निर्भया कांड: एक और तिकड़म हुआ फेल, नहीं टलेगी फांसी, सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव याचिका खारिज

निर्भया गैंगरेप और हत्या मामले में फांसी की सजा पाए चार दोषियों में शामिल दोषी अक्षय को गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा। सुप्रीम कोर्ट ने निर्भया कांड में दोषी अक्षय की क्यूरेटिव याचिका खारिज कर दी। दोषी अक्षय कुमार ठाकुर द्वारा दायर क्यूरेटिव पिटिशन में कहा गया था कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर जन दबाव और जनता की राय के चलते अदालतें सभी समस्याओं के समाधान के रूप में फांसी की सजा सुना रही हैं। न्यायमूर्ति एन वी रमण, न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, न्यायमूर्ति आर भानुमती और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ ने क्यूरेटिव पिटिशन की सुनवाई की। बता दें कि क्यूरेटिव पिटिशन किसी दोषी के पास अदालत में अंतिम कानूनी उपाय है।

दोषी अक्षय (31) ने कहा था कि अपराध की बर्बरता के आधार पर शीर्ष न्यायालय द्वारा उसके अनुरूप मौत की सजा के सुनाने से इस न्यायालय की और देश की अन्य फौजदारी अदालतों के फैसलों में असंगतता उजागर हुई हैं। इन अदालतों ने महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर जन दबाव और जनता की राय को देखते हुए सभी समस्याओं के समाधान के रूप में मौत की सजा सुनाई हैं। 

मामले में दो अन्य दोषियों- विनय कुमार शर्मा और मुकेश कुमार सिंह द्वारा दायर क्यूरेटिव याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट पहले ही खारिज कर चुका है। चौथे दोषी पवन गुप्ता ने क्यूरेटिव याचिका दायर नहीं की है, उसके पास अब भी यह विकल्प है। 

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याचिका में कहा गया था, ‘यह खोखला दावा है कि मौत की सजा एक विशेष तरह का प्रतिरोध पैदा करती है जो उम्र कैद की सजा से नहीं हो सकता है और उम्र कैद अपराधी को माफ करने जैसा है…यह प्रतिशोध और प्रतिकार को न्यायोचित ठहराने के सिवा कुछ नहीं है।’ अक्षय ने अपनी याचिका में दावा किया है कि बलात्कार एवं हत्या के करीब 17 मामलों में शीर्ष न्यायालय के तीन न्यायाधीशों की पीठ ने मौत की सजा में बदलाव कर उसे हल्का किया है। 

इसमें कहा गया है कि इस तरह के एक मामले में एक नाबालिग से सामूहिक बलात्कार एवं हत्या के मामले में मौत की सजा को इस न्यायालय ने एक पुनर्विचार फैसले में घटा कर 20 साल के सश्रम कारावास में तब्दील कर दिया। यह इस आधार पर किया गया कि दोषी की कोई आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं थी और उसके सुधार की अब भी गुंजाइश है। 

अक्षय ने न्यायालय से जानना चाहा है कि यदि याचिकाकर्ता को जीवित छोड़ दिया जाता है और उसे जेल में रहते हुए अपने परिवार के लिए मामूली आय अर्जित करने की इजाजत दी जाती है तो क्या वह अपनी कोठरी के अंदर समाज के लिए क्या खतरा पेश करेगा? याचिकाकर्ता ने उम्र कैद की सजा काटने वाले ऐसे कई दोषियों को देखा है जो गरीब थे लेकिन गरीबी में जी रहे अपने परिवारों के लिए कम से कम मामूली रकम तो भेज सकें। याचिकाकर्ता ने इस न्यायालय से पूछा है कि उसकी जीवनलीला समाप्त करने के बजाय उसकी उम्रकैद की सजा से क्यों सामूहिक चेतना संतुष्ट नहीं होगी। 

न्यायमूर्ति जे एस वर्मा कमेटी की रिपोर्ट का जिक्र करते हुए उसने कहा कि इसने बलात्कार एवं हत्या के अपराधों के लिए मौत की सजा के खिलाफ पैरोकारी की है। अपनी सामाजिक आर्थिक दशा का जिक्र करते हुए अक्षय ने कहा कि यह एक ऐसी परिस्थिति है जिसपर न्यायालय को सजा सुनाते समय विचार करने की जरूरत थी लेकिन इसे पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया। उसने सुधार की गुंजाइश की संभावना और आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं होने का भी जिक्र किया। 

इससे पहले दिन में अक्षय के वकील एपी सिंह ने कहा कि उन्होंने बुधवार को सुधारात्मक याचिका दायर की तथा उच्चतम न्यायालय की रजिस्ट्री ने याचिका के साथ कुछ और दस्तावेज मांगे हैं। बता दें कि निचली अदालत ने सभी चार दोषियों, मुकेश (32), पवन गुप्ता (25), विनय कुमार शर्मा (26) और अक्षय को एक फरवरी को सुबह छह बजे फांसी दिए जाने का वारंट जारी किया है। 

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