भगवान विष्णु की कृपा दिलाती है मोहिनी एकादशी , जानें कथा और पूजन विधि
वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी कहा जाता है। इस एकादशी का व्रत करने से बहुत ही पुण्य फल की प्राप्ति होती है। 15 मई को इस एकादशी का व्रत रखा जाएगा। धर्मशास्त्रों में एकादशी तिथि को विष्णु स्वरुप माना गया है। भगवान विष्णु की साधना-आराधना के लिए समर्पित एकादशी का सनातन परंपरा में विशेष महत्व है।
भगवान राम में भी रखा था यह व्रत
मोहिनी एकादशी के बारे में शास्त्रों में बताया गया है कि त्रेता युग में जब भगवान विष्णु राम का अवतार लेकर पृथ्वी पर आए और अपने गुरु वशिष्ठ मुनि से इस एकादशी के बारे में जाना था। संसार को इस एकादशी का महत्व बताने के लिए भगवान राम ने स्वयं भी यह एकादशी व्रत किया था। वहीं द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को इस व्रत को करने की सलाह दी थी।
कैसे पड़ा मोहिनी एकादशी नाम
मोहिनी एकादशी के विषय में मान्यता है कि समुद्र मंथन के बाद जब अमृत पीने के लिए देवता और दानवों के बीच विवाद छिड़ गया तब भगवान विष्णु सुंदर नारी का रूप धारण करके देवता और दानवों के बीच पहुंच गये। इनके रूप से मोहित होकर दानवों ने अमृत का कलश इन्हें सौंप दिया। मोहिनी रूप धारण किये हुए भगवान विष्णु ने सारा अमृत देवताओं को पिला दिया। इससे देवता अमर हो गये। जिस दिन भगवान विष्णु मोहिनी रूप में प्रकट हुए थे उस दिन एकादशी तिथि थी। भगवान विष्णु के इसी मोहिनी रूप की पूजा मोहिनी एकादशी के दिन की जाती है।
ऐसे करें व्रत और पूजा
शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति विधि-विधान से भगवान विष्णु की साधना करते हुए एकादशी का व्रत और रात्रि जागरण करता है, उसे वर्षों की तपस्या का पुण्य प्राप्त होता है। एकादशी के दिन साधक या व्रती को एक बार दशमी तिथि को सात्विक भोजन करना चाहिए। मन से भोग-विलास की भावना त्यागकर भगवान विष्णु का स्मरण करना चाहिए। एकादशी के दिन सूर्योदय काल में स्नान करके व्रत का संकल्प करना चाहिए। संकल्प के उपरांत षोडषोपचार सहित श्री विष्णु की पूजा करनी चाहिए। भगवान के समक्ष बैठकर भगवद् कथा का पाठ करना चाहिए।