जानें क्यों तेजी से बढ़ रहे है प्याज के दाम, सामने आई ये बड़ी रिपोर्ट

जब महाराष्ट्र का प्रशासन चुनावों में व्यस्त था तब प्याज के कुछ बड़े कारोबारी साठ-गांठ के जरिए प्याज के दाम बढ़ा रहे थे. महाराष्ट्र के मशहूर लासेलगांव और पिंपलगांव में प्याज की आवक पिछले साल के मुकाबले करीब सात सौ फसदी कम हो गई. शुरू में प्याज के दाम का ठिकरा बिन मौसम भारी बरसात पर फोड़ा गया. लेकिन बारिश और प्याज की आपूर्ति के आंकड़े साबित करते हैं कि मौसम के अलावा प्याज के दाम बढ़ाने में जमाखोरों का बड़ा कार्टेल काम कर रहा है.

कृषि मंत्रालय के एक बड़े अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि बारिश के बहाने प्याज की आपूर्ति को कुछ कारोबारी कार्टेल बनाकर कंट्रोल कर रहे हैं. हमने बारिश के असर के बाद प्याज की आपूर्ति का जो अनुमान लगाया था उसका सातवां हिस्सा बाजार में आ रहा है.’

मौसम के साथ बिचौलिए हैं जिम्मेदार

देश के सबसे बड़े प्याज आपूर्ति के केंद्र माने जाने वाले दो बाजारों-लासेलगांव और पिंपलगांव में प्याज की आपूर्ति से जुड़े आंकड़ों का अध्ययन किया. 2019 और 2018 के दिसंबर के पहले हफ्ते के आंकड़े बताते हैं कि प्याज की आपूर्ति 80 फीसदी कम ही है.

मोदी सरकार का बड़ा कदम, अब इन डॉक्यूमेंट के साथ लिंक कराना होगा आपको अपना मोबाइल नंबर

कारोबारी कहते हैं कि प्याज की आपूर्ति के पीछे बारिश है और वो भी खासतौर पर नवंबर में होने वाली बारिश इसके लिए ज्यादा जिम्मेदार है. डाटा टीम ने महाराष्ट्र के नासिक जिले के 11 साल के बरसात का आंकड़ा लिया और यह देखने की कोशिश की क्या इससे पहले भी नवंबर में बेमौसम बरसात हुई है. अगर हुई है तो क्या उस समय प्याज की आपूर्ति में इतनी ही गिरावट आई है.

मौसम विभाग के आंकड़े बताते हैं कि नवंबर 2014 में 76 मिलीटर बारिश हुई थी और इससे ज्यादा बारिश हुई थी लेकिन प्याज की औसत आपूर्ति 70 हजार क्विंटल से ज्यादा थी. जबकि 2019 के नवंबर महीने में केवल 20 मिलीमीटर बारिश हुई और ब्याज की आपूर्ति 51 हजार क्विंटल पर सिमट गई.

अलवर से दिल्ली में आने वाली प्याज में क्यों है तेजी

मौसम की मार की वजह बताकर सटोरिए पूरे देश में भारी मुनाफा बटोर रहे हैं. इससे राजधानी दिल्ली में अछूती नहीं है. दिल्ली में इस समय सबसे ज्यादा आवक अलवर के प्याज की है। जहां प्याज का फिलहाल भरपूर स्टॉक है.लेकिन नासिक का बहाना लेकर अलवर की प्याज भी ग्राहकों को 120 रुपए किलो बेची जा रही है. जब अलवर से ब्याज उतनी ही मात्रा में दिल्ली आ रही है ऐसे में प्याज को नासिक की आपूर्ति संकट से जोड़कर ऊंचे दाम पर बेचना के पीछे सिवाय जमाखोरी के कोई और वजह नहीं मानी जा सकती.

आजादपुर मंडी के कारोबारी राजेंद्र शर्मा  जमाखोरी को सिरे नकार देते हैं. उनका कहना है कि यह केवल अफवाह है और बेमौसम बरसात की वजह से कीमतों में तेजी आ है. इंडिया टूडे से बातचीत में शर्मा ने कहा कि ‘बारिस देर से हुई है और प्याज की आपूर्ति पर उसका असर पड़ा है.’

वहीं दूसरी ओर आईआईटी दिल्ली में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर वी उपाध्याय कहते हैं कि ‘मौजूदा प्याज का संकट खासतौर पर उन व्यापारियों की करतूत है जो प्याज की जमाखोरी करके मुनाफा कमाने की कोशिश में जुटे हैं.’

दिल्ली में जो प्याज जनवरी में 656 रुपए प्रति क्विंटल पर बेची जा रही थी वो  5 दिसंबर को 5750 रुपए प्रति क्विंटल पर पहुंच गई.

भारत चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा प्याज उत्पादक देश है. देश में औसतन हर साल करीब 160 से 170 लाख टन (1451-1541 लाख क्विंटल ) प्याज  यानी दुनिया के कुल उत्पादन का 20 फीसदी उत्पादन भारत में होता है. फसल खासतौर पर तीन चक्र में होती है.

15 से 20 फीसदी प्याज खरीफ सीजन में अक्टूबर से दिसंबर के दौरान आती है. लेकिन 20-25 फीसदी जिसे लेट खरीफ सीजन कहते हैं नो जनवरी से मार्च में बाजार में आती है. तीसरी खेप रबी सीजन में आती है जो तकरीबन कुल सालाना उत्पादन 50-60 फीसदी होता है और मार्च से मई के बीच बाजार में आता है.

कीमतों के आसमान छूने के बाद अब सरकार निर्यात करने वाला देश प्याज का आयात करने जा रहा है. सरकार ने ईरान, टर्की और मिश्र से प्याज आयात करने का फैसला किया है. सरकार के खाद्य मंत्री राम विलास पासवान से कुछ दिन पहले पूछा गया कि आखिर कीमतों पर कब अंकुश लगेगा तो उनका जवाब था कि वे कोई ज्योतिष नहीं हैं लेकिन इतना जरूर कहूंगा कि नवंबर के अंत या दिसंबर के पहले हफ्ते तक प्याज की कीमतों में गिरावट शुरू हो जाएगी. पहला हफ्ता बीत गया और दिल्ली में कीमत 120 किलो का रिकॉर्ड तोड़ चुकी है

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button