राहुल गांधी ने अपने आवास पर दिल्ली के प्रमुख नेताओं की बैठक बुलाई ,ये बैठक बहुत ही खास
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष शीला दीक्षित और प्रदेश प्रभारी पीसी चाको के बीच लंबे समय से चल रहे शीत युद्ध के वार अब आलाकमान के दरबार में भी होंगे। दोनों ही ओर से आरोपों के बाण तैयार कर लिए गए हैं जो लोकसभा चुनाव में हार के कारणों की चर्चा के क्रम में छोड़े जाएंगे। इन बाणों से कौन कितना घायल होगा? यह तो कहना अभी मुश्किल है, लेकिन प्रदेश इकाई में बदलाव का खाका तैयार होता जरूर दिख रहा है।
गौरतलब है कि पार्टी आलाकमान राहुल गांधी ने 28 जून को सुबह साढ़े 10 बजे अपने आवास पर दिल्ली के प्रमुख नेताओं की एक बैठक बुलाई है। बैठक में दिल्ली की सातों लोकसभा सीटों के प्रत्याशी और प्रदेश प्रभारी पीसी चाको उपस्थित रहेंगे। बैठक में लोकसभा हार के कारणों और आगामी विधानसभा चुनावों की रणनीति पर चर्चा होगी।
पार्टी सूत्रों के मुताबिक शीला समर्थक नेताओं ने हार के कारणों की रिपोर्ट तैयार कर ली है, जबकि चाको समर्थक नेताओं ने बूथ, ब्लॉक और जिला स्तर से लेकर प्रदेश स्तर पर ली गई फीडबैक पर रिपोर्ट बनाई है। दोनों ही गुटों के तर्क न सिर्फ एक-दूसरे की काट करते हैं बल्कि उन्हें कठघरे में भी खड़ा करते हैं।
पार्टी सूत्र बताते हैं कि यह बैठक कहीं न कहीं प्रदेश कांग्रेस में बदलाव का खाका तैयार करने का आधार भी बनेगी। केंद्रीय नेतृत्व को लगातार यह संदेश देने का प्रयास किया जा रहा है कि कुछेक नेताओं को साथ लेकर और वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार कर संगठन नहीं चलाया जा सकता। ऐसे में जरूरत एक सशक्त, ऊर्जावान और उत्साही नेतृत्व की है जो बूथ और ब्लॉक स्तर तक पार्टी को खड़ा कर सके।
शीला दीक्षित गुट का तर्क
- AAP से गठबंधन की कवायद से लोकसभा में कांग्रेस को नुकसान हुआ।
- उम्मीदवारों की विलंब से घोषणा किया जाना भी हार का मुख्य कारण रहा।
- दक्षिणी दिल्ली से बाहरी उम्मीदवार उतारे जाने से पार्टी में गलत संदेश गया।
- बूथ स्तर पर समितियों के गठन में फर्जीवाड़ा हुआ, कहीं कोई कम नहीं हुआ।
- प्रदेश संगठन की कमजोरी से पार्टी को नुकसान हुआ, बदलाव करना जरूरी है।
पीसी चाको गुट की तर्क
- दक्षिणी दिल्ली से पूर्व सांसद रमेश कुमार और उत्तर पश्चिमी दिल्ली से पूर्व मंत्री राजकुमार चौहान का टिकट काटा जाना गलत निर्णय साबित हुआ।
- चाको की सूची में से जो पांच टिकट दिए गए, उन सभी जगह पार्टी दूसरे नंबर पर रही जबकि शीला ने दो जगह नाम बदलवाए, वहां पार्टी तीसरे नंबर पर आई।
- सभी प्रत्याशियों ने अकेले चुनाव लड़ा, संगठन कहीं साथ नहीं नजर आया। प्रदेश अध्यक्ष किसी उम्मीदवार के क्षेत्र में प्रचार के लिए नहीं गईं।
- चुनाव के दौरान भी अहम के टकराव में ब्लॉक और जिला अध्यक्ष बदले जाने का दौर जारी रहा।
- चुनाव प्रचार के दौरान प्रदेश कार्यालय की ओर से ब्लॉक और बूथ कार्यकर्ताओं की कोई बैठक नहीं की गई। इससे उनका मनोबल टूटा ।