आखिर कहां से आई प्लाज्मा थेरेपी? कोरोना के इलाज में है काफी असरदार
नई दिल्ली। कोरोना के इलाज में प्लाज्मा थेरेपी पर भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के महानिदेशक बलराम भार्गव ने कहा कि इसका इस्तेमाल कई संक्रामक बीमारियों में पिछले 100 साल से होता आ रहा है। कोरोना के मामले में प्लाज्मा थेरेपी असरदार है या नहीं इस बारे में अभी भी अध्ययन चल रहा है।
उन्होंने कहा भारत में 14 राज्यों के 25 जिलों के 39 अस्पताल में 464 मरीजों पर ट्रायल किया गया है। इस अध्ययन के नतीजों के मुताबिक कोरोना के गंभीर मरीजों की मौत को रोकने में यह ज्यादा कारगर साबित नहीं हुई है। हालांकि इन नतीजों पर अभी भी अध्ययन किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इस अध्ययन के डेटा की समीक्षा की जा रही है, अंतिम नतीजों को प्रकाशित किया जाएगा। इसके साथ स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा गठित नेशनल टास्क फोर्स और संयुक्त निगरानी कमेटी में नतीजों पर चर्चा की जाएगी तब निर्णय लिया जाएगा कि इस थेरेपी का इस्तेमाल जारी रखा जाए या नहीं।
तीन वैक्सीन पर तेजी से चल रहा है काम
आईसीएमआर के महानिदेशक डॉ. बलराम भार्गव ने बताया कि भारत में तीन वैक्सीन पर तेजी से काम चल रहा है। स्वेदशी वैक्सीन कैडिला और भारत बायोटेक वैक्सीन के पहले चरण का ट्रायल पूरा हो चुका है। सीरम इंस्टीट्यूट ने ऑक्सफोर्ड वैक्सीन के दूसरे चरण के ट्रायल का काम पूरा कर लिया है। जल्दी ही संबंधित विभाग से अनुमति मिलने के बाद तीसरे चरण के ट्रायल का काम शुरू होगा। यह ट्रायल देश के 14 स्थानों पर 1500 मरीजों पर किया जाएगा।
प्लाज्मा थेरेपी क्या है?
प्लाज्मा थेरेपी को मेडिकल साइंस की भाषा में प्लास्माफेरेसिस नाम से जाना जाता है। प्लाज्मा थेरेपी से तात्पर्य ऐसी प्रक्रिया से है, जिसमें खून के तरल पदार्थ या प्लाज्मा को रक्त कोशिकाओं से अलग किया जाता है। इसके बाद यदि किसी व्यक्ति के प्लाज्मा में अनहेल्थी टिशू मिलते हैं, तो उसका इलाज समय रहते शुरू किया जाता है।
प्लाज्मा थेरेपी को क्यों किया जाता है?
हालांकि, प्लास्माफेरेसिस आधुनिक मेडिकल साइंस की देन है, जिसने काफी सारे लोगों की ज़िदगी को बदल दिया है। इसके बावजूद, राहत की बात है कि इसे सामान्य स्थितियों में नहीं बल्कि इसे कुछ विशेष उद्देश्यों के लिए किया जाता है।
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