कारगिल युद्ध के 20 साल पूरे हो चुके हैं। अदम्य साहस और वीरता की जो कहानियां इस युद्ध से निकलकर आईं वो आज भी हमारी रगों में जोश भर देती हैं। आज ही के दिन यानि 07 जुलाई 1999 को भारत मां का एक सपूत देश पर न्यौछावर हुआ था। लेकिन उनकी वीरता के किस्से देश के हर नागरिक की जुबां पर हैं। हम बात कर रहे हैं कैप्टन विक्रम बत्रा की। युद्ध के दौरान विक्रम बत्रा घायल अफसर से बोले- ‘तुम हट जाओ, तुम्हारे बीवी-बच्चे हैं’ और जाकर दुश्मनों से भिड़ गए। शहादत भी प्राप्त की। पढ़िए इस परमवीर की शहादत की गौरव गाथा…
कारगिल युद्ध में सबसे महत्वपूर्ण बिंदु को जीतने में अहम भूमिका निभाने वाले शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा अब भी अपने साथियों के दिलों में जिंदा हैं। चंडीगढ़ का डीएवी कॉलेज सेक्टर-10 हो या फिर पंजाब यूनिवर्सिटी का एमए अंग्रेजी विभाग या फिर सेक्टर-17 का एक सैलून। शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा यहां के हीरो हैं। एक बार शहीद के पिता गिरधारी लाल बत्रा ने खुद बेटे की वीरगाथा सुनाई थी।
गिरधारी लाल बत्रा ने बताया था कि विक्रम डीएवी कॉलेज में चार साल पढ़े, उसके बाद पंजाब यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की। सीडीएस की तैयारी भी यहीं की और एमए अंग्रेजी में दाखिला लिया। उन्होंने बताया कि चंडीगढ़ से शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा के दोस्त अब भी उन्हें फोन करते हैं। हिमाचल प्रदेश पालमपुर के घुग्गर गांव में 9 सितंबर 1974 को विक्रम बत्रा का जन्म हुआ था।
विक्रम ने स्नातक के बाद सेना में जाने का पूरा मन बना लिया और सीडीएस (सम्मिलित रक्षा सेवा) की भी तैयारी शुरू की। विक्रम को ग्रेजुएशन के बाद हांगकांग में भारी वेतन में मर्चेन्ट नेवी में भी नौकरी मिल रही थी लेकिन सेना में जाने के जज्बे वाले विक्रम ने इस नौकरी को ठुकरा दिया। विक्रम को 1997 को जम्मू के सोपोर में सेना की 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स में लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्ति मिली। 1999 में कारगिल की जंग में विक्रम को भी बुलाया गया।
इस दौरान विक्रम के अदम्य साहस के कारण उन्हे प्रमोशन भी मिला और वे कैप्टन बना दिए गए। श्रीनगर-लेह मार्ग के ठीक ऊपर सबसे महत्त्वपूर्ण 5140 चोटी को पाक सेना से मुक्त करवाने का जिम्मा भी कैप्टन विक्रम बत्रा को दिया गया था। बेहद दुर्गम क्षेत्र होने के बावजूद विक्रम बत्रा ने अपने साथियों के साथ 20 जून 1999 को इस पोस्ट पर विजय हासिल की। इसके बाद सेना ने प्वाइंट 4875 पर कब्जा करने की कवायद शुरू की थी। फिर इसका भी जिम्मा कैप्टन विक्रम बत्रा को ही दिया गया था।
इस ऑपरेशन में लेफ्टिनेंट अनुज नैय्यर ने विक्रम बत्रा के साथ कई पाकिस्तानी सैनिकों को ढेर किया था। मिशन लगभग पूरा हो चुका था जब कैप्टन अपने कनिष्ठ अधिकारी लेफ्टीनेंट नवीन को बचाने के लिये लपके। लड़ाई के दौरान एक विस्फोट में लेफ्टीनेंट नवीन के दोनों पैर बुरी तरह जख्मी हो गये थे। कैप्टन बत्रा ने बोला- ‘तुम हट जाओ, तुम्हारे बीवी-बच्चे हैं’ और वे उन्हें पीछे घसीटने लगे। इस दौरान कैप्टन की छाती में गोली लगी और वे “जय माता दी” कहते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए।
शहादत को दो दशक बीत गए पर अब भी उनके दोस्त उनका जिक्र सुनते ही यह जुमले दोहराते हैं ‘या तो मैं लहराते तिरंगे के पीछे आऊंगा, या तिरंगे में लिपटा हुआ आऊंगा, पर मैं आऊंगा जरूर’, ‘ये दिल मांगे मोर’। गिरधारी लाल बत्रा ने बतााया था कि विक्रम की बात एकदम अलग थी। आर्मी से पहले मर्चेंट नेवी में नौकरी मिली पर ठुकरा दी। मां से बोला, मम्मी मुझको देश के लिए कुछ करना है। विक्रम नेताजी सुभाष चंद्र बोस और चंद्रशेखर आजाद से प्रभावित थे। यह थी हमारे हीरो कैप्टन विक्रम बत्रा की शहादत की गाथा।