ज्वालामुखी में जलकर ऐसा हो गया यहां का इंसान, दिमाग बन गया शीशा

कभी सुना है आपने कि आदमी का दिमाग शीशा बन जाए। ऐसा हुआ है और यह सच है। हुआ यूं कि सन् 79 में इटली के पोम्पेई शहर का वेसुवियस ज्वालामुखी फट पड़ा था। इसके लावे से एक इंसान का दिमाग पिघल कर इतने सालों में शीशा बन गया।

ज्वालामुखी

ये कहानी करीब 2000 साल पुरानी है। इटली के नेपल्स में पोम्पेई शहर हुआ करता था। वहां का वेसुवियस ज्वालामुखी फटा तो उसने पूरे शहर को बर्बाद कर दिया था। ये आज तक नहीं पता चल पाया कि उस हादसे में कितने लोग मारे गए थे। फोटो में दिख रहा है पोम्पेई शहर का अवशेष और पीछ है वेसुवियस ज्वालामुखी।

जब भी इटली के नेपल्स शहर में खनन होता है, पुराने अवशेष और मरे हुए लोगों के जमे हुए शरीर मिलते हैं। ऐसे ही एक शरीर का दिमाग शीशे में बदला हुआ मिला। लेकिन इस ज्वालामुखी ने हजारों लोगों के खून को उबाल दिया था। मांस को भांप बना दिया था।

फेडरिको यूनिवर्सिटी के डॉ पियेर पाओलो पेत्रोने ने बताया कि जब गर्म और उबलता हुआ लावा इंसान के दिमाग को पिघला रहा था। उसी समय उसमें राख भी घुस गई। इससे दिमाग के टिशूज (ऊतकों) में राख जम गई। जब आग शांत हुई तो यह इंसानी दिमाग शीशे में बदल चुका था। यहां फोटो में दिख रहा है कि एक वैज्ञानिक लावे से जलकर पत्थर बने इंसान के शरीर की जांच कर रहा है।

ज्वालामुखी

पोम्पेई शहर के जिस हिस्से में सबसे ज्यादा तबाही मची थी, उसका नाम हरक्यूलेनियम था। हरक्यूलेनियम में इंसान, जानवर, घर, बर्तन… मतलब सबकुछ ज्वालामुखी के लावे में आने से राख में बदल गया था। यहीं से यह शीशे वाला दिमाग मिला है।

डॉ पियेर पाओलो पेत्रोने ने बताया कि जब उन्होंने इस दिमाग का अध्ययन किया तो पता चला कि उसमें अब भी प्रोटीन बचा है। इस जांच से यह पता चला कि जिस समय यह लावा आया होगा उस समय तापमान कम से कम 500 डिग्री सेल्सियस रहा होगा।

इतने ज्यादा तापमान होने के बावजूद शीशे में बदल गए दिमाग के ऊतक और उसमें बचा हुआ प्रोटीन अब तक नष्ट नहीं हुआ है। यानी ज्यादा तापमान में नरम ऊतक खत्म नहीं होते। लेकिन शरीर के बाकी हिस्से जलकर खाक हो गए। यहां तक की इंसान के शरीर की चर्बी भी।

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