पांच राज्यों के चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद पार्टी में एक बार फिर सियासी तूफान की आहट, सोनिया गांधी ने…

पांच राज्यों के चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद पार्टी में एक बार फिर असंतोषष के मुखर होने के पुख्ता संकेत मिलने लगे हैं। संगठन की मौजूदा हालत और जमीनी राजनीतिक हकीकत को भांपने में नेतृत्व की कमजोरी अंदरखाने पनप रहे असंतोषष की ब़़डी वजह है। पार्टी के असंतुष्ट जी–23 खेमे के नेताओं ने पश्चिम बंगाल में तृणमूल की जीत के बाद ममता बनर्जी की जिस तरह खुलकर तारीफों के पुल बांधने शुरू किए हैं, वह कांग्रेस हाईकमान के लिए चिता का संकेत है क्योंकि वे बिना लाग लपेट दीदी में विपक्ष के राष्ट्रीय नेतृत्व की संभावना देखने लगे हैं। कांग्रेस हाईकमान के करीबी मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का ममता को देश की नेता बताए जाने के बयान को भी असंतुष्ट खेमा बेहद अहम मान रहा है।

ताजा चुनावी शिकस्त के बाद असंतोषष की आहट तो कांग्रेस हाईकमान को भी हो चुकी है। इसीलिए कोरोना महामारी पर चर्चा के एजेंडे के लिए शुक्रवार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पार्टी संसदीय दल की बैठक बुलाई है। हालांकि असंतुष्ट खेमे के नेताओं का कहना है कि ऐसी बैठकों से बहुत फायदा नहीं होने वाला और इससे जाहिर है कि नेतृत्व अपनी आंखों की पट्टी अब भी हटाना नहीं चाहता। जी–23 समूह के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि केरल और असम की हार और बंगाल में सफाए के बाद स्थिति की गंभीरता कहीं ज्यादा है। उनके अनुसार बंगाल में यह साफ दिख रहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की जो़़डी के साथ ममता केंद्र की पूरी सत्ता से अकेले ल़़ड रही थीं तब आइएसएफ से गठबंधन करने की पहली गलती कांग्रेस ने की। इसके बाद चाहे एक दिन की रैली ही हो मगर राहुल गांधी ने सीधे ममता बनर्जी पर सियासी वार किया। उनका कहना था कि बात यहीं खत्म हो जाती लेकिन बंगाल कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने भाजपा के साथ दीदी के शपथ का बहिष्कार कर हद कर दी।

कांग्रेस की मौजूदा हालत को लेकर चिंतित जी-23 के एक दूसरे वरिष्ठ नेता ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं रह गया कि नरेंद्र मोदी से मुकाबले के लिए ममता बनर्जी देश में विपक्ष की सबसे ताकतवर नेता के रूप में उभर चुकी हैं और उनके पक्ष में लोग सामने आने लगे हैं। राकांपा नेता शरद पवार, द्रमुक प्रमुख एमके स्टालिन, शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे, सपा नेता अखिलेश यादव, टीआरएस प्रमुख के चंद्रशेखर राव के अलावा कई अन्य नेता ममता के साथ हैं। आंध्र के सीएम जगन मोहन रेड्डी और बसपा प्रमुख मायावती भी देर-सबेर दीदी के साथ आ सकते हैं। इतना ही नहीं जो परिस्थितियां बन रही हैं उसमें बीजद प्रमुख ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक के आने का विकल्प भी खुला है जिनके ममता से निजी रिश्ते भी अच्छे हैं।

असंतुष्ट खेमे के इस नेता ने कहा कि ऐसे में कांग्रेस नेतृत्व मौजूदा राजनीतिक हकीकत को स्वीकार करते हुए संगठन और कार्यशैली में बदलाव के सुझावों पर तत्काल अमल शुरू नहीं करेगा तो बहुत देर हो जाएगी और पार्टी के दूसरे कई वरिष्ठ नेता भी अब खुलकर सामने आने की तैयारी में हैं। असम और केरल के भी कई नेता जिसमें के.सुधाकरन और मुरलीधरन जैसे नेता भी हैं वे पार्टी की मौजूदा स्थिति पर चुप्पी तोड़ खुलकर मैदान में आ सकते हैं।

बंगाल में जीत के बाद वैसे तो ममता को तमाम दलों के नेताओं ने बधाई दी मगर कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं की बधाई टिप्पणियों के गहरे राजनीतिक संदेश हैं। भाजपा को मात देने पर जी-23 के प्रमुख गुलाम नबी आजाद ने जहां ममता को पूरब की शेरनी बताया तो आनंद शर्मा ने कहा कि भाजपा के सियासी बुलडोजर को थाम दीदी ने समावेशी लोकतंत्र में विश्वास करने वाली ताकतों को उम्मीद की नई किरण दिखाई है। मनीष तिवारी ने तो ममता को झांसी की रानी करार देते हुए कहा कि उन्होंने इतिहास को दोहराया है। वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने भी दीदी की तारीफ में कसर नहीं छो़़डी। वैसे असंतुष्ट खेमा कमलनाथ की टिप्पणी को सियासी रूप से बेहद अहम मान रहा क्योंकि वे कांग्रेस नेतृत्व के करीबी नेताओं में शामिल हैं।

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