शनिवार से शुरू हो रहे गुप्त नवरात्र, जानिए क्यों हैं विशेष

वर्ष की चार नवरात्र होते हैं। प्रगट नवरात्र जिन्हें चैत्र नवरात्र भी कहते हैं यह धर्म का प्रतीक होती हैं। गुप्त नवरात्र जिन्हें आषाड़ नवरात्रि यह अर्थ की प्रतीक होती हैं। प्रगट नवरात्र जिन्हें आश्विन नवरात्र भी कहते हैं, यह काम की प्रतीक होती हैं। गुप्त नवरात्र जिन्हें माघ नवरात्रि कहते हैं और यह मोक्ष की प्रतीक होती हैं।

अभी अभी: आई बड़ी खबर फेसबुक से जल्द हटाएं अपना नंबर और DATE of birth वरना…बड़ी खबर: सुप्रीम कोर्ट का पूरे देश में बीफ पर बैन को लेकर आया ये बड़ा फैसला

ज्योतिषाचार्य पंडित धर्मेन्द्र शास्त्री बताते गुप्त नवरात्र में घटस्थापना या कलश स्थापना करें। और 9 दिन तक प्रतिदिन मंत्र जाप, अनुष्ठान, आदि कोई भी सिद्धी साधना करें। हवन करे व कन्याओं को भोजन कराएं । प्रत्येक वर्ष माघ माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी को वसंत पंचमी के रूप में मनाया जाता है। देवी सरस्वती के इस प्राकट्य पर्व को सर्वसिद्धि दायक पर्व माना जाता है। माघ माह में जब सूर्य देवता उत्तरायण रहते हैं।

गुप्त नवरात्र के मध्य पंचमी तिथि को लोक प्रसिद्ध स्वयंसिद्ध मुहूर्त के रूप में माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार यह दिन प्रत्येक शुभ कार्यों के लिए अतिश्रेष्ठ माना जाता है। प्रकृति के चितेरों, साहित्य मनीषियों और कवियों ने इस दिन को अपने-अपने तरीके से परिभाषित किया है। यह विद्या की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की पूजा-अर्चना का दिन है। इस तिथि को वागीश्वरी जयंती और श्रीपंचमी नाम से भी जाना जाता है।

गीता में भी कहा गया है कि बसंत ऋतु के रूप में भगवान कृष्ण प्रत्यक्ष रूप से प्रकट होते हैं। तंत्र शास्त्रों के मुताबिक बसंत पंचमी को आकर्षण और वशीकरण के प्रयोग बहुत ही प्रभावी और शुभ फलदायी होते हैं। ज्योतिषीय दृष्टि से पांचवीं राशि के अधिष्ठाता भगवान सूर्य नारायण होते हैं इसलिए वसंत पंचमी अज्ञान का नाश करके प्रकाश की ओर ले जाती है। अबूझ मुहूर्त होने से इस दिन शादी-विवाह के लिए मुहूर्त की आवश्यकता नहीं होती।

विद्या और बुद्धि की देवी सरस्वती का प्राकट्य दिवस वसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती का विशेष पूजन किया जाता है। इस दिन विवाह, गृह प्रवेश, पद भार, विद्यारंभ, वाहन, भवन खरीदना आदि कार्य अतिशुभ और विशिष्ट होते हैं। प्रत्येक कार्य का संचालन बुद्धि, विवेक और ज्ञान के आधार पर ही होता है इसलिए विद्या-बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती के जन्मदिवस से किसी भी कार्य का शुभारंभ किया जाए तो वह कार्य सफल होगा।

संवत्सर चक्र का परिवर्तन बसंत पंचमी पर्व का मुख्य हेतु है। यह ग्रीष्म और शीत का संधिकाल है। हमारी सारस्वत शक्तियों के पुनर्जागरण के लिए इस पर्व का विशेष महत्व है। सृष्टि का संयोग इसी दिन से प्रारंभ होता है। इसलिए इस दिन देवी सरस्वती और भगवान कृष्ण के साथ कामदेव व रति की पूजा की भी परंपरा है। इस माह को मधुमास भी कहा जाता है। सरस्वती को बुद्धि और ज्ञान के साथ ही संगीत एवं कला की देवी भी माना जाता है।

 

Back to top button