कोरोना ने ले जान, बहनों के कंधे पर श्मशान पहुंचा इकलौते भाई का शव..

शव किसी का भी हो बहुत भारी होता है। भाई और बेटे का हो तो दर्द और बढ़ जाता है। शनिवार को कोरोना संक्रमित भाई की मौत के बाद जब शव उठाने के लिए कोई नहीं मिला तो दो बहनें खुद ही शव लेकर श्मशान पहुंच गई। पीढ़ा यहीं खत्म नहीं हुई। श्मशान में चिता लगाने तक के लिए बहनें भटकती रहीं लेकिन कोई आगे नहीं आया। आखिर श्मशान भटक रही बहनों को देख आरएसएस के कुछ कार्यकर्ताओं ने मदद को हाथ बढ़ाया और अंतिम संस्कार हो पाया। काठगोदाम में एक निजी स्कूल चलाने वाले मनोज कपिल की बहनों ने कभी नहीं सोचा होगा कि जिस भाई के कंधों पर कभी उनकी डोली उठी थी, उसकी अर्थी उन्हें अकेले ही उठानी होगी। मनोज यहां सुशीला तिवारी अस्पताल में भर्ती थे। शुक्रवार को उनका निधन हो गया। घर में पत्नी और बुजुर्ग मां को निधन की सूचना देने की किसी की हिम्मत न हुई, तो लखनऊ रह रही बहनों को सूचित किया गया। लखनऊ से पहुंचीं बहनों ने सुशीला तिवारी अस्पताल में संपर्क किया तो पता चला शव मोर्चरी में रखा है। दोनों बहनें इकलौते भाई का शव लेने मोर्चरी पहुंचीं और वहां रखे कई शवों में से अपने भाई का शव खोजा। 

एंबुलेंस में शव रखने तक के लिए नहीं मिला कोई 
भाई का शव मिलने के बाद इसे एंबुलेंस में रखने के लिए कोई नहीं मिला तो दोनों बहनों ने जैसे-तैसे शव को एंबुलेंस में रखा और श्मशान घाट के लिए रवाना हुईं। अब यहां नयी चुनौती थी। एंबुलेंस चालक शव छोड़कर चलता बना। अब चुनौती थी चिता लगाने की। दोनों बहनें काफी देर तक चिता लगाने के लिए भटकती रहीं लेकिन कोई मदद को नहीं आया। आए भी कौन सब अपने-अपने गमों में डूबे हुए थे। बाद में आरएसएस के नगर प्रचारक कमल और उनकी टीम ने दोनों बहनों की मदद कर अंतिम संस्कार करवाया। दोनों बहनों ने ही अपने इकलौते भाई को मुखाग्नि दी।  

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