चाणक्य: जो गुरूर से मुक्ति की ओर सही राह दिखाए वही है सच्चा गुरु

चाणक्य स्वयं एक योग्य और कठोर अनुशासन को मानने वाले शिक्षक है थे. वे विख्यात तक्षशिला विश्वविद्यालय के आचार्य थे. जीवन में शिक्षा का महत्व क्या होता है इस बारे में आचार्य चाणक्य से बेहतर भला कौन जान सकता है. चाणक्य ने अपनी पुस्तक चाणक्य नीति में शिक्षा के महत्व, शिष्य के रूप में एक विद्यार्थी का धर्म और गुरु को अपने शिष्यों के प्रति किस तरह की जिम्मेदारी का निर्वहन करना चाहिए इस बारे में विस्तार से बताया है.

गुरु कौन है, क्या हैं उसके कार्य
गुरु बनना सबसे कठिन कार्यों में से एक है. गुरु तभी बन सकता है जब व्यक्ति इंद्रियों को अपने वस में कर ले. जो व्यक्ति अपनी इंद्रियों पर काबू नहीं रख सकता है वह गुरु नहीं बन सकता है. क्योंकि जब गुरु स्वयं अपनी इंद्रियों को वस में कर लेता है तभी वह अपने शिष्यों के प्रश्नों और उनकी जिज्ञासाओं को पूर्ण रूप से शांत कर सकता है.

गुरु को ज्ञानी और गंभीर होना चाहिए
गुरु को अधीर नहीं होना चाहिए, गुरु का चित्त और मन सागर की तरह शांत होना चाहिए. जिसे गुरु में ये भाव दिखाई दें वही सच्चा और सही गुरु है. गुरु को सदैव चिंतन और मनन का कार्य करते रहना चाहिए. गुरु की जिम्मेदारी बहुत विशाल होती है. समाज के निर्माण में और किसी भी राष्ट्र को सक्षम और सामथ्र्यवान बनाने में गुरु का बहुत बड़ा योगदान होता है.

कर्तव्यों के प्रति ईमानदार रहे
गुरु को लोभ, मोह और अहंकार से दूर रहना चाहिए. गुरु को अपने कर्तव्यों के प्रति सदैव ईमानदार रहना चाहिए. गुरु को सदैव धर्म और नीति का पालन करते हुए अपने कर्म का निर्वहन करते रहते रहना चाहिए.

शिष्य को एक दृष्टिकोण प्रधान करें
श्रेष्ठ गुरु वही है जो अपने शिष्यों को एक विशेष दृष्टिाकोण प्रस्तुत करे. जिससे वे अपना और समाज का भला कर सके. शिष्य को ऐसा बनाए जो राष्ट्र के निर्माण में अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान प्रस्तुत कर सके. उन्हें अहंकार से दूर रखे

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