पंजाब में अगर किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला तो समझौते’ से बनेगी सरकार

 Punjab Election 2022 Voting: पंजाब विधानसभा चुनाव को लेकर संपन्न हुए मतदान के बाद मतदाताओं का फैसला 10 मार्च को सामने आएगा। राज्य में भले ही सभी पार्टियों ने जीत के दावे किए हैं, लेकिन 2017 के मुकाबले मतदान में 5.45 प्रतिशत की गिरावट ने इस सवाल को भी जन्म दे दिया है कि अगर किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला तो पंजाब में किसकी सरकार बनेगी। इसके साथ ही ये चर्चाएं शुरू हो गई हैंंकि किस पार्टी में सरकार बनाने के लिए समझौता हो सकता हैै।  

राज्य में मतदान में कमी और चार से पांच कोणीय मुकाबले से सारे राजनीतिक समीकरण बिगड़ते नजर आ रहे हैं। कांग्रेस इस उम्मीद के सहारे है कि अगर एससी मतदाताओं के 60 प्रतिशत वोट पार्टी को मिलते हैं तो वह सरकार बना लेगी, लेकिन ऐसा होगा या नहीं, इसे लेकर वह आश्वस्त नहीं है। वहीं, मतदान से दो दिन पहले तक आम आदमी पार्टी का विश्वास डगमगाया हुआ नजर आया। सरकार बनाने के लिए पार्टी 59 सीटों का जादुई आंकड़ा छू पाएगी या नहीं, इसे लेकर आप नेता आश्वस्त दिखाई नहीं दे रहे हैं।

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार अगर एससी वर्ग ने मतदान में साथ दिया है तो कांग्रेस 60 से अधिक सीटें जीतकर दोबारा सरकार बनाएगी। आशा के अनुरूप वोट नहीं मिले तो भी कांग्रेस 50 सीटें जीत सकती है। वहीं आम आदमी पार्टी का भी यही अनुमान है कि पार्टी 40 से 50 के बीच सीटें जीत सकती है। अगर कांग्रेस या आप में से किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला तो आप और कांग्रेस के आपसी समझौते की संभावना न के बराबर है। इसका बड़ा कारण यह है कि दोनों पार्टियां दिल्ली में एक दूसरे के सामने हैं। दिल्ली में नगर निगम के चुनाव होने हैं और अगर ये दोनों पार्टियां पंजाब में साथ आती हैं तो उन्हें दिल्ली में नुकसान हो सकता है।

ताजा समीकरणों को देखते हुए चर्चा यह भी है कि जरूरत पड़ने पर भारतीय जनता पार्टी और शिरोमणि अकाली दल ही ऐसी पार्टियां हैं जो समझौता कर सकती हैं। भाजपा ने इस बार कैप्टन अमरिंदर सिंह की पंजाब लोक कांग्रेस पार्टी और सुखदेव सिंह ढींडसा की पार्टी शिरोमणि अकाली दल (संयुक्त) के साथ गठबंधन किया है। कैप्टन और ढींडसा किसी समय शिअद (बादल) का हिस्सा रहे हैं।

संभावना है कि चुनाव परिणाम के बाद अगर सरकार बनाने के लिए समझौते की जरूरत पड़ती है तो भाजपा और शिअद (बादल) एक बार फिर साथ आ सकते हैं क्योंकि राज्य में केवल भाजपा और शिअद के समझौते का विकल्प ही शेष रह जाता है। इससे पहले भाजपा और शिअद गठबंधन पिछले 25 साल में तीन बार 1997, 2007 और 2012 में विधानसभा चुनाव जीतकर सत्ता में रहा है।

चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा और शिअद ने कभी भी एक-दूसरे पर सीधे हमले नहीं किए। कैप्टन और ढींडसा भी शिअद (बादल) को लेकर नरम रहे हैं। शिअद के संरक्षक प्रकाश सिंह बादल भी चुनाव प्रचार के दौरान दैनिक जागरण द्वारा पूछे गए एक सवाल के जवाब में कह चुके हैं कि दोनों पार्टियों का समझौता नीतियों पर टूटा था। उन्होंने इस बात से इन्कार नहीं किया था कि समझौता नहीं हो सकता है।

किसी दल को बहुमत नहींं मिलने पर ये हो सकती हैं संभावनाएं –

एक – कांग्रेस और आप:इनके समझौते की संभावना नहीं क्योंकि आगे दिल्ली नगर निगम का चुनाव है, दोनों को नुकसान हो सकता है। 

दो -भाजपा और शिअद: पहले भी गठबंधन में काम कर चुके हैं, चुनाव में एक दूसरे के प्रति नरम रहे, फिर एक साथ आ सकते हैं।

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अमित शाह ने दिए पंजाब में नए गठबंधन के संकेत

उधर, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पंजाब में नए गठबंधन के संकेत दिए हैं। एक टीवी चैनल के साथ बातचीत में शाह ने किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिलने पर राष्ट्रपति शासन की संभावाओं को नकारते हुए कहा कि यह आंकड़ों की बात है। दो-तीन पार्टियां मिलकर सरकार बना सकती हैं। उन्होंने यह संकेत उस समय दिए हैं जब एक दिन पहले ही पंजाब में मतदान प्रक्रिया संपन्न हुई है। रविवार को शिअद (बादल) के नेता बिक्रम सिंह मजीठिया भी भाजपा के साथ दोबारा गठबंधन के संकेत दे चुके हैं।

अमित शाह का कहना है कि कोई भी सर्वे पंजाब की वास्तविकता को बयां नहीं कर सकता है। भाजपा ने पंजाब में बहुत अच्छे ढंग से चुनाव लड़ा है और वह खासे आशावान भी हैं। उल्लेखनीय है कि भाजपा अपने नए सहयोगियों और संयुक्त समाज मोर्चा नई पार्टी के रूप में इस बार चुनाव मैदान में उतरे हैं। ज्यादा पार्टियों के चुनाव मैदान में होने के कारण इन सभी के समीकरण भी बिगड़ गए हैं। कम मतदान में मतों का बंटवारा इसका बड़ा कारण है।

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