एक्सपर्ट ने किया खुलासा: कोरोना होने के बाद फेफड़ों के लिए नासूर बन रही हैं ये खतरनाक नई बीमारी

कोविड-19  का जड़ से इलाज एक आदर्श वैक्सीन  से ही संभव है. लेकिन अगर डॉक्टर की सलाह पर कोरोना ) मरीजों को दवाएं और एंटीबायोटिक्स ना दी जाएं तो आगे चलकर वे पल्मोनरी फाइब्रोसिस जैसी खतरनाक बीमारी का शिकार हो सकते हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक, कोरोना वायरस फेफड़ों को बड़ी तेजी से डैमेज करता है, जिससे आगे चलकर फाइब्रोसिस का खतरा पैदा हो सकता है.

हाल ही में मध्य प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चौधरी को फेफड़ों में समस्या के चलते एम्स में दाखिल किया गया था. कोरोना इंफेक्शन से रिकवरी के बाद पता लगा कि वह फाइब्रोसिस का शिकार हो चुके हैं. पल्मोनरी फाइब्रोसिस एक गंभीर बीमारी है जिसमें फेफड़े के टिशू (ऊतक) क्षतिग्रस्त हो जाते हैं.

टीबी हॉस्पिटल मेडिकल सुप्रीटेंडें डॉक्टर एके श्रीवास्तव कहते हैं कि फाइब्रोसिस फेफड़ों के क्षतिग्रस्त होने का आखिरी स्टेज है. कोरोना वायरस मुख्य रूप से इंसान के फेफड़ों को खराब करता है, इसलिए रिकवरी के बाद भी लोगों को डॉक्टर्स की सलाह पर इसकी दवाएं लेना जारी रखना चाहिए.

डॉ. श्रीवास्तव कहते हैं, ‘कोविड-19 के इलाज के दौरान डॉक्टर्स को मरीजों के फेफड़ों की रक्षा करनी होती है. कोरोना से रिकवरी के बाद मरीज को रेगुलर गाइडेंस के लिए डॉक्टर के संपर्क में रहना चाहिए ताकि फेफड़ों के बचाव और उसके नॉर्मल फंक्शन को समझा जा सके. इसके अलावा डॉक्टर की देख-रेख में एंटीबायोटिक्स, स्टेरॉयड या संबंधित दवाओं को नियमित रूप से लेना चाहिए.’

पल्मोनरी फाइब्रोसिस पर्मानेंट पल्मोनरी आर्किटेक्चर डिस्टॉर्शन या लंग्स डिसफंक्शन से जुड़ी समस्या है. कोविड-19 के मामले में फेफड़े वायरस से खराब होते हैं, जो बाद में फाइब्रोसिस की वजह बन सकता है. हालांकि यह बीमारी कई और भी कारणों से हो सकती है. ये रेस्पिरेटरी इंफेक्शन, क्रॉनिक डिसीज, मेडिकेशंस या कनेक्टिव टिशू डिसॉर्डर की वजह से हो सकती है.

पल्मोनरी फाइब्रोसिस में फेफड़े के आंतरिक टिशू के मोटा या सख्त होने की वजह से रोगी को सांस लेने में काफी दिक्कत होती है. धीरे-धीरे मरीज के खून में ऑक्सीजन की कमी आने लगती है. यह स्थिति बहुत गंभीर हो सकती है. अधिकांश मामलों में डॉक्टर इसके कारणों का पता नहीं लगा पाते हैं. इस कंडीशन में इसे इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस कहा जाता है.

डॉक्टर्स कहते हैं कि पल्मोनरी फाइब्रोसिस घातक एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम कोरोना वायरस-2 (SARS-CoV-2) को ज्यादा गंभीर बना सकता है. इम्यून सिस्टम पैथोजन से जुड़े अणुओं का इस्तेमाल कर वायरस की पहचान करता है, जो एंटीजन-प्रेजेंटिंग सेल (APC) रिसेप्टर्स के साथ संपर्क कर डाउनस्ट्रीम सिग्नलिंग को ट्रिगर करते हैं ताकि एंटीमाइक्रोबियल और इनफ्लामेटरी फोर्सेस को रिलीज किया जा सके.

बता दें कि पूरी दुनिया में अब तक कोरोना के साढ़े तीन करोड़ से भी ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं. अकेले अमेरिका में इस वक्त 78 लाख से ज्यादा मामलों की पुष्टि हो चुकी है. अमेरिका के बाद भारत में 69 लाख कोरोना संक्रमित पाए गए हैं. इस भयंकर बीमारी से देश में अब तक कुल 1,07,450 लोगों की मौत हो चुकी है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button