निवेश के मामले में प्लानिंग का होना है जरूरी
क्या आप कभी ऐसे घर में रहे हैं, जो बिना किसी नक्शे या पूर्व योजना के बनाया गया हो? भारत के छोटे शहरों में इस तरह के घर आम हुआ करते थे और शायद आज भी हैं। ऐसे मामलों में होता यह है कि कोई व्यक्ति प्लॉट खरीदता है और दिहाड़ी मजदूरों को लेकर घर बनाने का काम शुरू करवा देता है। इसके लिए कोई नक्शा या प्लान बनाने की जगह वह खुद ही निर्देश देता रहता है। वह राजगीर मिस्त्री को बताता है कि एक कमरा यहां होगा, एक वहां होना चाहिए, बाथरूम फलां जगह बन सकता है।
जब घर आधा बन जाता है, तब उसके दिमाग में एक और बाथरूम की योजना आ सकती है, जिसे वह कहीं फिट करने की बात कहता है। मकान का मालिक इस तरह की दूसरी चीजों की इच्छा भी जता सकता है। वह छत पर जाने के लिए सीढि़यों की जगह खोजता है, या वह बाथरूम के लिए वेंटीलेटर की मांग कर सकता है। वह गेट चौड़ा करने के बारे में सोच सकता है, क्योंकि हो सकता है कि भविष्य में कोई कार खरीदी जाए। वह ऊंची सीढि़यों की मांग कर सकता है या बोल सकता है कि बाकी दीवारों के मुकाबले एक दीवार पतली होगी। इसी तरह के कई विचार उसके दिमाग में आते रहते हैं।
हो सकता है कि ऐसे घर अब भी बनते हों या नहीं भी बनते हों, लेकिन इंवेस्टमेंट पोर्टफोलियो इस तरह के घरों से काफी मिलते-जुलते हैं। ज्यादातर मामलों में निवेश इस तरह से चुने जाते हैं, जिनको पोर्टफोलियो का दर्जा देना भी मुश्किल होता है। खैर घर के मामले में अच्छी बात है कि घर कैसा भी बन जाए, आखिर में मालिक के काम तो आ ही जाता है, लेकिन निवेश के मामले में ऐसा हो, यह जरूरी नहीं है। अक्सर पोर्टफोलियो अलग-अलग समय पर जोश में आकर की गई खरीद और सेल्सपर्सन से मिली प्रेरणा का नतीजा होता है।
]इस मामले में सेल्सपर्सन को दोष देना भी उचित नहीं होगा। उसका मुख्य काम अपनी कंपनी के लिए पैसे कमाना होता है, जबकि हमारा निवेश हमारी जिम्मेदारी है। सवाल यह है कि आपको कोई निवेश क्यों चुनना चाहिए? कुछ खरीदने के लिए हमारे दिमाग में दो तरह की सोच चलती है। एक तो हमें किसी चीज की जरूरत होती है और उस जरूरत को पूरा करने की इच्छा हमें खरीद के लिए प्रेरित करती है। दूसरी सोच है कि हम कुछ देखते हैं और उसे खरीदने के समर्थन में तरह-तरह की बातें हमारे दिमाग में आनी शुरू होती हैं।
किसी खरीदारी के ज्यादातर निर्णय इसी का परिणाम होते हैं, लेकिन निवेश के फैसले ऐसे नहीं होने चाहिए।चलिए बात करते हैं कि यह कैसे काम करता है। मान लीजिए कि आप एक टीवी खरीदने की जरूरत महसूस कर रहे हैं, क्योंकि आपको टीवी पर आने वाले मनोरंजक और जानकारी वाले कार्यक्रम देखने हैं। एक बार आपने सोच लिया कि आपको टीवी खरीदना चाहिए, फिर आपके दिमाग में इसके लिए माहौल बनना शुरू हो जाएगा। यह कुछ ऐसे होगा, 32 इंच? 42 इंच ठीक रहेगी। नहीं, 56 इंच वाली ज्यादा अच्छी रहेगी। एचडी तो आम है, कम से कम 4के तो होनी ही चाहिए। खैर, स्मार्ट टीवी तो लेनी ही है,। यह इतनी स्मार्ट तो होनी चाहिए कि मेरे कमांड्स पर काम कर सके और इंटरनेट पर टाडा ट्रांसफर कर सके। इससे इतर, टीवी खरीदने की सोच दूसरी तरह से भी शुरू हो सकती है।
मान लीजिए आपके पास पहले से एक टीवी है लेकिन विज्ञापन आपको नई टीवी लेने के लिए प्रेरित करते हैं। आपको लगता है कि अब स्मार्ट टीवी खरीदना चाहिए। एक बार नया टीवी खरीदने की बात दिमाग में आते ही पुराना टीवी बदल देने के ढेरों तर्क आपके दिमाग में आने लगते हैं।दुर्भाग्यवश निवेश के मामले में खरीद और बिक्री ऊपर बताए गए पहले मॉडल के स्थान पर दूसरे मॉडल के हिसाब से ज्यादा होती है। कायदे से होना यह चाहिए कि आपको किसी जरूरत के लिए निवेश करने की जरूरत महसूस हो। इसके बाद फैसला लें कि आपकी जरूरत के हिसाब से कौन सा निवेश बेहतर रहेगा। अब आप अपने चुनाव के हिसाब से निवेश करें।
उदाहरण के लिए आप एक दशक बाद होने वाले बड़े खर्च के लिए बचत करना चाहते हैं। इस खर्च के लिए आप जो पैसा बचाएंगे वह आपकी पूरी संपत्ति का बड़ा हिस्सा नहीं है और आपके पास समय भी है। इस तरह के मामले में इक्विटी में निवेश करना सबसे अच्छा रहेगा। एक बार यह फैसला कर लेने के बाद कई तरह के इक्विटी फंड का ट्रैक रिकॉर्ड चेक करना चाहिए और इनमें से कुछ फंड को चुन लेना चाहिए। इनमें लंबे समय से अच्छा प्रदर्शन कर रहे दो या तीन इक्विटी फंड शामिल हो सकते हैं। इसके बाद आपको इनमें बराबर मात्रा में निवेश शुरू करना चाहिए।
चलिए, निवेश के इस तरीके की तुलना आम प्रचलित खरीदारी से करते हैं, जैसे टीवी खरीदने के दूसरे मॉडल पर चर्चा की गई थी। आप किसी म्यूचुअल फंड का कोई विज्ञापन देखते हैं। फिर आपको पता चलता है कि यह म्यूचुअल फंड किस तरह से बेहतर प्रदर्शन करेगा। अब आपको लगने लगता है कि आपने जहां पहले निवेश कर रखा है उसके मुकाबले यह ज्यादा बेहतर है। इस तरह से आप प्रेरित होते हैं और दूसरे फंड में निवेश कर देते हैं।इस तरह से निवेश से जुड़े आपके फैसले दो तरह से प्रेरित होते हैं। एक में आप अपनी जरूरत के हिसाब से फंड का चयन करते हैं, दूसरे में आप बाहरी चीजों से प्रभावित होकर निवेश करते हैं और किसी दूसरे की व्यापारिक जरूरतों को पूरा कर रहे होते हैं। निवेश के मामले में जब आप सावधानी से और चरणबद्ध तरीके से सोचते हैं, तो सही फैसला लेना आसान हो जाता है।