खुशियों और संकल्प का त्योहार है वैसाखी

अमृतसर से लेकर अफगानिस्तान की सीमाओं तक फैले वृहतर पंजाब में वैसाखी का त्योहार सदियों से मनाया जाता रहा है। आजकल पूरे भारत में जहां भी कुछ पंजाबी समूह रहते हैं वहां-वहां ये त्योहार मनाया जाता है।
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वैसाखी मुख्य रूप से समृद्धि और खुशियों का त्योहार है। इसके मनाए जाने का मुख्य आधार पहली वैसाख को पंजाबी नववर्ष का प्रारंभ फसलों के पकने और कटने की किसानों की खुशियां हैं।
पिछले कुछ वर्षों से ईसवीं सन के माह अप्रैल की चौदह तारीख वैसाखी पर्व के लिए निर्धारित कर दी गई है। और इसी दिन के लिए सरकार ने वैसाखी की छुट्टी घोषित की हुई है।
पंजाब सदियों से कृषि प्रधान देश रहा है। कृषि ही वहां के जीवन की सुख समृद्धि और प्रगति का आधार रही है। वैसाखी के दिन इस सुख-समृद्धि की खुशियों को किसान नाच-गाकर ईश्वर का शुक्राना अदा करते हैं। इस अवसर पर होने वाले भांगड़े और गिद्दे अब सारे भारत की सांस्कृतिक गतिविधियों का मुख्य हिस्सा बन चुके हैं।
वैसाखी के दिन को अत्यंत पवित्र और शुद्ध मानते हुए इस दिन धार्मिक केंद्रों तथा सामाजिक संस्थाओं में बड़े और भव्य स्तर पर आयोजन होते हैं। जिस परिवार में बच्चे का आगमन हुआ हो या बेटा-बेटी की शादी हुई हो या नया मकान बनाया हो उसके बाद आने वाली पहली वैसाखी को उन परिवारों में विशेष कार्यक्रम होते हैं और वे अपने तरीके से खुशियां मनाते हैं। कोई भी नया काम शुरू करने के लिए इस दिन को शुभ माना जाता है।
इतिहास की दो घटनाओं ने वैसाखी के पर्व को अधिक यादगार और महत्वपूर्ण बना दिया। ये दो घटनाएं हैं- 1699 की वैसाखी को सिख धर्म के दशम गुरू गुरू गोविंदसिंगजी ने आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ का निर्माण किया तथा 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियावाले बाग में देश की आजादी के लिए हजारों लोग शहीद हुए।
1699 की वैसाखी के दिन आनंदपुर साहिब (पंजाब) में वैसाखी के विशाल समागम में गुरू गोविंदसिंग ने बड़े नाटकीय ढंग से देश और कौम के लिए शहीदी के जज्बे की पांच सिक्खों की परीक्षा ली। गुरू और सिख धर्म के प्रति पांचों सिक्खों की निष्ठा और समर्पण को देखते हुए गुरू साहिब से उन्हें अमृत छकाया और पांचों प्यारों का नाम दिया।
लोहे के बाटे(बड़ा कटौरा) में सतलुज नदी का पानी लेकर उसमें शकर मिलाकर गुरूजी ने अपनी कटार से हिला दिया और ये जल अमृत कहलाया। पांचों प्यारों को अमृत छकाने के बाद गुरू साहिब ने स्वयं भी पांचों प्यारों से अमृत ग्रहण किया।
अमृत छकना एक तरह से धर्म और देश की खातिर कुर्बानी के लिए तैयार रहने का संकल्प था। इसी समागम में गुरूजी ने सिक्खों को पांच ककार-कच्छ (कच्छा), कंगा, केस, कृपाण और कड़ा अनिवार्य रूप से धारण करने का निर्देश दिया। खालसा पंथ का यह स्वरूप आज भी यथावत विद्यमान है।
वैसाखी के दिन से शहादत की एक महान घटना भी जुड़ी हुई है। जालिम अंग्रेजी शासन द्वारा रौलट एक्ट यानि काला कानून पास करने के विरोध में 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियावाले बाग में एक विशाल सभा का आयोजन किया गया। जनरल डायर ने बगैर किसी चेतावनी के सभा की भीड़ पर गोलियों की बौछार कर दी जिसमें एक हजार से ज्यादा लोग शहीद हो गए और बड़ी संख्या में जख्मी हो गए थे।