श्री सिद्ध नरसिंह मंदिर समिति ने ताम्रपत्र को मंदिर में लाने के शुरू किए प्रयास, पढ़े पूरी खबर

चंपावत जिले के खेतीखान के बांजगांव में पूर्व प्रधान सुरेश देउपा के परिवार के पास छह सौ साल पुराना ताम्रपत्र है। माना जा रहा है कि इसका संबंध क्षेत्र में स्थित प्रसिद्ध सिद्ध नरसिंह बाबा से है। मंदिर के भव्य स्वरूप में पुनर्निर्मित होने के कारण यह मंदिर खासा चर्चा में है। इस खबर के सामने आने के बाद श्री सिद्ध नरसिंह मंदिर समिति ने ताम्रपत्र को मंदिर में लाने के प्रयास शुरू कर दिए हैं।

इन दिनों मंदिर समिति मंदिर से संबंधित प्राचीन वस्तुओं की खोजने में लगी है। पता चला कि बांजगांव में एक ऐसा ताम्रपत्र है जो छह सौ साल पुराना है। ताम्रपत्र में शके 1334 तथा विक्रम संवत 1469 वर्णित है। लोगों का मानना है कि ताम्र पत्र में उल्लखित बातें अगर स्पष्ट रूप से समझ में आ जाएंगी तो सिद्ध मंदिर से जुड़ी कुछ प्राचीन चीजें भी जनमानस के सामने स्पष्ट हो जाएंगी।

खटीमा पीपी कॉलेज के इतिहास विभाग के प्राध्यापक डाॅ. प्रशांत जोशी एवं उत्तराखंड ज्ञान कोष के लेखक भगवान सिंह धामी के अनुसार यह ताम्रपत्र कई मायनों में महत्वपूर्ण है। यह ताम्रपत्र चंद शासक ज्ञानचंद का है। इस ताम्रपत्र की सबसे खास बात यह है कि इसमें चंद शासकों द्वारा प्रथम बार राजा के स्थान पर महाराजाधिराज शब्द का प्रयोग किया गया है। साथ ही शक तथा विक्रम संवत दोनों का एक साथ उल्लेख इस ताम्रपत्र को विशिष्ट बनाता है।

इतिहासकारों के अनुसार अधिकांश ताम्रपत्रों में शक संवत का प्रयोग किया गया है। ताम्रपत्र में फूंगर और खूंटी क्षेत्र का भी नाम उल्लखित है। इतिहासकार डा. रामसिंह ने इसे नरसिंहडांडा का ताम्रपत्र कहा है। डा. प्रशान्त जोशी के अनुसार राजा ज्ञानचंद के ऐसी ही बहुत से ताम्रपत्र व अभिलेख काली कुमाऊं क्षेत्र में मिलते हैं। इनमें मनटांडे नौले में शक 1314 का अभिलेख, मादली का शके 1331 का ताम्रपत्र, खूंटी का 1306 का ताम्रपत्र, पंचोली किम्वाड़ी का 1341 का ताम्रपत्र प्रमुख है। इस दावे के बाद मंदिर समिति ताम्रपत्र को मंदिर लाने के प्रयास करने में जुट गई है। समिति अध्यक्ष गोविंद पंगरिया ने बताया कि इस संबंध में सुरेश देउपा से बातचीत शुरू कर दी गई है।

 

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