12 नवंबर को मनेगी गोपाष्टमी, जानिये क्‍या है गौ पूजन का महत्‍व

कार्तिक शुक्ल अष्टमी भले ही 22 नवंबर को हो, लेकिन इसको लेकर आयोजन 11 नवंबर से ही शुरू हो जाएंगे। गोशालाओं में गाय के पूजन के साथ आयोजन किए जाते हें। आचार्य शक्तिधर त्रिपाठी ने बताया कि हिंदू संस्कृति में गायों को ‘गो माता’ कहा जाता है और उनकी देवी की तरह पूजा की जाती है। गायों को हिंदू धर्म और संस्कृति की आत्मा माना जाता है। देवताओं की तरह उनकी पूजा की जाती है। कई देवियां और देवता एक गाय के अंदर निवास करते हैं और इसलिए गाय हिंदू धर्म में एक विशेष महत्व रखती हैं। गाय को आध्यात्मिक और दिव्य गुणों का स्वामी माना जाता है।

गोपाष्टमी की पूर्व संध्या पर गाय की पूजा करने वाले व्यक्तियों को एक खुशहाल जीवन और अच्छे भाग्य का आशीर्वाद मिलता है। 12 नवंबर को चौक के अवध गोशाला में भजन संध्या हाेगी तो गोसेवाआयोग के आह्वान पर शहर की सभी गोशालाओं में पूजन होगा। गोपाष्टमी के उपलक्ष्य में 11 नवंबर को मलिहाबाद के श्री गोपेश्वर गोशाला में कवि सम्मेलन होगा। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत श्री श्री 108 रविंद्रपुरी जी महाराज के सुबह गोपूजन से आयोजन शुरू होगा। पूजन व परिक्रमा के उपरांत शाम चार बजे गो माता को 56 भोग लगेगा। पांच बजे से कवि सम्मेलन होगा। गोशाला के सदस्य अभिषेक ने बताया कि टूंडला के लटूरी सिंह, फिरोजाबाद के यशपाल यश, मैनपुरी के मनोज चौहान, लखनऊ की हेमा पांडेय व बदायूं के अभिषेक अनंत कविताओं की बारिश करेंगे।

आचार्य आनंद दुबे ने बताया कि 12 नवंबर को कार्तिक शुक्ल पक्ष की अष्टमी को गोपाष्टमी मनाई जाएगी। इसी दिन कामधेनु ने रक्षा करने गोपाल का अभिषेक किया था। इस दिन गाय की पूजा करने से गोपाल श्रीकृष्ण की कृपा मिलती है। चौक के अवध गोशाला में नामित पार्षद अनुराग मिश्रा के संयोजन में कार्यक्रम होगा। माल स्थित गोशाला में अजय गुप्ता की ओर से गोपूजन होगा। मनकामेश्वर मंदिर की महंत देव्या गिरि की ओर से गाय का पूजन होगा। खदरा में महंत धमेंद्र दास जी महाराज गाेरक्षा के लिए हवन-पूजन करेंगे।

इसलिए मनाई जाती है गोपाष्टमी : गोपाष्टमी को लेकर कई कथानक हैं। आचार्य एसएस नागपाल ने बताया कि जब श्रीकृष्ण भगवान ने अपने जीवन के छठें वर्ष में कदम रखा। तब वह अपनी मां यशोदा से जिद करने लगे कि वह अब बड़े हो गए हैं और गाय चराना चाहते हैं। उनके हठ के आगे मां यशोदा को हार माननी पड़ी और उन्हें अपने पिता नंद बाबा के पास आज्ञा लेने के लिए भेज दिया। उस दिन गोपाष्टमी थी और उसी दिन से श्री कृष्ण को गोपाल व गोविंद के नाम से भी जाना जाने लगा। आचार्य अरुण कुमार मिश्रा ने बताया कि ब्रज में इंद्र का प्रकोप इस तरह बरपा की लगातार बारिश होती रही, जिससे बचने के लिए श्री कृष्ण जी ने सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी अंगुली से उठाए रखा। गोपाष्टमी के दिन ही स्वर्ग के राजा इंद्र देव ने अपनी हार स्वीकार की थी। श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली से उतार कर नीचे रखा था। भगवान श्रीकृष्ण स्वयं गोमाता की सेवा करते हुए, गाय के महत्व को सभी के सामने रखा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button