इस बार त्रिग्रही योग में मकर संक्रांति

मकर संक्रांति पर्व एक महापर्व है। यह दिन ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गणेश, आद्यशक्ति और सूर्य की आराधना एवं उपासना का है, जो तन-मन-आत्मा को शक्ति प्रदान करता है। इस दिन प्रयाग में पावन त्रिवेणी तट सहित हरिद्वार, नासिक, त्रयंबकेश्वर, गंगा सागर में लाखों-करोड़ों आस्थावान डूबकी लगाते हैं। इसके साथ ही शुरू हो जाता है धैर्य, अहिंसा व भक्ति का प्रतीक कल्पवास। पौष पूर्णिमा से माघी पूर्णिमा एवं मकर संक्रांति से कुंभ संक्रांति तक लाखों श्रद्धालु प्रभु दर्शन का भाव लिए ‘मोक्ष’ की आस में कल्पवास करते है। इस बार मकर संक्रांति 14 जनवरी को होगा। इस दिन मुख्य रूप से स्नान, दान, तर्पण और पूजा का खास महत्व होता है। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन से ऋतु परिवर्तन भी होता है और सर्दियों से गर्मी की ओर मौसम परिवर्तन होता है। मकर संक्रांति के दिन से बसंत ऋतु शुरू होने लगती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस मकर संक्रांति के दिन भगवान शिव ने भगवान विष्णु को आत्मज्ञान का दान दिया था। महाभारत की कथा के अनुसार भीष्म पितामह ने मकर संक्रांति के दिन ही अपनी देह का त्याग किया था इसलिए इसका महत्व और ज्यादा बढ़ जाता है।

सुरेश गांधी

इस साल मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाई जाएगी। इस दिन दान पुण्य का विशेष महत्व माना जाता है। इस दिन सूर्य उत्तरायण होता है, जबकि उत्तरी गोलार्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है। ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार इसी दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। यह संयोग ही है कि इस दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि की स्वराशि मकर में आ रहे हैं, जो दो माह तक रहेंगे। मकर राशि में बुध पहले से ही मौजूद हैं। मकर राशि में एक साथ शनि, बुध और सूर्य की मौजूदगी से त्रिग्रही योग बन रहा है। ज्योतिष के अनुसार ये योग शुभ और अशुभ दोनों तरह के ही परिणाम देता है। इस दिन सूर्य देव दोपहर 2 बजकर 28 मिनट पर अपने पुत्र शनि की स्वामित्व वाली मकर राशि में आ रहे हैं, जो 14 मार्च रात 12 बजकर 15 मिनट तक इसी राशि में रहेंगे। जबकि शनि देव पहले से ही मकर राशि में है। बुध ने पिछले साल दिसंबर 2021 को मकर राशि में गोचर किया था। ऐसे में एक साथ शनि, बुध और सूर्य का मौजूदगी से मकर राशि में त्रिग्रही योग बन रहा है। ये योग कर्क, सिंह, तुला, वृश्चिक व कुंभ के लिए तो शुभ है जबकि मेष, वृषभ, मिथुन, कन्या, धनु, मकर और मीन राशियों के लिए बेहद अशुभ बताया जा रहा है।

खास यह है कि इस वर्ष मकर संक्रांति की शुरुआत रोहणी नक्षत्र में हो रही है। जो शाम 08 बजकर 18 मिनट तक रहेगा। रोहिणी नक्षत्र को बेहद शुभ माना जाता है. शास्त्रों के मुताबिक, इस नक्षत्र में दान-धर्म के कार्य और पूजा करना बेहद फलदायीहोता है। इसके अलावा, मकर संक्रांति पर ब्रह्म योग और आनंदादि योग भी बनने जा रहे हैं। ज्योतिषियों के अनुसार, शांतिदायक कार्यों को प्रारंभ करने के लिए ब्रह्म योग को बेहद शुभ माना गया है। वहीं, आनंदादि योग सभी प्रकार की असुविधाओं को दूर करता है। इस योग में किया गया प्रत्येक कार्य बाधाओं और चिंताओं से मुक्त रहता है। कोई भी शुभ कार्य प्रारंभ करने के लिए आनंदादि योग को शुभ माना गया है। सूर्य देव को हिंदुओं का प्रत्यक्ष देव कहा गया है जिनकी पूजा अर्चना करना विशेष रूप से फलदायी माना जाता है। इस दिन पूरे भारतवर्ष के हर क्षेत्र में कोई न कोई त्योहार मानाया जाता है। इस दिन असम में बीहू तो दक्षिण भारत में पोंगल का त्योहार होता है, गुजरात, महराष्ट्र में इस दिन उत्तरायणी का त्योहार मानाया जाता है। इसके एक दिन पहले पंजाब प्रांत में लोहड़ी का त्योहार मनाते हैं।

इस दिन से दिन लंबे होने लगते हैं और रातें छोटी हो जाती है। इसके अलावा पतंग उड़ाते समय व्यक्ति का शरीर सीधे सूर्य की किरणों के संपर्क में आता है, जिससे उसे सर्दी से जुड़ी कई शारीरिक समस्याओं से निजात मिलने के साथ विटामिन डी भी पर्याप्त मात्रा में मिलता। बता दें, विटामिन डी शरीर के लिए बेहद आवश्यक है जो शरीर के लिए जीवनदायिनी शक्ति की तरह काम करता है। मकर संक्रांति के दिन दान का विशेष महत्व है। इस दिन गरीबों को यथाशक्ति दान करना चाहिए। पवित्र नदियों में स्नान करें। इसके बाद खिचड़ी का दान देना विशेष फलदायी माना गया है। इसके अलावा गुड़-तिल, रेवड़ी, गजक आदि का प्रसाद बांटा जाता है। बता दें, सूर्य का किसी राशि विशेष पर भ्रमण करना संक्रांति कहलाता है। सूर्य हर माह में राशि का परिवर्तन करता है, इसलिए कुल मिलाकर साल में बारह संक्रांतियां होती हैं, लेकिन दो संक्रांतियां सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती हैं। एक मकर संक्रांति और दूसरी कर्क संक्रांति। सूर्य जब मकर राशि में जाता है तब मकर संक्रांति होती है। मकर संक्रांति से अग्नि तत्त्व की शुरुआत होती है। इस समय सूर्य उत्तरायण होता है अतः इस समय किए गए जप और दान का फल अनंत गुना होता है। सूर्य और शनि का सम्बन्ध इस पर्व से होने के कारण यह काफी महत्वपूर्ण है।

कहते हैं इसी त्योहार पर सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने के लिए आते हैं। अगर कुंडली में सूर्य या शनि की स्थिति ख़राब हो तो इस पर्व पर विशेष तरह की पूजा से उसको ठीक कर सकते हैं। इस पर्व पर स्नान, ध्यान और दान विशेष फलदायी होता है। वैज्ञानिक तथ्यों के अनुसार, उत्तरायण में सूर्य की गर्मी शीत के प्रकोप व शीत के कारण होने वाले रोगों को समाप्त करने की क्षमता रखती है। ऐसे में घर की छतों पर जब लोग पतंग उड़ाते हैं तो सूरज की किरणें एक औषधि की तरह काम करती हैं। सर्दी के मौसम में व्यक्ति के शरीर में कफ की मात्रा बढ़ जाती है। साथ ही त्वचा में भी रुखापन आने लगता है। ऐसे में छत पर खड़े होकर पतंग उड़ाने से इन समस्याओं से राहत मिलती है।

इनके लिए शुभ 
कर्क: ये समायावधि आपके लिए शुभ रहेगी. नए संयोगी मिल सकते हैं. पदोन्नति मिल सकती है. व्यापार में लाभ के अवसर बनेंगे.
सिंह: पुराने विवादों से छुटकारा मिलेगा. लाभ के योग बन रहे हैं. ससुराल पक्ष से कोई विशेष उपहार मिल सकता है. 
तुला: बड़ा लाभ मिल सकता है. व्यापार मव्यापार में भी सफलता के योग बन रहे हैं. विदेश यात्रा पर जा सकते हैं. कोई पुराना रुका हुआ धन अचानक से मिल सकता है.
वृश्चिक: आर्थिक स्थिति में सुधार होगा. व्यापार में लाभ के संकेत हैं. नौकरी वालों को पदोन्नति मिल सकती है. 
कुंभ: सुख-सुविधधाओं में वृद्धि होगी. धनलाभ का योग बन रहा है. विदेश यात्रा पर जा सकते हैं

शुभ मुहूर्त
मकर संक्राति पुण्य काल – दोपहर 02ः43 से शाम 05ः45 तक
अवधि – 03 घण्टे 02 मिनट
मकर संक्राति महा पुण्य काल – दोपहर 02ः43 से रात्रि 04ः28 तक
अवधि – 01 घण्टा 45 मिनट

खिचड़ी का है खास महत्व
ऐसी धार्मिक मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन गुड़, घी, नमक और तिल के अलावा काली उड़द की दाल और चावल का दान करना चाहिए। मकर संक्रांति के दिन उड़द की दाल की खिचड़ी खाई जाती है। कई लोग खिचड़ी के स्टॉल बांटकर पुण्य कमाते हैं। देश के कुछ इलाके ऐसे भी है, जहां मकर संक्रांति त्योहार को खिचड़ी के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि मकर संक्रांति पर खिचड़ी खाने से सूर्य देव और शनि देव दोनों की कृपा प्राप्त होती है। ऐसी मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी बनाने की प्रथा बाबा गोरखनाथ के समय से ही शुरू हो गई थी। देश में जब खिलजी ने आक्रमण किया तो नाथ योगियों को युद्ध के दौरान भोजन तैयार करने का समय नहीं मिलता था और वे भूखे-प्यासे युद्ध के लिए निकल जाते थे। उस समय बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जियां एक साथ पकाने की सलाह दी थी। यह खाना जल्दी तैयार हो जाता था और योगियों का पेट भी भर जाता था और साथ में काफी पौष्टिक भी होता था। तत्काल तैयार किए जाने वाले इस व्यंजन का नाम खिचड़ी बाबा गोरखनाथ ने रखा था। खिलजी से मुक्त होने के बाद योगियों ने जब मकर संक्रांति पर्व मनाया था तो उस दिन सभी को खिचड़ी का ही वितरण किया गया था। तभी से मकर संक्रांति पर खिचड़ी बनाने की प्रथा शुरू हो गई। गोरखपुर में स्थित बाबा गोरखनाथ मंदिर में मकर संक्रांति के अवसर पर खिचड़ी मेले का आयोजन हर साल होता है और प्रसाद के रूप में खिचड़ी ही बांटी जाती है। कहा जाता है कि मकर संक्रान्ति के दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि के घर में जाते हैं. ज्योतिष में उड़द की दाल को शनि से संबन्धित माना गया है. ऐसे में उड़द की दाल की खिचड़ी खाने से शनिदेव और सूर्यदेव दोनों की कृपा प्राप्त होती है. इसके अलावा चावल को चंद्रमा का कारक, नमक को शुक्र का, हल्दी को गुरू बृहस्पति का, हरी सब्जियों को बुध का कारक माना गया है. वहीं खिचड़ी की गर्मी से इसका संबन्ध मंगल से जुड़ता है. इस तरह मकर संक्रान्ति के दिन खिचड़ी खाने से कुंडली में करीब करीब सभी ग्रहों की स्थिति बेहतर होती है.

मकर संक्रांति दान और वैज्ञानिक महत्व
मकर संक्रांति पर तिल-लड्डू, चावल,उड़द की छिलकेदार दाल तथा मौसम वाली सब्ज़ी, फल एवं सामथ्र्य के अनुसार वस्त्र, पात्र आदि का दान करने से अलौकिक फल की प्राप्ति होती है. ऐसा पुराणों में वर्णन प्राप्त होता है. ज्योतिषीय आकलन के अनुसार सूर्य की गति हर साल 20 सेकेंड बढ़ रही है। माना जाता है कि आज से 1000 साल पहले मकर संक्रांति 1 जनवरी को मनाई जाती थी। पिछले एक हज़ार साल में इसके दो हफ्ते आगे खिसक जाने की वजह से 14 जनवरी को मनाई जाने लगी। ज्योतिषीयों के अनुसार सूर्य की चाल के आधार पर यह अनुमान लगाया जा रहा है कि 5000 साल बाद मकर संक्रांति फरवरी महीने के अंत में मनाई जाएगी। सूर्य जब एक राशि छोड़कर दूसरी में प्रवेश करता है तो उसे सामान्य आंखों से देखना संभव नहीं है। देवीपुराण में संक्रान्ति काल के बारे में बताया गया है कि स्वस्थ एवं सुखी मनुष्य जब एक बार पलक गिराता है तो उसका तीसवां भाग तत्पर कहलाता है, तत्पर का सौवां भाग त्रुटि कहा जाता है तथा त्रुटि के सौवें भाग में सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश कर जाता है। जितने समय में पृथ्वी सूर्य के चारों ओर एक चक्कर लगाती है, उस अवधि को सौर वर्ष कहते हैं। पृथ्वी का गोलाई में सूर्य के चारों ओर घूमना क्रान्तिचक्र कहलाता है। इस परिधि चक्र को बांटकर बारह राशियां बनी हैं। सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना संक्रान्ति कहलाता है। इसी प्रकार सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने को मकर संक्रान्ति कहते हैं। 12 राशियां होने से सालभर में 12 संक्रांतियां मनाई जाती हैं।

सूर्य हैं साक्षात देवता
आमतौर पर सूर्य को प्रकाश और गर्मी का अक्षुण्ण स्रोत माना जाता है। लेकिन अब वैज्ञानिक भी मान गये हैं कि सूर्य का अस्तित्व समाप्त होने पर पृथ्वी पर विचरण करने वाले सभी जीव-जंतु तीन दिन के भीतर मृत्यु को प्राप्त हो जायेंगे। सूर्य के हमेशा के लिए अंधकार में डूबने से वायुमंडल में मौजूद समूची जलवाष्प ठंडी होकर बर्फ बन गिर जायेगी और कोई भी प्राणी जीवित नहीं रह पायेगा। करीब 50 करोड़ वर्ष पहले से प्रकाशमान सूर्य की प्राणदायिनी उर्जा की रहस्य-शक्ति को हमारे ऋषि-मुनियों ने पांच हजार वर्ष पहले ही जान लिया था और ऋग्वेद में लिख गये थे, ‘आप्रा द्यावा पृथिवी अंतरिक्षः सूर्य आत्मा जगतस्थश्च।’ अर्थात विश्व की चर तथा अचर वस्तुओं की आत्मा सूर्य ही है। ऋग्वेद के मंत्र में सूर्य का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व उल्लिखित है।

हमारे ऋषियों ने हजारों वर्ष पहले जिस सत्य का अनुभव किया था, उसकी विज्ञान सम्मत पुष्टि अब 21वीं सदी में हो रही है। सौरमंडल के सौर ग्रह, उपग्रह और उसमें स्थित जीवधारी सूर्य से ही जीवन प्राप्त कर रहे हैं। पृथ्वी पर जीवन का आधार सूर्य है। सभी जीव-जंतु और वनस्पति जगत का जीवन चक्र पूर्ण रूप से सूर्य पर आश्रित है। काल गणना का दिशा बोध भी मनुष्य को सूर्य ने ही दिया। इसलिए दुनिया की सभी जातियों और सभ्यताओं ने सूर्य को देवता के रूप में पूजा। भारतीय परिप्रेक्ष्य में, वैदिक काल में ज्ञान और प्रकाश के एकीकरण के लिए सूर्योपासना की जाती थी। तैत्रिय-संहिता में उल्लेख है कि सूर्य के प्रकाश से ही चंद्रमा चमकता है। छांदोग्य उपनिषद में सूर्य को ब्रह्म बताया गया है। गायत्री मंत्र में सूर्य को तेज और बुद्धि का पर्याय माना गया है। यजुर्वेद में स्पष्ट कहा गया है कि अंतरिक्ष में व्याप्त सभी विकिरणों में सूर्य की किरणें ही जीव जगत के लिए लाभदायी हैं।

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