इन शरणार्थी को बसाने के लिए मोदी सरकार देगी 600 करोड़? जानिए कौन है ये लोग…
क्रेंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और त्रिपुरा के ब्रू शरणार्थियों के प्रतिनिधियों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. इस समझौते के साथ ही ब्रू शरणार्थी समस्या का समाधान निकाल लिया गया है. जिसके बाद अमित शाह ने बताया कि त्रिपुरा में लगभग 30,000 ब्रू शरणार्थियों को बसाया जाएगा. इसके लिए 600 करोड़ रुपये के पैकेज का ऐलान किया गया है. आइए ऐसे में जानते हैं आखिर कौन हैं ब्रू शरणार्थी और ये कब से भारत में रह रहे हैं.
सबसे पहले आपको बता दें कि ब्रू शरणार्थी कहीं बाहर के नहीं बल्कि अपने ही देश के शरणार्थी हैं. जिन्हें ब्रू (रियांग) जनजाति भी कहते हैं. मिजोरम में मिजो जनजातियों का कब्जा बनाए रखने के लिए मिजो उग्रवाद ने कई जनजातियों को निशाना बनाया जिसे वो बाहरी समझते थे.
साल 1995 में यंग मिजो एसोसिएशन और मिजो स्टूडेंट्स एसोसिएशन ने ब्रू जनजाति को बाहरी घोषित कर दिया. अक्टूबर, 1997 में ब्रू लोगों के खिलाफ जमकर हिंसा हुई, जिसमें दर्जनों गावों के सैकड़ों घर जला दिए गए. ब्रू लोग तब से जान बचाने के लिए रिलीफ कैंपों में रह रहे हैं. यहां की हालात इतने खराब है कि इन लोगों को मूलभूत सुविधाएं भी नहीं मिलती हैं. इनकी भाषा ब्रू है.
यह भी पढ़ें: DSP की गिरफ्तारी के बाद जम्मू-कश्मीर प्रशासन का बड़ा फैसला, अब एयरपोर्ट की सुरक्षा करेगी CISF
Delhi: Union Home Minister Amit Shah and representatives of Bru refugees sign an agreement to end crisis of Bru refugees from Mizoram and for their settlement in Tripura, in presence of Tripura CM Biplab Kumar Deb and Mizoram Chief Minister Zoramthanga. pic.twitter.com/SFSa4OY99u
— ANI (@ANI) January 16, 2020
ब्रू शरणार्थियों के पास मूलभूत सुविधाएं नहीं थी, ऐसे में इस समझौते के साथ ही उन्हें जीवन यापन के लिए सुविधाएं दी जाएगी. जिसमें उन्हें 2 साल के लिए 5000 रुपये प्रति माह की नकद सहायता और दो साल तक मुफ्त राशन भी दिया जाएगा. ब्रू शरणार्थियों को 4 लाख रुपये की फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) के साथ 40 से 30 फुट का प्लॉट भी मिलेगा. बता दें, मकान और चार लाख रुपये के अलावा कई अन्य तरह की सुविधाएं दी जाएंगी. यहीं नहीं उन्हें वोटर लिस्ट में भी जल्द शामिल किया जाएगा.
जानें- कौन हैं ये कहां से आए और क्या था विवाद
ये मामला 1997 का है , जब जातीय तनाव के कारण करीब 5,000 ब्रू-रियांग परिवारों ने, जिसमें करीब 30,000 लोग शामिल थे. उन्होंने आकर मिजोरम से त्रिपुरा में शरण ली, और वह सभी कंचनपुर, उत्तरी त्रिपुरा में अस्थाई कैंपों में रखे गए.
अमित शाह ने कहा “कई सालों से ब्रू समुदाय के लोगों के लिए कोई समाधान नहीं निकल रहा था. जिसके बाद नरेंद्र मोदी सरकार ने 3 जुलाई 2018 त्रिपुरा सरकार और मिजोरम सरकार के बीच एक समझौता किया था. जिसमें विस्थापित सभी लोगों को सम्मान के साथ मिजोरम में रखने के की व्यवस्था बनी थी, लेकिन कई कारणों से कई सारे लोग मिजोरम में जाना नहीं चाहते थे. 2018-19 से आज तक सिर्फ 328 परिवार ही मिजोरम में जाकर बस पाए थे.”
1995 में पड़ी थी विवाद की नींव
ब्रू और बहुसंख्यक मिजो समुदाय के बीच 1996 में हुआ सांप्रदायिक दंगा इनके पलायन का कारण बना. इस तनाव ने ब्रू नेशनल लिबरेशन फ्रंट (बीएनएलएफ) और राजनीतिक संगठन ब्रू नेशनल यूनियन (बीएनयू) को जन्म दिया, जिसने राज्य के चकमा समुदाय की तरह एक स्वायत्त जिले की मांग की
इस तनाव की नींव 1995 में तब पड़ी थी जब यंग मिजो एसोसिएशन और मिजो स्टूडेंट्स एसोसिएशन ने राज्य की चुनावी भागीदारी में ब्रू समुदाय के लोगों की मौजूदगी का विरोध किया था. इन संगठनों का कहना था कि ब्रू समुदाय के लोग राज्य के नहीं हैं. जिसके बाद तनाव की स्थिति बढ़ती चली गई.