कई सभ्यताओं से भी पुरानी है इलायची के सफर की कहानी
इलायची की मौजूदगी का उल्लेख 4000 साल पहले के ग्रंथों में हुआ है यानी यह हजारों साल से हमारे जीवन के साथ यात्रा कर रही है। दस्तावेज बताते हैं कि डेढ़ हजार साल पहले प्राचीन मिस्त्र में इसका उपयोग चिकित्सा, अनुष्ठानों और शव लेपन में होता था। मिस्त्र के लोग दांतों को साफ करने और सांसों में ताजगी भरने के लिए इसका खूब इस्तेमाल करते थे। एक जमाना था जब दुनिया को लगता था कि यह अनूठा मसाला दक्षित भारत के मालाबार तट पर ही मिलता है। बात सही भी है, क्योंकि प्राचीन भारत में हजारों सालों से इसका इस्तेमाल ही नहीं व्यापार भी होता रहा था।
पुराणों और वेदों में उल्लेख
तृतीय संहिता जैसी प्राचीन किताब, पुराणों और वेदों में इसका उल्लेख है। हम भारतीय हजारों सालों से अपने पूजा अनुष्ठानों, चिकित्सा पद्धतियों में इसका इस्तेमाल करते रहे हैं। ग्रीक में 176 ईस्वी के दस्तावेजों में इसका उल्लेख भारतीय मसाले के रूप में हुआ है। दरअसल, भारत 2000 बरसों से कहीं ज्यादा समय से विदेशों से इसका व्यापार करता रहा था। मालाबार तट इस व्यापार का प्रमुख स्थल था। केरल में इसका बहुतायत से उत्पादन होता था। ऐसा लगता है कि हमारे घुमंतू पूर्वजों और जहाजियों ने इसे अपनी यात्राओं के दौरान खोज निकाला होगा।
वे इसे दुनिया के तमाम कोनों में ले गए, लेकिन ये उगी वहीं, जहां इसे अनुकूल आर्द्रता वाली आबोहवा मिली। इलायची की खेती लातीनी अमेरिका के ग्वाटेमाला, भारत, श्रीलंका, इंडोनेशिया और मलेशिया में बहुतायत से होती है। आज भी ये देश दुनिया में इसके सबसे बड़े निर्यातक हैं। दिनोंदिन इसकी मांग बढ़ रही है। ग्वाटेमाला में तो एक पहाड़ का नाम ही ‘इलायची पहाड़’ यानी कार्डेमाम हिल है। ग्वाटेमाला कभी ब्रितानियों का उपनिवेश था। वहां अंग्रेजों ने इसकी खेती शुरू की। अब तो यहां इसका उत्पादन इतना ज्यादा होता है कि इसने भारत और श्रीलंका जैसे देशों को भी पछाड़ दिया है।
इलायची का इस्तेमाल
ग्रीक और रोमन इसका इस्तेमाल परफ्यूम, लेप और सुगंधित तेलों को बनाने में करते थे। वे मेहमानों के सामने इसे परोसना सम्मान की बात समझते थे। स्कैंडिनेवियाई देशों यानी स्वीडन, स्विट्जरलैंड, नार्वे और फिनलैंड में इसका उपयोग क्रिसमस के दौरान बेहतरीन वाइन और पेस्ट्री बनाने में होता है।
ये दो तरह की होती है- हरी या छोटी इलायची तथा बड़ी इलायची। जहां बड़ी इलायची व्यंजनों को लजीज बनाने के लिए एक मसाले के रूप में प्रयुक्त होती है, वहीं हरी इलायची खुशबू या माउथ फ्रेशनर का काम करती है। यह औषधीय गुणों की खान है। संस्कृत में इसे ‘एला’ कहा जाता है। आयुर्वेदिक मतानुसार, इलाचयी शीतल, तीक्ष्ण, मुख को शुद्ध करनेवाली, पित्तजनक और वात, श्र्वास, खांसी, बवासीर, क्षय, वस्तिरोग, सुजाक, पथरी, खुजली, मूत्रकृच्छ तथा हृदयरोग में लाभदायक है। इलायची के काले बीजों में एक प्रकार का उड़नशील तेल होता है।
इलायची के पौधे
छोटी इलायची का पौधा हरा तथा पांच फीट से दस फीट तक ऊंचा होता है। इसके पत्ते बरछे की आकृति के तथा दो फीट तक लंबे होते हैं। यह बीज और जड़ दोनों से उगता है। तीन-चार साल में फसल तैयार होती है। इसके फल गुच्छों के रूप में होते हैं। इसे तोड़कर जब सुखाया जाता है, तो यह इस अवस्था में आ जाती है, जिससे हम सभी परिचित हैं। इलायची के एक पौधे का जीवनकाल 10 से लेकर 12 वर्ष तक का होता है। समुद्र की हवा और छायादार भूमि इसके लिए आवश्यक है। इसके बीज छोटे और कोनेदार होते हैं। मैसूर, मंगलोर, मालाबार तथा श्रीलंका में इलायची बहुतायत से होती है। हालांकि वजन के हिसाब से ये काफी महंगा मसाला है।
इलायची का औषधीय इस्तेमाल
अगर आवाज बैठी हुई है या गले में खराश है, तो सुबह उठते समय और रात को सोते समय छोटी इलायची चबा-चबाकर खाएं तथा गुनगुना पानी पीएं। यदि गले में सूजन आ गई हो, तो मूली के पानी में छोटी इलायची पीसकर सेवन करने से लाभ होता है। सर्दी-खांसी और छींक होने पर एक छोटी इलायची, एक टुकड़ा अदरक, लौंग तथा पांच तुलसी के पत्ते एक साथ पान में रखकर खाएं। बड़ी इलायची पांच ग्राम लेकर आधा लीटर पानी में उबाल लें। जब पानी एक-चौथाई रह जाए, तो उतार लें। यह पानी पीने से उल्टियां बंद हो जाती हैं। मुंह में छाले हो जाने पर बड़ी इलायची को महीन पीसकर उसमें पिसी हुई मिश्री मिलाकर जबान पर रखें। तुरंत लाभ होगा। बहुतों को सड़क मार्ग से यात्रा के दौरान चक्कर आता है या जी घबराता है। इसके लिए एक छोटी इलायची मुंह में रख लेने पर आराम मिल सकता है।