अच्छे दिन हुए गायब? फीकी पडऩे लगी भारतीय अर्थव्यवस्था की चमक

indian-economy-54be20b04b60f_lमोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद आर्थिक मोर्चे पर अच्छे दिनों की काफी उम्मीद जगी थी और शुरुआती महीनों में ऐसा लगा भी कि भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढ़ रही है, लेकिन पिछले कुछ महीनों में यह एक बार फिर ढलान की ओर बढ़ती दिख रही है। 
 
सेंसेक्स 30 हजार अंक के पार पहुंचने के बाद पिछले सात महीने में लगभग तीन हजार अंक उतर चुका है। रुपया 60 पैसे प्रति डॉलर से भी मजबूत होने के बाद 65 रुपए प्रति डॉलर के नीचे गिर चुका है। कच्चा तेल की कीमतों में पिछले साल शुरु हुई गिरावट के कारण अनुकूल बेस अफेक्ट कम हो रहा है और खुदरा महंगाई दुबारा बढ़ रही है। 
 
औद्योगिक उत्पादन नौ महीने के निचले स्तर पर आ चुका है और थोक महंगाई लगातार शून्य से चार प्रतिशत से ज्यादा नीचे रहने से अवस्फीति की आशंका पैदा हो गई है, जिससे उद्योग पटरी पर आते नहीं दिख रहे। रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने 29 सितंबर को जारी चौथी द्विमासिक मौद्रिक नीति के लिए 23 सितंबर को हुई समीक्षा बैठक का ब्योरा बुधवार को जारी किया। 
 
इसमें कहा गया है कि घरेलू स्तर पर विकास के पटरी पर लौटने का कोई संकेत नहीं है। कर संग्रह बढऩे के कारण आर्थिक गतिविधियों में बढ़ोतरी की बजाय सरकार द्वारा कर वसूली के लिए किया गया अतिरिक्त प्रयास र उत्पाद शुल्क, उपकर तथा सेवा करों में बढ़ोतरी रही है।
 
इसमें कहा गया है कि नई परियोजनाओं की घोषणा में कमी इस ओर इशारा करती है कि नया पूंजी निवेश नहीं हो रहा है, जो चिंता का विषय है। अंतर्राष्ट्रीय साख निर्धारक एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पूअर्स (एसएंडपी) ने भी इस सप्ताह भारत की रेटिंग “बीबीबी माइनस” पर स्थिर रखते हुए कहा था कि उसे इस साल या अगले साल भारतीय अर्थव्यवस्था में बड़े सुधार की उम्मीद नहीं दिख रही है। घरेलू उद्योग संगठन एसोचैम ने भी “ईज ऑफ डूइंग इंडेक्स” जारी करते हुए कहा है कि पिछले एक साल में भ्रष्टाचार, जमीन अधिग्रहण, पर्यावरणीय मंजूरी मिलने, गैर-पर्यावरणीय नियमों तथा कराधान नीति आदि की स्थिति में सुधार नहीं होने से देश में कारोबार करना अभी आसान नहीं हुआ है। 
 
मोदी सरकार के सत्त में आने के बाद “मेक इन इंडिया” अभियान के ऐलान तथा विदेश यात्राओं पर प्रधानमंत्री द्वारा विदेशी निवेश आकर्षित करने के प्रयास से अचानक विश्व आर्थिक मंच पर भारत की चर्चा बढ़ गई। सरकार से सुधारों की उम्मीद में निवेशकों ने बाजार में जमकर पैसा लगाया और इस साल 04 मार्च को सेंसेक्स ऐतिहासिक उच्चतम स्तर 30024.74 अंक पर पहुंच गया। लेकिन, इसके बाद सात महीनों में यह उतरकर 27287.66 अंक पर आ चुका है। रुपया पिछले साल जुलाई में 60 रुपया प्रति डॉलर से ज्यादा मजबूत होने के बाद अब दुबारा 65 रुपए प्रति डॉलर के नीचे उतर चुका है।
 
सरकार के आधार वर्ष और गणना प्रणाली बदलने से सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की व़द्धि दर बढ़ गई और खुदरा महंगाई में अचानक गिरावट दर्ज की गई। इसके बावजूद 2015-16 की पहली तिमाही में जीडीपी विकास दर 2014-15 की पहली तिमाही के मुकाबले घट गई। खुदरा महंगाई एक बार फिर बढऩी शुरू हो गई है और कच्चे तेल के दाम में बेस अफेक्ट अब कम अनुकूल रहने से इसके और बढऩे की आशंका है। यह बेस अफेक्ट अगले साल जनवरी तक प्रतिकूल होने की आशंका है। 
 
 सरकारी आंकड़ों के अनुसार, अगस्त में औद्योगिक उत्पादन का सूचकांक 176.9 पर रहा जो पिछले साल नवंबर के बाद का निचला स्तर है। हालांकि, पिछले साल अगस्त में औद्योगिक उत्पादन बेहद कम रहा था और सूचकांक 166.2 पर था जिससे उसकी तुलना में अगस्त 2015 में 6.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी भी बेस अफेक्ट के कारण रही। सरकार जरूर अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के प्रयास कर रही है, लेकिन जमीनी स्तर पर इसका असर अब तक देखने को नहीं मिला है। सरकार के प्रयासों से निवेशकों की धारणा शुरुआती महीनों में मजबूत हुई थी, लेकिन अब उसका जादू फीका पड़ता दिख रहा है। 

 

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