उत्तर भारत के प्रमुख मंदिरों में यात्रा करने का बना रहे है प्लान, तो जानें इस बारे में…..
भारत एक प्राचीनतम सभ्यता वाला सांस्कृतिक देश हैं। यह विश्व के उन गिने-चुने देशों में से एक है जहां हर वर्ग और समुदाय के लोग शांतिपूर्वक रहते हैं। यहां की भगौलिक स्थिति, जलवायु और विविध संस्कृति को देखने के लिए ही विश्व के कोने-कोने से पर्यटक पहुंचते हैं। वैसे अपनी भारत यात्रा के दौरान पर्यटकों को जो चीज सबसे ज्यादा पसंद आती है तो वह हैं भारत की प्राचीनतम मंदिर। हिंदू पौराणिक कथाओं में अनगिनत देवता हैं और आपको पुरे भारत में इन देवताओं को समर्पित सैकड़ों और हजारों मंदिर मिलेंगे। जिनमे से अधिकांश प्रसिद्ध मंदिर जैसे वैष्णो देवी मंदिर, काशी-विश्वनाथ मंदिर, स्वर्ण मंदिर, आदि उत्तर भारत में स्थित है। उत्तर भारत के प्रसिद्ध मंदिर और दक्षिण के मंदिरों में उपयोग किए जाने वाले डिजाइन के पैटर्न में काफी अंतर है जो इन्हें एक दुसरे से काफी अलग बनाते है। यदि आप इस बार अपने परिवार या दोस्तों के साथ उत्तर भारत के प्रमुख मंदिरों में यात्रा करने का प्लान बना रहे है तो आपको हम उत्तर के प्रसिद्ध मंदिरों के बारे में बताने जा रहे है…
वैष्णो देवी मंदिर
वैष्णो देवी मंदिर, हिन्दू मान्यता अनुसार शक्ति को समर्पित पवित्रतम हिंदू मंदिरों में से एक है, जो भारत के जम्मू और कश्मीर में त्रिकुटा या त्रिकुट पर्वत पर समुद्र तल से 15 किमी की ऊँचाई पर स्थित है। इस धार्मिक स्थल की आराध्य देवी, वैष्णो देवी को सामान्यतः माता रानी और वैष्णवी के नाम से भी जाना जाता है। हर वर्ष, लाखों तीर्थ यात्री, इस मंदिर का दर्शन करते हैं। मान्यतानुसार जिस स्थान पर माँ वैष्णो देवी ने भैरौंनाथ का वध किया, वह स्थान ‘भवन’ के नाम से प्रसिद्ध है। इस स्थान पर देवी महाकाली (दाएँ), महासरस्वती (बाएँ) और महालक्ष्मी (मध्य), पिण्डी के रूप में गुफा में विराजित है, इन तीनों पिण्डियों के इस सम्मिलित रूप को वैष्णो देवी का रूप कहा जाता है। यहां, तीर्थयात्री लगभग 13 किमी तक पैदल चलकर छोटी गुफाओं तक पहुँचते हैं जो 108 शक्तिपीठों में से एक है। एक बड़ी प्रसिद्ध मान्यता है कि जब वैष्णो देवी माता के नाम की आवाज़ सुनते हैं तो श्रद्धालु उन के दर्शन करने के लिए कठिन से कठिन यात्रा को भी को पूरा करने में सक्षम होते हैं।
मान्यतानुसार, भैरौंनाथ का वध करने पर उसका शीश भवन से 3 किमी दूर जिस स्थान पर गिरा, आज उस स्थान भैरौंनाथ के मंदिर’ के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि अपने वध के बाद भैरौंनाथ को अपनी भूल का पश्चाताप हुआ और उसने देवी से क्षमादान की भीख माँगी। मान्यतानुसार, वैष्णो देवी ने भैरौंनाथ को वरदान देते हुए कहा कि “मेरे दर्शन तब तक पूरे नहीं माने जाएँगे, जब तक कोई भक्त मेरे बाद तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा।”
काशी विश्वनाथ मंदिर
काशी विश्वनाथ मंदिर उत्तर प्रदेश राज्य के वाराणसी शहर में स्थित एक प्रसिद्ध शिव मंदिर है। यह उत्तर प्रदेश के काशी में पवित्र गंगा नदी के तट पर स्थित है और यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। काशी विश्वनाथ मंदिर का हिंदू धर्म में एक विशिष्ट स्थान है। ऐसा माना जाता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में स्थित भगवान शिव का यह मंदिर हिंदूओं के प्राचीन मंदिरों में से एक है, जोकि गंगा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है। कहा जाता है कि यह मंदिर भगवान शिव और माता पार्वती का आदि स्थान है। मंदिर के मुख्य देवता को विश्वनाथ या विश्वेश्वर नाम से जाना जाता है जिसका अर्थ है पूरे ब्रह्मांड का शासक। वाराणसी शहर को काशी के नाम से भी जाना जाता है। इसलिए इस मंदिर को काशी विश्वनाथ मंदिर कहा जाता है। मंदिर का वर्तमान स्वरूप 1780 में इंदौर की मराठा शासक अहिल्या बाई होल्कर द्वारा निर्मित करवाया गया था। इस मंदिर का प्रबंधन उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा किया गया है।
बद्रीनाथ मंदिर
बद्रीनाथ मंदिर या बद्रीनारायण मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित हिंदू धर्म का प्रमुख मंदिर है जो उत्तराखंड में गढ़वाल पहाड़ी पर अलकनंदा नदी के पास स्थित है। यह मंदिर चार धाम और छोटा चार धाम तीर्थ यात्रा का एक प्रमुख हिस्सा है, जो 10,279 फीट की ऊंचाई पर स्थित हिमालय से घिरा हुआ है। बद्रीनाथ चार छोटे और बड़े धामों में से एक धाम भी है। यहां का मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है जो कि उत्तराखंड के बद्रीनाथ में स्थित है। इस मंदिर को भगवान विष्णु के 108 दिव्य धामों में से एक माना जाता है। यह हिमालयी क्षेत्र में मौसम की स्थिति के कारण हर साल (अप्रैल के अंत और नवंबर की शुरुआत के बीच) छह महीने के लिए यह खुला रहता है। यह मंदिर अलक्षनंदा नदी के किनारे स्थित है। भारत के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक इस मंदिर का उल्लेख विष्णु पुराण और स्कंद पुराण जैसे प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। उत्तर भारत के प्रसिद्ध मंदिर में से एक बद्रीनाथ मंदिर में भगवान विष्णु की काले पत्थर की मूर्ति 1 मीटर लंबी है, जिसे विष्णु के 8 स्वयंभू मूर्तियों में से एक माना जाता है। बता दे बद्रीनाथ मंदिर का मुख्य द्वार कई रंगों से सजा हुआ है और इसमें भगवान विष्णु के अलावा कई देवताओं की मूर्ति है। बद्रीनाथ मंदिर का धार्मिक महत्व और पवित्रता भक्तों को बेहद आकर्षित करती है और यहां पर हर साल लाखों की संख्या में तीर्थ यात्री और पर्यटक आते हैं।
अमरनाथ गुफा
अमरनाथ हिन्दुओं का एक प्रमुख तीर्थस्थल है। जम्मू कश्मीर में स्थित अमरनाथ गुफा दुनिया भर में स्थित भगवान शिव के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है। यहां का मुख्य आकर्षण का केंद्र है अमरनाथ की गुफा। यहाँ की प्रमुख विशेषता पवित्र गुफा में बर्फ से प्राकृतिक शिवलिंग का निर्मित होना है। प्राकृतिक हिम से निर्मित होने के कारण इसे स्वयंभू हिमानी शिवलिंग भी कहते हैं। आषाढ़ पूर्णिमा से शुरू होकर रक्षाबंधन तक पूरे सावन महीने में होने वाले पवित्र हिमलिंग दर्शन के लिए लाखों लोग यहां आते हैं। गुफा की परिधि लगभग डेढ़ सौ फुट है और इसमें ऊपर से बर्फ के पानी की बूँदें जगह-जगह टपकती रहती हैं। यहीं पर एक ऐसी जगह है, जिसमें टपकने वाली हिम बूँदों से लगभग दस फुट लंबा शिवलिंग बनता है। चन्द्रमा के घटने-बढ़ने के साथ-साथ इस बर्फ का आकार भी घटता-बढ़ता रहता है। श्रावण पूर्णिमा को यह अपने पूरे आकार में आ जाता है और अमावस्या तक धीरे-धीरे छोटा होता जाता है। आश्चर्य की बात यही है कि यह शिवलिंग ठोस बर्फ का बना होता है, जबकि गुफा में आमतौर पर कच्ची बर्फ ही होती है जो हाथ में लेते ही भुरभुरा जाए। मूल अमरनाथ शिवलिंग से कई फुट दूर गणेश, भैरव और पार्वती के वैसे ही अलग अलग हिमखंड हैं।
अमरनाथ की गुफा श्रीनगर से 141 किमी दूर 3888 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। गुफा की लंबाई 19 मीटर और चौड़ाई 16 मीटर है। हिंदू मान्यता के अनुसार अमरनाथ यात्रा को सबसे कठिन यात्रा माना जाता है। कहा जाता है जिसने अमरनाथ की यात्रा कर ली, उसका जीवन सफल हो गया। इसीलिए यदि आप अपने दोस्तों के साथ घूमने के लिए उत्तर भारत के प्रमुख तीर्थ स्थल सर्च कर रहें हैं तो आप अमरनाथ गुफा की यात्रा करके अपने जीवन को धन्य कर सकते है।
स्वर्ण मंदिर
उत्तर भारत में सबसे आध्यात्मिक स्थानों में से एक, गोल्डन टेम्पल सिख धर्म का सबसे पवित्र मंदिर है। यह भारत के राज्य पंजाब के अमृतसर शहर में स्थित है और यहाँ का सबसे बड़ा आकर्षण है। पूरा अमृतसर शहर स्वर्ण मंदिर के चारों तरफ बसा हुआ है। स्वर्ण मंदिर में प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं। अमृतसर का नाम वास्तव में उस सरोवर के नाम पर रखा गया है जिसका निर्माण गुरु राम दास ने स्वयं अपने हाथों से किया था। यह गुरुद्वारा इसी सरोवर के बीचोबीच स्थित है। इस गुरुद्वारे का बाहरी हिस्सा सोने का बना हुआ है, इसलिए इसे ‘स्वर्ण मंदिर’ के नाम से भी जाना जाता है। श्रद्धालु अपने पापों से छुटकारा पाने के लिए इस सरोवर में स्नान करते हैं। सिखों के चौथे गुरू रामदास जी ने इसकी नींव रखी थी। कुछ स्रोतों में यह कहा गया है कि गुरुजी ने लाहौर के एक सूफी सन्त मियां मीर से दिसम्बर, 1588 में इस गुरुद्वारे की नींव रखवाई थी। लगभग 400 साल पुराने इस गुरुद्वारे का नक्शा खुद गुरु अर्जुन देव जी ने तैयार किया था। यह गुरुद्वारा शिल्प सौंदर्य की अनूठी मिसाल है। इसकी नक्काशी और बाहरी सुंदरता देखते ही बनती है। गुरुद्वारे के चारों ओर दरवाजे हैं, जो चारों दिशाओं (पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण) में खुलते हैं। उस समय भी समाज चार जातियों में विभाजित था और कई जातियों के लोगों को अनेक मंदिरों आदि में जाने की इजाजत नहीं थी, लेकिन इस गुरुद्वारे के यह चारों दरवाजे उन चारों जातियों को यहां आने के लिए आमंत्रित करते थे। यहां हर धर्म के अनुयायी का स्वागत किया जाता है। यही वजह है कि यहां सिखों के अलावा हर साल विभिन्न धर्मों के श्रद्धालु भी आते हैं, जो स्वर्ण मंदिर और सिख धर्म के प्रति अटूट आस्था रखते हैं।
अक्षरधाम मंदिर
‘अक्षरधाम’ भगवान स्वामीनारायण का निवास स्थान है। स्वामीनारायण अक्षरधाम मंदिर उत्तर भारत का एक और सबसे प्रसिद्ध मंदिर है जो दिल्ली में स्थित है। अक्षरधाम मंदिर साल 2005 में खोला गया था, जो भगवान स्वामीनारायण को समर्पित है। यमुना अदि के तट पर स्थित अक्षरधाम मंदिर हिंदू धर्म और इसकी प्राचीन संस्कृति को दर्शाता है। इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि इस मंदिर ने दुनिया के सबसे बड़े व्यापक हिंदू मंदिर के रूप में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपनी जगह बनाई है। यह मंदिर महान संत और भगवान नारायण के अवतार भगवान स्वामीनारायण (1781- 1830) की श्रद्धांजलि स्वरूप समर्पित है। अक्षरधाम मन्दिर को गुलाबी, सफेद संगमरमर और बलुआ पत्थरों के मिश्रण से बनाया गया है। इस मंदिर को बनाने में स्टील, लोहे और कंक्रीट का इस्तेमाल नहीं किया गया। मंदिर को बनाने में लगभग पांच साल का समय लगा था। श्री अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था के प्रमुख स्वामी महाराज के नेतृत्व में इस मंदिर को बनाया गया था। करीब 100 एकड़ भूमि में फैले इस मंदिर को 11 हजार से ज्यादा कारीगरों की मदद से बनाया गया। पूरे मंदिर को पांच प्रमुख भागों में विभाजित किया गया है। मंदिर में उच्च संरचना में 234 नक्काशीदार खंभे, 9 अलंकृत गुंबदों, 20 शिखर होने के साथ 20,000 मूर्तियां भी शामिल हैं। मंदिर में ऋषियों और संतों की प्रतिमाओं को भी स्थापित किया गया है।
चामुंडा देवी मंदिर
उत्तर भारत के प्रमुख मंदिर में से एक चामुंडा देवी का यह पहाड़ी मंदिर हिमाचल प्रदेश राज्य के पालमपुर से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। चामुण्डा देवी मंदिर शक्ति के 51 शक्ति पीठो में से एक है। वर्तमान में उत्तर भारत की नौ देवियों में चामुण्डा देवी का दुसरा दर्शन होता है वैष्णो देवी से शुरू होने वाली नौ देवी यात्रा में माँ चामुण्डा देवी, माँ वज्रेश्वरी देवी, माँ ज्वाला देवी, माँ चिंतपुरणी देवी, माँ नैना देवी, माँ मनसा देवी, माँ कालिका देवी, माँ शाकम्भरी देवी सहारनपुर आदि शामिल हैं यहां पर आकर श्रद्धालु अपने भावना के पुष्प मां चामुण्डा देवी के चरणों में अर्पित करते हैं। मान्यता है कि यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं की सभी मनोकामना पूर्ण होती है। देश के कोने-कोने से भक्त यहां पर आकर माता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। चामुण्डा देवी का मंदिर समुद्र तल से 1000 मी। की ऊँचाई पर स्थित है। यह धर्मशाला से 15 कि।मी। की दूरी पर है। मंदिर पारंपरिक हिमाचली वास्तुकला में डिजाइन किया गया है मंदिर में महाभारत और रामायण के दृश्यों की नक्काशी है। ऐसा माना जाता है कि चामुंडा देवी मंदिर 1500 के दशक के दौरान अस्तित्व में आया था जब देवी चामुंडा स्थानीय पुजारी के सपने में प्रकट हुई थी और मूर्ति को एक विशिष्ट स्थान पर स्थानांतरित करने का आग्रह किया था जो वर्तमान मंदिर की मेजबानी करता है। पहले इस जगह पर सिर्फ पत्थर के रास्ते कटे हुए थे, लेकिन अब इस मंदिर के दर्शन करने के लिए आपको 400 सीढ़ियों को चढ़कर जाना होगा।
पर्यटक धर्मशाला से प्राकृतिक सौंदर्य का आंनद उठा कर चामुण्डा देवी मंदिर पहुंचते हैं। प्रकृति ने अपनी सुंदरता यहां पर भरपूर मात्रा में लुटाई है। कलकल करते झरने और तेज वेग से बहती नदियां पर्यटकों के जहन में अमिट छाप छोड़ती है। मंदिर के बीच वाला भाग ध्यान मुद्रा के लिए उपयुक्त स्थान है। यहां पर ध्यान लगाने पर श्रद्धालुओं को अध्यात्मिक आंनद कि प्राप्ति होती है। पहाड़ी सुंदरता, जंगल और नदिया पर्यटको को मोहित कर देती है। उन्हें ऐसा प्रतीत होता है कि वह किसी जादूई नगरी में आ गये हैं। काफी संख्या में श्रद्धालु यात्रा मार्ग में अपने पूर्वजो के लिए प्रार्थना करते हैं कि उन्हें आध्यात्मिक आंनद कि प्राप्ति हो। इसके लिए वह काफी सारे अनुष्ठान करते हैं। श्रद्धालु यहाँ पर स्थित बाण गंगा में स्नान करते हैं। बाण गंगा में स्नान करना शुभ और मंगलमय माना जाता है। मान्यता है कि गंगा नदी में स्नान करने से शरीर पवित्र हो जाता है। श्रद्धालु स्नान करते समय भगवान शंकर की आराधना करते हैं। मंदिर के पास ही में एक कुण्ड है जिसमें स्नान करने के पश्चात ही श्रद्धालु देवी की प्रतिमा के दर्शन करते हैं। मंदिर के गर्भ-गृह कि प्रमुख प्रतिमा तक सभी आने वाले श्रद्धालुओं की पहुंच नहीं है। मुख्य प्रतिमा को ढक कर रखा गया है। ताकि उसकी पवित्रता में कमी न आ सके। मंदिर के पीछे की ओर एक पवित्र गुफा है जिसके अंदर भगवान शंकर का प्रतीक प्राकृतिक शिवलिंग है। इन सभी प्रमुख आकर्षक चीजो के अलावा मंदिर के पास ही में विभिन्न देवी-देवताओं कि अद़भूत आकृतियां है। मंदिर के मुख्य द्वार के पास ही में हनुमान जी और भैरो नाथ की प्रतिमा है। चामुण्डा देवी में वर्ष में आने वाली दोनो नवरात्रि बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। नवरात्रि में यहां पर विशेष तौर पर माता की पूजा की जाती है। मंदिर के अंदर अखण्ड पाठ किये जाते हैं। सुबह के समय में सप्तचण्डी का पाठ किया जाता है।
प्रेम मंदिर
उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में स्थित प्रेम मंदिर राधा कृष्ण को समर्पित भव्य मंदिर है जिनके दर्शन के लिए दूर दूर से पर्यटक आते है। इसका निर्माण जगद्गुरु कृपालु महाराज द्वारा भगवान कृष्ण और राधा के मन्दिर के रूप में करवाया गया है। इस मन्दिर के निर्माण में 11 वर्ष का समय और लगभग 100 करोड़ रुपए की धन राशि लगी है। इसमें इटैलियन करारा संगमरमर का प्रयोग किया गया है और इसे राजस्थान और उत्तरप्रदेश के एक हजार शिल्पकारों ने तैयार किया है। यह मंदिर अपनी भव्यता और खूबसूरती के लिए जाना जाता है जो यहां आने वाले लोगों को बेहद आकर्षित करती है। आप जब भी अपनी यात्रा प्रेम मंदिर के दर्शन के लिए आयेंगें तो मंदिर में भगवान कृष्ण के जीवन का चित्रण करती हुई कई मूर्तियाँ और कृष्ण के जीवन के विभिन्न दृश्य, जैसे गोवर्धन पर्वत को उठाते हुए मंदिर की परिधि पर चित्रित देख सकेगें। बात दे इस मंदिर में हर साल जन्माष्टमी और राधाष्टमी त्योहारों को बड़े ही उत्साह और धूम-धाम के साथ मनाता है।
बजरेश्वरी देवी मंदिर
श्री बजरेश्वरी देवी मंदिर जिसे कांगड़ा देवी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, एक हिंदू मंदिर है जो भारत के हिमाचल प्रदेश में, शहर कांगड़ा में स्थित दुर्गा का एक रूप वज्रेश्वरी देवी को समर्पित है। बजरेश्वरी देवी मंदिर उत्तर भारत में सबसे महत्वपूर्ण आकर्षणों में से एक है क्योंकि यह भारत के 51 शक्ति पीठों में से एक है। माना जाता है मंदिर का निर्माण उस स्थान पर किया गया है जहाँ एक बार प्रसिद्ध अश्वमेध या अश्व-यज्ञ हुआ था। इस मंदिर में वार्षिक मकर संक्रांति त्योहार बहुत धूमधाम और शो के साथ मनाया जाता है। इस शुभ अवसर पर देवी की मूर्ति पर घी लगाया जाता है और 100 बार जल डाला जाता है। उसके बाद मूर्ति को फूलों से सजाया जाता है।
गुरुद्वारा बंगला साहिब
गुरुद्वारा बंगला साहिब सिख धर्म का एक धार्मिक स्थल है जो दिल्ली में कनॉट प्लेस के पास बाबा खड़क सिंह मार्ग पर स्थित है। इस गुरुद्वारा का नाम आठवें सिख गुरु, गुरु हरकिशन साहिब के नाम पर रखा गया है। इसके साथ ही यह भारत में सिख समुदाय के लिए सबसे महत्वपूर्ण पूजा स्थल में से एक है। गुरुद्वारा बंगला साहिब एक बड़ा ऐतिहासिक, सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व है, जिसकी वजह से बड़ी संख्या में लोग इसके दर्शन करने के लिए आते हैं। इस गुरूद्वारे के दर्शन करना यात्रियों को एक शानदार अनुभव देता है क्योंकि यहां परिसर में सुरक्षा और सफाई का बेहद ध्यान रखा जाता है, जिसकी वजह से यहां की यात्रा पर्यटकों के लिए भेद सुखद साबित होती है। यहां की सबसे खास बात यह है कि गुरुद्वारा के रखरखाव के बहुत सारे कार्य स्वयंसेवकों और भक्तों द्वारा किए जाते हैं।
द्वारकाधीश मंदिर
द्वारकाधीश मंदिर मथुरा और उत्तर भारत के सबसे पवित्र मंदिरों में से एक है। इस मंदिर को ‘द्वारकाधीश का मंदिर’ ‘द्वारकाधीश जगत मंदिर’ और ‘द्वारकाधीश के राजा’ के नाम से पुकारा जाता है। मंदिर भारत के गुजरात के द्वारका में स्थित है। भगवान कृष्ण को समर्पित “द्वारकाधीश मंदिर” का निर्माण 1814 में एक कृष्ण भक्त द्वारा बनवाया गया था। द्वारकाधीश जगत मंदिर अन्य मंदिर की अपेक्षाकृत नया है, लेकिन अत्यधिक पूजनीय भी है, जहाँ हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन द्वारकाधीश के दर्शन के लिए आते हैं। द्वारकाधीश मंदिर अपनी विस्तृत वास्तुकला और चित्रों के लिए देश भर में प्रसिद्ध है जो भगवान के जीवन के विभिन्न पहलुओं दर्शाती है। मंदिर के ऊपर का ध्वज सूर्य और चंद्रमा को दर्शाता है, जो माना जाता है कि यह दर्शाता है कि कृष्ण तब तक रहेंगे जब तक सूर्य और चंद्रमा पृथ्वी पर मौजूद रहेंगे। ध्वज को दिन में 5 बार से बदल दिया जाता है, लेकिन प्रतीक समान रहता है। मंदिर में पचहत्तर स्तंभों पर निर्मित पांच मंजिला संरचना है। मंदिर का शिखर 78।3 मीटर ऊंचा है। मंदिर का निर्माण चूना पत्थर से हुआ है जो अभी भी प्राचीन स्थिति में है। यह मंदिर मानसून की शुरुआत मनाये जाने वाले अद्भुद झूले उत्सव के लिए भी जाना-जाता है, जिस दौरान हजारों की संख्या में श्र्धालुयों और पर्यटकों की भीड़ देखी जाती है।