हवा में फैल रहा है तेजी से जहर, जानें इससे आपकी सेहत को होने वाले ये बड़े नुकसान

सर्दियों का मौसम आते ही दिल्ली और उसके आसपास का इलाका पराली जलाने के अलावा वाहनों से होने वाले प्रदूषण के कारण दुर्भाग्य से नर्क की तरह हो जाता है। पहले ही श्वसन तंत्र की तकलीफों का शिकार लोगों के लिए तो यह वक्त जान जोखिम में डालने जैसा ही बन जाता है। सरकारी तंत्र की वायु प्रदूषण नियंत्रण की नीतियां पड़ोसी राज्यों, वाहन चालकों, कचरा जलाने वाले लोगों के आगे नाकारा साबित होती हैं।

दिल्ली के संबंध में विश्व

विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक भीतरी और बाहरी वायु प्रदूषण के कारण हर साल 7 करोड़ लोग वक्त से पहले काल के गाल में समा जाते हैं। इसके विपरीत अनुसंधान के मुताबिक पार्टिक्यूलेट मैटर (पीएम) 2.5 की मात्रा को घटाकर ही जिंदगी को बढ़ाया जा सकता है। 

आइए देखते हैं कि वायु प्रदूषण किस तरह से आपके स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। हो सकता है इसे पढ़कर कुछ लोगों को यह बात समझ में आ जाए कि वायु प्रदूषण के दानव का नाश कितना जरूरी है। नाइट्रोजन डायऑक्साइड, सल्फर ऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड के 10 माइक्रॉन्स और 2.5 माइक्रॉन्स तक के कण (पार्टिक्यूलेट मैटर/पीएम) हमारे शरीर पर कई तरह से नकारात्मक असर डालते हैं। चीन में चार साल तक किए गए एक अध्ययन के मुताबिक वायु प्रदूषण का ज्यादा स्तर स्कूल जाने वाले बच्चों की गणित और भाषा संबंधी सीखने की क्षमता को कम करता है। रिसर्चर्स के मुताबिक इसकी मुख्य वजह ओजोन, महीन कण (पीएम 2.5) और मोटे कण (पीएम 10) होते हैं।

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एक अन्य अनुसंधान में पाया गया है कि वायु प्रदूषण से शरीर में तनाव के हार्मोन  (कॉर्टिसोल, कोर्टिसोन, एपिनेफ्रिन, नोरेपिनेफ्रिन) के स्तर में इजाफा होता है। यह चिंता, अवसाद में इजाफे के अलावा और नींद उड़ जाने की वजह बन सकता है। इसके अलावा किंग्स कॉलेज लंदन के एक ताजा अध्ययन के मुताबिक नाइट्रोजन डायऑक्साइड और नाइट्रिक ऑक्साइड-वाहनों और फैक्टरियों के धुएं में मौजूद-के सतत संपर्क में रहने का किशोरावास्था में मनोविकृति से संबंध है।

सिरदर्द, चक्कर और मितलीः वायु प्रदूषण जहरीले रसायनों का कॉकटेल होता है। इसमें ओजोन से लेकर नाइट्रोजन डायऑक्साइड, सल्फर ऑक्साइड, सिगरेट का धुंएं से लेकर इतने छोटे-छोटे कण जो हमारे फेफड़ों और दिमाग तक में घुस जाते हैं। इन रसायनों का निरंतर सामना आपको उपरोक्त में से किसी भी परेशानी का शिकार बना सकता है।

आंख, नाक, गले, त्वचा में जलनः उत्तर भारत के किसानों द्वारा पराली जलाने के साथ ही उससे निकलने वाला धुंआ नाक, आंखों और त्वचा में जलन की वजह बन जाता है। इस धुएं में नाइट्रेट्स के अलावा कार्बन कम्पाउंड्स होते हैं जो सर्दियों के मौसम में वातावरण में जमीनी स्तर पर बैठ जाते हैं।

बालों का झड़नाः एक ताजा रिसर्च के मुताबिक लघु कण, खासतौर पर धूल और डीजल के, हमारे सिर के बालों की जड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं और बालों के गिरने की वजह बनते हैं। 

रोग प्रतिरोधक क्षमताः वायु प्रदूषण फेफड़ों और खून में पहुंचकर हमारी रोग प्रतिरोधक प्रणाली पर बुरा असर डालता है। ज्यादा तनाव, नींद में दिक्कत और लगातार इन्फेक्शन इस स्थिति को और अधिक बिगाड़ देते हैं।

हाई ब्लड प्रेशरः व्यास में 10 एमएम से कम के कण नाक के जरिये हमारे खून में प्रवेश कर सकते हैं। यह खून लाने-ले जाने वाली नलियों में सूजन, सिकुड़न की वजह बन सकते हैं। खून का प्रवाह धीमा होने के कारण दिल को शरीर के हर अंग तक खून पहुंचाने के लिए ज्यादा तेजी से धड़कना पड़ता है। यह बढ़ा हुआ दबाव ही हाइपरटेंशन या  हाई ब्लड प्रेशर के तौर पर जाना जाता है। 

हार्ट अटैक और स्ट्रोकः धमनी की दीवारों पर कोलेस्ट्रॉल प्लेक का एक टुकड़ा टूट सकता है या फिर थक्का (क्लॉट) बना सकता है। यह थक्का दिल के एक हिस्से को खून की आपूर्ति रोक सकता है। यह हार्ट अटैक की वजह बन सकता है।

बेहद महीन कण हमारी नाक के जरिये दिमाग तक पहुंच सकते हैं। अगर यह खून का ऐसा थक्का बना देते हैं जो दिमाग को खून की आपूर्ति को रोक देता है तो फिर यह स्ट्रोक (लकवा) की वजह बन सकता है।

एम्फिसेमा, ब्रोंकाइटिसः धूम्रपान सीओपीडी की सबसे बड़ी वजह होती है। यह फेफड़े की एक ऐसी बीमारी है जिसमें एम्फिसेमा (हवा की थैलियों को नुकसान), ब्रोंकाइटिस (फेफड़े में सूजन) और अस्थमा शामिल होते हैं। दुनिया के शीर्ष स्वास्थ्य केंद्रों में से एक क्लीवलैंड क्लीनिक के मुताबिक एक सिगरेट के पीने से निकले रसायन हवा में चार घंटे तक मौजूद रह सकते हैं। यह सांस की बीमारी को बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त होता है।

न्यूमोनियाः अनुसंधान बताता है कि घर में वायु प्रदूषण-किचन और धूम्रपान सहित-5 वर्ष के बच्चों से लेकर 65 वर्ष तक के बुजुर्गों तक में न्यूमोनिया के खतरे को बढ़ा देता है। 

बढ़ा हुआ अस्थमाः पीएम हमारे टिश्यूज, वायु प्रणाली, फेफड़े में प्रवेश कर पहले से ही अस्थमा से पीड़ित लोगों की हालत को और अधिक बिगाड़ सकता है। औद्योगिक और वाहन प्रदूषण से निरंतर संपर्क, जिसमें नाइट्रोजन डायऑक्साइड होता है, हालत को गंभीर बना सकता है।

डिमेंशियाः कई अध्ययनों के आधार पर किए गए एक अध्ययन के मुताबिक पीएम 2.5, नाइट्रोजन डायऑक्साइड, नाइट्रिक ऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड से निरंतर संपर्क का डिमेंशिया या बुजुर्गों में समझने की क्षमता में निरंतर गिरावट से संबंध पाया गया है। बेहद महीन कणों से होने वाला वायु प्रदूषण तो अल्जाइमर्स के खतरे को बढ़ा देता है। दरअसल हमारी नाक से फेफड़े में पहुंचने के बाद वायु प्रदूषण के यह महीन कण खून में पहुंच जाते हैं। इनमें हर तरह की बाधा को पार करके दिमाग तक पहुंचने की भी क्षमता होती है। 

गर्भपात, समय पूर्व शिशु का जन्मः अनुसंधान के मुताबिक ब्लैक कार्बन जैसे वायु प्रदूषक प्लेसेंटा तक पहुंच सकते हैं जो गर्भ में मौजूद बच्चे के लिए कई तरह की परेशानियों का सबब बन सकते हैं। जैसे वक्त से पहले शिशु का जन्म, जन्म के वक्त शिशु का बहुत कम वजन। सिनसिनाटी चिल्ड्रन्स हॉस्पिटल मेडिकल सेंटर और यूनिवर्सिटी ऑफ सिनसिनाटी कॉलेज ऑफ मेडिसिन, अमेरिका द्वारा किए गए रिसर्च के मुताबिक गर्भाधान के ठीक पहले या गर्भधारण करने के तत्काल बाद वायु प्रदूषकों के संपर्क में आने वाली महिलाओं के बच्चों में तालू में खराबी (क्लेफ्ट पेलेट्स) और असामान्य दिल की शिकायतें देखने को मिलती हैं। 

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