आखिर बाज़ार के खाने को देखकर क्यों टपकती है लार ?

अब चूंकि बाजार में तैयार खाना मिल ही जाता है, तो हम भी आलस कर जाते हैं। इसमें कोई शक भी नहीं कि बाजारू खाने का जायका एकदम अलग होता है, लेकिन इन्हें जायकेदार बनाने के पीछे लंबी प्रक्रिया और साइंस काम करती है।रेडीमेड खाना आग पर कम, माइक्रोवेव में गर्म करने के लिहाज से पकाए जाते हैं।कई व्यंजन तो माइक्रोवेव में ही बनाए भी जाते हैं। माइक्रोवेव के संपर्क में आते ही खाने में कई तरह की रासायनिक प्रतिक्रियाएं होती हैं। इनमें से सबसे मशहूर है ‘मैलार्ड रिएक्शन’ खाने में होने वाले इस केमिकल रिएक्शन को सबसे पहले 1912 में फ्रांस के वैज्ञानिक लुईस कैमिले मैलार्ड ने खोजा था।
मैलार्ड रिएक्शन
मैलार्ड रिएक्शन

जब हमारे खान-पान की चीज़ों में मौजूद अमीनो एसिड को चीनी के साथ मिलाकर गर्म किया जाता है, तो खाने में खास तरह की प्रतिक्रिया होती है जिसकी वजह से खाना गहरे भूरे रंग का हो जाता है उसका जायका बढ़ जाता है।मैलार्ड रिएक्शन सबसे ज्यादा बेकरी में तैयार चीजों में होता है। बिस्कुट, तली हुई प्याज, चिप्स, तले हुए आलू, इस तरह के दीगर खाने इसी केमिकल रिएक्शन की वजह से इतने लजीज बनते हैं कि हम चाह कर भी ख़ुद को रोक नहीं पाते। ब्रिटेन के फूड रिसर्चर स्टीव एलमोर कहते हैं कि खाने में होने वाली ये केमिकल प्रतिक्रया बहुत पेचीदा है, अगर अमीनो एसिड नाइट्रोजन के साथ मिलते हैं, तो ये खाने में उम्दा क़िस्म की खूशबू पैदा करते हैं। अगर खाना बहुत ज्यादा गीला होगा तो उसमें ये केमिकल रिएक्शन संभव नहीं है।मिसाल के लिए अगर कच्चे आलू को तंदूर में सेंका जाता है, तो उसकी 80 फीसद नमी खत्म हो जाती है और जब ये उबलने को होता है, तो पानी भाप बनकर उड़ने लगता है और उसकी सतह सूखने लगती है। यही वजह कि सेंके हुए आलू की ऊपरी सतह भूरी और थोड़ी कड़ी होती है। जबकि, अंदर से आलू अपने क़ुदरती रंग वाला होता है।

मैलार्ड प्रतिक्रिया

मैलार्ड प्रतिक्रिया के लिए खाने में नमी का स्तर पांच फीसद कम होना जरूरी है। तभी खाने की ऊपरी सतह गहरे भूरे रंग वाली बनती है।माइक्रोवेव में यही काम दूसरी तरह से होता है। जब खाने को आग पर सेंका जाता है, तो उसमें मैलार्ड प्रतिक्रिया तेजी से होती है, लेकिन माइक्रोवेव में तेज किरणों के जरिए खाने को सेंका जाता है।जिसकी वजह से खाने में मैलार्ड प्रतिक्रिया सही तरीके से नहीं हो पाती। इसी वजह से माइक्रोवेव की गर्मी में तैयार खाने का स्वाद फीका और बदमजा होता है।एक रिसर्च में पाया गया कि पारंपरिक तरीके से सेंके हुए गोश्त के मुकाबले माइक्रोवेव में तैयार किए गोश्त का जायका एक तिहाई ही लजीज था।माईक्रोवेव में चूंकि खाना जल्दी तैयार होता है, लिहाजा ज्यादातर लोग इसी का सहारा लेते हैं,लेकिन खाने को भरपूर जायकेदार बनाने के लिए बेक किए गए खाने पर नमक, चीनी और मोनोसोडियम ग्लूटोमेट की परत चढ़ा देते हैं।चीन में इस तरह के खाने की काफ़ी मांग है. 2015 में ब्रिटेन के द टेलीग्राफ अखबार ने अपनी रिसर्च में पाया था कि ब्रिटेन की सुपरमार्केट में मिलने वाले खानों में चीनी की मात्रा कोका कोला की एक केन के बराबर है। खाने में चीनी की इतनी मात्रा उचित नहीं है।ताजा और घर जैसा खाना मुहैया कराने की मांग लगातार बढ़ रही है।जबकि पारंपरिक तरीके से स्वादिष्ट खाना तैयार करने में समय लगता है,लिहाजा खाना तैयार करने वाले दूसरे विकल्पों पर निर्भर हो रहे हैं।हालांकि बहुत से तजुर्बेकार बावर्चियों का कहना है कि माईक्रोवेव हरेक तरह का खाना तैयार करने के लिए मुफीद नहीं है।माईक्रोवेव तेज आंच के साथ पानी को पूरी तरह से सुखा देता है और खाने को सूखा बना देता है।जबकि खाने को मुलायम रखने के लिए उसमें हल्की सी नमी होना जरूरी है।

microwave

माईक्रोवेव में खाना बनाना इतना बुरा भी नहीं बशर्ते कि उसे माकूल गर्म आंच पर जल्दी पकाया जाए। ज्यादतर माइक्रोवेव 2.45 गीगाहर्त्ज पर किरणें निकालते हैं।इतनी गर्मी चिकनाई, चीनी और पानी के लिए उचित है, इतनी गर्मी में ऐसा खाना आसानी से पकाया जा सकता है जिनमें पानी और चिकनाई की मात्रा ज्यादा होती है।माइक्रोवेव में तैयार खाने की एक और दिक्कत है।वो अधपके होते हैं,इसलिए खराब भी जल्दी होते हैं। चूंकि इस अधपके खाने को फ्रिज में ठंडा करके लंबे वक्त तक रखा जाता है इसीलिए इनका जायका बासी हो जाता है।खासतौर से अधपके गोश्त की चिकनाई जब ऑक्सीजन के संपर्क में आती है, तो उसमें खास किस्म की बू पैदा हो जाती है।इस मुश्किल से पार पाने के लिए ये प्रोजेक्ट तैयार करने वाले खाने में एंटीऑक्सिडेंट मिलाते हैं। मैलार्ड तत्व एक अच्छा एंटी ऑक्सिडेंट है।लेकिन हैरत की बात है कि इन खानों में वही नदारद होता है।रेडीमेड खाना बनाने वालों की कोशिश होती है कि खाने को खराब करने वाले केमिकल रिएक्शन होने से पहले ही उसे खा लिया जाए, इसीलिए तैयार खानों की उम्र कम रखी जाती है।कई मर्तबा पैक खानों में सीलन भी होती है। दरअसल जब खाने को बड़े बर्फखानों में रखा जाता है, तो बहुत ज्यादा ठंड से खाने में नमी पैदा हो जाती है, लेकिन अब इसका उपाय भी खोज लिया गया है।

microwave food

नई तकनीक की मदद से इन बर्फ़खानों में खाना कार्ड बोर्ड के डिब्बों में बंद करके रखा जाता है, जिन पर मेटेलिक फिल्म चढ़ी रहती है। इससे खाना ठंडा रहता है. उसमें ना तो बैक्टीरिया पैदा होते हैं, ना ही खाने में नमी जाती है।तैयार खाने की बढ़ती मांग पूरा करने में माइक्रोवेव मददगार हैं। लेकिन इसमें भी कोई शक नहीं कि इसकी गर्मी में तैयार खानों का स्वाद उतना अच्छा नहीं होता, जितना पारंपरिक तरीक़े से बने खाने में क्योंकि पारंपरिक तरीके से तैयार खाने को जायकेदार बानाने वाले सभी तत्व उसमें मौजूद रहते हैं,लेकिन उसे बनाने में समय लगता है।बेहतर तो यही है कि घर का पका ताजा खाना ही खाया जाए।बाजार के खाने को देखकर हमारी लार क्यों टपकती है? जाने क्या है

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