सबरीमाला मंदिर: जानें मंदिर में महिलाओं के बैन के पीछे का ये बड़ा राज…
सबरीमाला मंदिर में 10-50 साल की महिलाओं की एंट्री पर एक बार फिर बहस छिड़ गई है. महिलाओं के साथ ये असमानता क्यों? आखिर क्यों उन्हें मंदिर में पूजा करने का हक नहीं मिलना चाहिए, ये सवाल ज्यादातर लोग उठा रहे हैं. सवाल ये भी है कि क्यों मासिक धर्म के शुरू होने पर किसी महिला को अपवित्र मानकर उसे पूजा करने का हक ना मिले? वहीं, दूसरी तरफ सालों से चली आ रही परंपरा और आस्था का सवाल भी है.
सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर दो पक्ष हैं. एक पक्ष जिसका कहना है कि महिलाओं को बराबरी का हक मिलना चाहिए और उनकी एंट्री मंदिर में होनी चाहिए, क्योंकि उन्हें भी पूजा करने का हक है. वहीं, दूसरा पक्ष सालों से चली आ रही परंपरा से छेड़छाड़ नहीं चाहता है. इस पक्ष का कहना है कि चूंकि भगवान अयप्पा एक ब्रह्मचारी थे तो ऐसे में इस मंदिर में महिलाओं की एंट्री नहीं होनी चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी बेंच को सौंपा
इन सबके बीच सुप्रीम कोर्ट ने भी परंपरा और आस्था के बीच का रास्ता निकालते हुए मामले को सात जजों की बेंच को सौंपते हुए कहा कि इस केस का असर सिर्फ इस मंदिर पर ही नहीं, बल्कि मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश और अग्यारी में पारसी महिलाओं के प्रवेश पर भी पड़ेगा. अपने फैसले के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि परंपराएं धर्म के सर्वोच्च सर्वमान्य नियमों के मुताबिक होनी चाहिए. हालांकि, महिलाओं की एंट्री पर सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि अगले फैसले तक सबरीमाला में सभी उम्र की महिलाओं की एंट्री जारी रहेगी.
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कहां से हुई शुरुआत?
सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर अचानक से लोगों को ध्यान तब गया जब साल 2006 में मंदिर के मुख्य ज्योतिषि परप्पनगडी उन्नीकृष्णन ने कहा कि मंदिर में स्थापित अयप्पा अपनी ताकत खो रहे हैं और वह इसलिए नाराज हैं, क्योंकि मंदिर में किसी युवा महिला ने प्रवेश किया. इसके बाद ही कन्नड़ एक्टर प्रभाकर की पत्नी जयमाला ने दावा किया था कि उन्होंने अयप्पा की मूर्ति को छुआ और उनकी वजह से अयप्पा नाराज हुए.
उन्होंने कहा था कि वह प्रायश्चित करना चाहती हैं. जयमाला ने दावा किया था कि 1987 में अपने पति के साथ जब वह मंदिर में दर्शन करने गई थीं तो भीड़ की वजह से धक्का लगने के चलते वह गर्भगृह पहुंच गईं और भगवान अयप्पा के चरणों में गिर गईं. जयमाला के इस दावे के बाद मंदिर में महिलाओं की एंट्री बैन होने के इस मुद्दे पर लोगों का ध्यान गया. 2006 में राज्य के यंग लॉयर्स एसोसिएशन ने सुप्रीमकोर्ट में इसके खिलाफ याचिका दायर की.
कई मंदिरों में पुरुषों की एंट्री पर बैन
भारत में कई मंदिर ऐसे भी हैं जहां पुरुषों की एंट्री बैन है, जिसमें से केरल अत्तुकल भगवती मंदिर है जहां महिलाओं की पूजा होती है. यहां पुरुषों को मंदिर में जाने की इजाजत नहीं है. वहीं केरल के ही चक्कूलाथूकावु मंदिर में देवी भगवती की पूजा होती है. यहां ‘नारी पूजा’ नामक वार्षिक अनुष्ठान होता है. नारी पूजा के दौरान केवल महिलाओं को मंदिर के अंदर जाने की इजाजत होती है.
राजस्थान के पुष्कर मंदिर में भी शादीशुदा पुरुषों का आना सख्त मना है. इसके अलावा कन्याकुमारी में बने भगवती मंदिर में मां भगवती दुर्गा के कन्या रूप की पूजा होती है. उन्हें संन्यास की देवी भी माना जाता है. इसी वजह से केवल संन्यासी पुरुष मंदिर के दरवाजे तक आ सकते हैं. वहीं, शादीशुदा पुरुषों के आने पर रोक है.
महाराष्ट्र के नासिक में स्थित त्र्यंबकेश्वर मंदिर का गर्भगृह भगवान शिव को समर्पित है. यहां के गर्भगृह में पहले महिलाओं के जाने पर रोक थी, जिसके बाद 2016 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि यदि महिलाओं का जाना वर्जित है तो पुरुषों के जाने पर भी प्रतिबंध लगे. इसके बाद से गर्भगृह में पुरुषों का जाना मना हो गया है.
असम के प्रसिद्ध कामाख्या मंदिर में माता की माहवारी का उत्सव मनाया जाता है. इस दौरान यहां पुरुषों के प्रवेश पर रोक रहती है. इस दौरान केवल महिला संत और संन्यासिन मंदिर की पूजा करती हैं. इसके अलावा और भी मंदिर हैं जहां पुरुषों के जाने पर रोक है.