इलेक्ट्रिक को लेकर मोदी सरकार के इस प्लान ने देश भर को चौकाया, सभी राज्य सरकारे…

इलेक्ट्रिक वाहनों को लेकर केंद्र सरकार की नीतियों से राज्य सरकारें डरी हुई हैं. राज्य सरकारों का कहना है कि इलेक्ट्रिक गाड़ियों के आने से पेट्रोल-डीजल की खपत घटेगी और इससे वैट के जरिए आने वाले राजस्व में कमी आएगी. केंद्र सरकार ने 2030 तक देश में मौजूद 30 फीसदी निजी कारों, 70 फीसदी कॉर्मशियल कारों, 40 फीसदी बसों और 80 फीसदी दोपहिया और तीन-पहिया गाड़ियों को इलेक्ट्रिक व्हीकल में बदलने का फैसला किया है. वहीं, राज्य सरकारों को चिंता है कि पेट्रोलियम पदार्थ जीएसटी के बाहर हैं. इलेक्ट्रिक गाड़ियों के आने से उन्हें वैट से होने वाला राजस्व कम हो जाएगा. ये उनके लिए बड़ा नुकसान होगा.

राज्य सरकारें चाहती हैं कि अगर केंद्र सरकार की इलेक्ट्रिक गाड़ियों की नीति से उनके राजस्व में कमी आती है तो केंद्र सरकार उसकी भरपाई करे. इससे पहले केंद्र सरकार ने जीएसटी लागू करते वक्त कहा था कि राज्य सरकारों की जीएसटी राजस्व में आई कमी को केंद्र सरकार पांच साल तक पूरा करेगी. अब इलेक्ट्रिक गाड़ियों की नीति से डरी हुई राज्य सरकारें कह रही हैं कि जीएसटी के मामले की अवधि और पांच साल बढ़ाई जाए. ताकि, इलेक्ट्रिक गाड़ियों की नीति से होने वाले नुकसान की थोड़ी-बहुत भरपाई हो सके.

आइए…आपको बताते हैं कि इलेक्ट्रिक गाड़ियों की नीति से क्या फायदे और नुकसान होंगे

इलेक्ट्रिक गाड़ियों के फायदे

1. किफायतीः काफी रिसर्च के बाद अब इलेक्ट्रिक गाड़ियों की कीमत काफी कम हो गई है. इस पर लगने वाला जीएसटी 12 फीसदी से कम होकर 5 फीसदी हो गया है.

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2. पर्यावरण को नुकसान नहींः इलेक्ट्रिक गाड़ियां 100 प्रतिशत ईको-फ्रेंडली हैं. इनसे कोई जहरीली गैस नहीं निकलती. ग्लोबल वार्मिंग में भारत की हिस्सेदारी कम हो जाएगी. वायु और ध्वनि प्रदूषण बेहद कम हो जाएगा.

3. कम मेंटेनेंस खर्च: पारंपरिक गाड़ियों की तुलना में इलेक्ट्रिक गाड़ियों की मेंटेनेंस लागत बेहद कम आती है. क्योंकि इसमें इंजन ऑयल जैसे लिक्विड नहीं होते. ज्यादातर हिस्सों को बदलने की जरूरत नहीं पड़ती.

क्या भारत ऐसी गाड़ियों के लिए तैयार है…पक्ष के जवाब

  1. भारत में 1945 से ही कोलकाता में इलेक्ट्रिक ट्रॉम चल रही है. हजारों इलेक्ट्रिक ट्रेनें चल रही हैं. इनसे समय और पैसे की बचत हो रही है.
  2. नीति आयोग के अनुसार 2030 तक अगर तय फॉर्मूले के अनुसार इलेक्ट्रिक गाड़ियां चलने लगीं तो सड़क पर चलने वाली गाड़ियों में लगने वाली ऊर्जा का 64 फीसदी हिस्सा बचेगा. साथ ही कार्बन उत्सर्जन में 30 प्रतिशत की कमी आएगी.
  3. 2030 तक इलेक्ट्रिक गाड़ियों के आने से देश में 153 मेगाटन डीजल और पेट्रोल की बचत होगी. इससे करीब 3.9 लाख करोड़ रुपए की बचत होगी. इन पैसों का उपयोग इलेक्ट्रिक गाड़ियों की तकनीकों को विकसित करने में हो सकता है.
  4. दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 13 शहर तो भारत में ही हैं. इलेक्ट्रिक गाड़ियों के आने से इन शहरों में वायु और ध्वनि प्रदूषण कम होगा.
  5. पेरिस पर्यावरण संधि के अनुसार भारत को 2030 तक जहरीली गैसों के वैश्विक उत्सर्जन में अपनी हिस्सेदारी कम करनी है. इसीलिए केंद्र सरकार राष्ट्रीय ई-मोबिलिटी योजना बनाई है.

क्या भारत सच में तैयार है…विरोध में दलीलें

  1. ज्यादातर भारतीय पेट्रोल-डीजल वाली गाड़ियां पसंद करते हैं. क्योंकि इलेक्ट्रिक गाड़ियों का पिकअप कमजोर होता है. गति भी धीमी होती है. सबसे बड़ा कारण है इलेक्ट्रिक चार्जिंग प्वाइंट और सेंटर्स की कमी.
  2. सोसाइटी ऑफ मैन्यूफैक्चरर्स ऑफ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स के अनुसार भारत में मार्च 2016 तक 22 हजार इलेक्ट्रिक व्हीकल्स उत्पादित हुए थे. इनमें से सिर्फ 2000 चौपहिया थे. जबकि, 2011 से 2015 के बीच इलेक्ट्रिक गाड़यों का उत्पादन पूरी दुनिया में 94% बढ़ा था. इनमें सबसे ज्यादा चीन, अमेरिका और यूरोप में.
  3. नागपुर में शुरू हुई ओला इलेक्ट्रिक व्हीकल योजना फेल हो गई. ओला ड्राइवर इलेक्ट्रिक गाड़ियां लौटाने लगे थे. वे वापस पारंपरिक कारों की तरफ चले गए. क्योंकि चार्जिंग स्टेशन पर लंबी लाइनें लगी रहती थीं और लागत ज्यादा आ रही थी.
  4. 2016 में कुल 30 लाख गाड़ियां देश में बिकी जबकि इलेक्ट्रिक गाड़ियां सिर्फ 22 हजार. ऐसे में इनका भविष्य अभी दिख नहीं रहा है.
  5. देश में सबसे पहले ज्यादा से ज्यादा इलेक्ट्रिक चार्जिंग स्टेशन बनाने होंगे तभी जाकर इलेक्ट्रिक गाड़ियों को लेकर देश में सहजता बन पाएगी.
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