।
  • शरीर के शुद्ध और खाली रहने से आप ज्यादा बेहतर तरीके से अमृत की प्राप्ति कर पाएंगे।
  • इस दिन काले रंग का प्रयोग न करें।
  • चमकदार सफ़ेद रंग के वस्त्र धारण करें तो ज्यादा अच्छा होगा।
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