शहाबुद्दीन:गृह राज्य मंत्री बनते-बनते रह गया था ISI लिंक का यह आरोपी

सिवान के दबंग पूर्व सांसद शहाबुद्दीन अब तिहाड़ जाएंगे। उनके नाम के साथ एक ऐसे बाहुबली की छवि उभरती है, जिनके खौफ से सिवान के लोग कांप जाते थे। अपराध व राजनीति के घालमेल के बीच शहाबुद्दीन 1996 में एचडी देवगौड़ा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार में गृह राज्यमंत्री बनते-बनते रह गए थे। बाद में तत्कालीन डीजीपी डीपी ओझा ने उनके आइएसआइ से लिंक को लेकर रिपोर्ट भी दी थी।शहाबुद्दीन:गृह राज्य मंत्री बनते-बनते रह गया था ISI लिंक का यह आरोपीएक जमाना था, जब शहाबुद्दीन की तूती बोलती थी। लेकिन, सत्ता के शिखर तक ‘खास’ पहुंच रखने वाले इस शख्स की शक्ति वक्त के पलटते ही क्षीण हो गई है। ‘अपने’ आज ‘पराए’ हैं और ‘साहेब’ जेल की सलाखों के पीछे अपने किए की सजा काट रहे हैं। अब तो सरकार व प्रशासन उन्हें सिवान जेल से उन्हें दिल्ली के तिहाड़ शिफ्ट करने की तैयारी में भी जुट गए हैं।

1986 में दर्ज हुआ पहला मुकदमा

सन् 1980 में करीब 13 साल की उम्र में शहाबुद्दीन सिवान के डीएवी कॉलेज से राजनीति में आए। उनपर पहला आपराधिक मुकदमा 1986 में सिवान के हुसैनगंज थाने में दर्ज हुआ। इसके बाद तो लगातार मुकदमे दर्ज होते गए। धीरे-धीरे शहाबुद्दीन बिहार में खौफ का पर्याय बन गए।

आठ मामलों में हो चुकी सजा

शहाबुद्दीन को अभी तक आठ मामलों में सजा हो चुकी है। सिवान के चर्चित एसिड बाथ डबल मर्डर व भाकपा माले के कार्यकर्ता छोटेलाल गुप्ता के अपहरण व हत्या के दो मामलों में उन्हें आजीवन कारावास की सजा हो चुकी है।

राजनीति व अपराध का घालमेल

शहाबुद्दीन 1990 में राष्ट्रीय जनता दल युवा मोर्चा में शामिल हुए। धीरे-धीरे मुस्लिम वोटरों पर प्रभाव के कारण पार्टी में उनकी तूती बोलने लगी। लालू प्रसाद के भी बेहद करीबी माने जाने लगे। सिवान की जीरादेई विधानसभा सीट से उन्होंने 1990 व 1995 में जीत दर्ज की।
1996 में वे पहली बार सिवान से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए। तब एचडी देवगौड़ा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार में उनका गृह राज्यमंत्री बनना तय हो गया था। लेकिन, उनका आपराधिक रिकॉर्ड आड़े आ गया। शहाबुद्दीन के अपराध मीडिया में छा गए और इस कारण बैकफुट पर आई सरकार में उनका मंत्री बनने का ख्वाब टूट गया। शहाबुद्दीन सिवान से चार बार सांसद रहे।

लगते थे केवल उनकी पार्टी के ही झंडे

एक जमाना वो भी था, जब शहाबुद्दीन के चुनाव लडऩे के दौरान सिवान में उनकी पार्टी को छोड़कर दूसरे किसी प्रत्याशी या दल का झंडा लगाने की हिम्मत किसी को भी नहीं होती थी। संयोग कहें या कुछ और, लेकिन जिसने भी उनके खिलाफ आवाज उठाई, उसके साथ बुरा हुआ।
शायद शहाबुद्दीन के साथ जुड़ी इस खौफ की छवि को ही देखकर भाजपा ने पहली बार 2017 में अपनी प्रदेश कार्यसमिति की बैठक सिवान में की। इस दौरान सिवान को भाजपा के झंडों से पाट दिया गया था।

यहां से शुरू हुई पतन की कहानी

शहाबुद्दीन के आतंक के खिलाफ भाकपा माले के नेता छोटेलाल गुप्ता ने आवाज उठाई। उनकी हत्या कर दी गई। इस अपहरण व हत्याकांड में शहाबुद्दीन को 2007 में आजीवन कारावास की सजा मिली। इस कारण वे 2009 के लोकसभा चुनाव नहीं लड़ सके।यहीं से शहाबुद्दीन के पतन की कहानी आरंभ हो गई।
सन् 2009 में सजायाफ्ता शहाबुद्दीन को टिकट नहीं दे पाने के कारण राजद ने शहाबुद्दीन की पत्नी हीना शहाब को टिकट दिया, पर निर्दलीय ओम प्रकाश यादव ने उन्हें करीब 60 हजार वोटों से हरा दिया था। आगे 2014 में भी बीजेपी के टिकट पर ओमप्रकाश यादव ने एक लाख से भी ज्यादा वोटों से जीत दर्ज की। ये वही ओम प्रकाश हैं, जिन्हें शहाबुद्दीन ने कभी सरेआम पीटा था।

अन्य कई कांडों में भी आए हैं नाम

मार्च 1997 में दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष रहे चंद्रशेखर को सिवान में गोलियों से छलनी कर दिया गया था। शहर के जेपी चौक पर सरेआम हुई इस हत्या में शहाबुद्दीन का नाम चर्चा में आया था। इस मामले में शहाबुद्दीन के बेहद करीबी रहे रुस्तम मियां को सजा हो चुकी है।
सिवान के वकील रघुबीर शरण व उनकी पत्नी की हत्या सहित कई अन्य मामले भी विभिन्न अदालतों में चल रहे हैं।

DGP की रिपोर्ट में ISI लिंक की चर्चा

अप्रैल 2005 में सिवान के तत्कालीन एसपी रत्न संजय और डीएम सीके अनिल ने शहाबुद्दीन के प्रतापपुर स्थित घर पर छापेमारी की थी। छापेमारी में पाकिस्तान निर्मित कारतूस तथा एके 47 सहित कई ऐसे उपकरण मिले थे, जिनका इस्तेमाल सिर्फ सेना में ही किया जाता है। इन उपकरणों पर पाकिस्तान ऑर्डिनेंस फैक्टरी की मुहर लगी थी।

अब नहीं रही वो बात बाद में शहाबुद्दीन के खिलाफ बढ़ते आपराधिक मामले देख लालू प्रसाद यादव ने उनसे किनारा कर लिया। आगे नीतीश कुमार जब मुख्यमंत्री बने तो उनकी शेष ताकत भी क्षीण हो गई। बीते साल वे लंबे समय बाद जेल से बेल पर छूटे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने बेल रद कर दी। शहाबुद्दीन को फिर सिवान जेल जाना पड़ा। अब तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर वे तिहाड़ भी जा रहे हैं। 

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