ट्रंप के समर्थन में खुलकर सामने आई जर्मन चांसलर एंगेला मर्केल…

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ट्विटर अकाउंट को स्थायी रूप से सस्पेंड किए जाने को लेकर जर्मन चांसलर एंगेला मर्केल ने चिंता जताई है. जर्मनी की मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जर्मन चांसलर मर्केल के प्रवक्ता ने सोमवार को पत्रकारों से ये बात कही है.

प्रवक्ता स्टीफन सीबर्ट ने कहा कि चांसलर का मानना है कि ट्रंप के अकाउंट पर स्थायी रूप से बैन लगाना समस्या पैदा करने वाला है.

मर्केल के प्रवक्ता ने कहा, “विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मूल अधिकार है. इसे देखते हुए चांसलर का मानना है कि राष्ट्रपति ट्रंप के अकाउंट को स्थायी रूप से सस्पेंड किया जाना समस्याजनक है.”

प्रवक्ता सीबर्ट ने कहा, “चांसलर इस बात से पूरी तरह सहमत है कि ट्रंप की अनुचित पोस्ट को लेकर चेतावनी जारी किया जाना बिल्कुल सही है. हालांकि, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर किसी भी तरह की पाबंदी कानून के जरिए लगाई जानी चाहिए, ना कि निजी कंपनियों द्वारा.”

छह जनवरी को यूएस कैपिटल पर ट्रंप समर्थकों के धावा बोलने के बाद ट्विटर और फेसबुक ने ट्रंप के अकाउंट को स्थायी रूप से सस्पेंड कर दिया था. कैपिटल हिल में ट्रंप समर्थकों ने घंटों तक उत्पात मचाया और इस दौरान पांच लोगों की जानें चली गईं.

ट्विटर ने अपने फैसले का बचाव करते हुए कहा कि ट्रंप के ट्वीट से और ज्यादा हिंसा भड़क सकती थी.

ट्विटर के फैसले को लेकर जताई जा रही चिंता

जर्मनी में हुए तमाम ओपिनियन पोल्स में ज्यादातर लोगों ने ट्रंप के अकाउंट को सस्पेंड किए जाने का समर्थन किया है. हालांकि, कई राजनेताओं और अधिकारियों ने ट्विटर के फैसले को लेकर चिंता जाहिर की है.

सोशल डेमोक्रैट पार्टी के सांसद जेन्स जिमरमैन ने जर्मनी के अखबार डैचे वैले से कहा, “ट्रंप के अकाउंट पर बैन समस्या पैदा करने वाला है क्योंकि हमें ये पूछना होगा कि इसका आधार क्या है. आखिर किस कानून के आधार पर किसी अकाउंट को सस्पेंड किया जा सकता है. सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स की इस तरह की कार्रवाई के भविष्य के लिए क्या मायने होंगे?”

जिमरमैन ने कहा, “हम एक लोकतांत्रिक देश के प्रमुख के बारे में बात कर रहे हैं. जाहिर तौर पर, ट्रंप जर्मनी में बेहद लोकप्रिय नहीं थे. लेकिन ये चुनाव जीतने वाले किसी भी और नेता के साथ हो सकता है.”

जिमरमैन जर्मनी की संसद की डिजिटल मामलों की कमिटी के सदस्य भी हैं. जिमरमैन ने कहा कि जब एक कंपनी का सीईओ यानी एक व्यक्ति किसी देश के नेता को लाखों लोगों को पहुंचने से रोकता है तो ये एक बड़ी समस्या है.

उन्होंने कहा, “हमें इसे लेकर रेगुलेशन बनाने होंगे. हमें इन प्लैटफॉर्म्स की ताकत को लेकर सावधान रहने की जरूरत है. मुझे इसमें कोई हैरानी की बात नहीं लगती है कि जब ट्रंप के कार्यकाल में सिर्फ 12 दिन रह गए थे तो ट्विटर इस समाधान के साथ सामने आया. फेसबुक पर भी यही लागू होता है.”

जर्मनी और यूरोप के अन्य देशों की भी सोशल मीडिया कंपनियों के प्रभाव और उसकी ताकत को लेकर चिंता बढ़ती जा रही है.

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