जब आयोग ने दिखाई सख्ती तो बदली चुनाव प्रचार की सूरत और सीरत

लोकसभा चुनावों के इतिहास में ये चुनाव कुछ अलग और अनूठा है। इस बार न तो कानफोडू भोंपू है, न झंडों और बैनरों की भरमार। सरकारी भवन हों या निजी आवास, पुराने समय की तरह वे न रंगे हैं न पुते। चुनाव के समय देहरादून का यह नया रूप है।जब आयोग ने दिखाई सख्ती तो बदली चुनाव प्रचार की सूरत और सीरत

सामान्य दिनों में भी होर्डिंग्स से पट जाने राजधानी की सड़कों और इमारतों से बड़े-बड़े होर्डिंग नदारद हैं। ये नजारा दूनवासियों को सुकून दे रहा है। चुनाव प्रचार की सूरत और सीरत में आया ये बदलाव जागरूकता से ही मुमकिन हो पाया है। चुनाव आयोग की सख्ती और सियासी दलों की जागृति ने प्रचार के पारंपरिक तौरतरीकों में जो बड़ा बदलाव हुआ है, उससे लोग खुश हैं।

प्रदेश में 11 अप्रैल को होने वाले लोकसभा चुनाव में प्रचार के लिए अब मात्र चार दिन शेष रह गए हैं। लेकिन दून की फिजा में इस बार चुनावी माहौल पूरी तरह से शांत है। आईएसबीटी से लेकर ऐतिहासिक घंटाघर तक सड़क किनारे कहीं भी झंडे, पोस्टर, बैनर व होर्डिंग्स नजर नहीं आ रहे हैं। शहर की सड़कों से लेकर गली मोहल्लों में भी लाउड स्पीकरों से चुनावी शोरगुल सुनाई दे रहा है।

शहर की सुंदरता को देख कर ऐसा लग रहा है कि मानो यहां कोई चुनाव नहीं हो रहा है। इस बार निर्वाचन आयोग ने भी आदर्श आचार संहिता का अनुपालन करने के लिए काफी सख्ती की है। कोई भी प्रत्याशी व राजनीतिक दल अपनी मर्जी से कहीं भी झंडे, बैनर, पोस्टर व होर्डिंग्स नहीं लगा सकता है। इसके लिए बकायदा निर्वाचन आयोग से अनुमति लेनी होगी।

समय के साथ चुनाव प्रचार के पारंपरिक तौर तरीकों को काफी बदलाव आया है। पहले दीवारों पर नारे लिखना और लाउड स्पीकर से प्रचार करने का प्रचलन सबसे प्रभावी होता था। रात के समय किसी की भी दीवार को नारों से पोत देते थे। सुबह से रात तक लाउट स्पीकरों से प्रचार होता था। अब ऐसा कुछ नहीं दिख रहा है। सोशल मीडिया के चलते ही चुनाव प्रचार का तरीका बदला है। चुनावी रैली में किसी बड़े नेता को सुनने के लिए दूर-दूर से पहुंचते थे। लेकिन अब घर बैठे ही देख सकते हैं और सुन सकते हैं। चुनावी शोरगुल से आम लोगों को सुकून मिला है।

चुनाव प्रचार में निर्वाचन आयोग ने पहले की तुलना में काफी सख्ती की है। किसी के घर में पार्टी का झंडा भी लगाना है तो उसके लिए मकान मालिक से अनुमति लेकर एसडीएम को देनी होगी। लेकिन चुनावी खर्च को रोकने और शहर को साफ सुथरा बनाने के लिए यह सही कदम भी है।

पर्यावरण संरक्षण और चुनावी खर्च पर अंकुश लगाने के लिए निर्वाचन आयोग की सख्ती का भाजपा सराहना करती है। पेपरलेस प्रचार होने से पर्यावरण का संरक्षण होगा। साथ ही शहर स्वच्छ व सुंदर बनेगा। आने वाले समय में झंडे, बैनर, पोस्टर से प्रचार को और भी कम किया जाना चाहिए।

ये अनुमति लेनी अनिवार्य
चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी व दलों को बैठक और लाउड स्पीकर से प्रचार करने, अस्थाई पार्टी कार्यालय खोलने, वाहन परमिट, जुलूस, रैली, नुक्कड़ सभा के लिए निर्वाचन आयोग से अनुमति लेनी होगी। सरकारी हो या निजी संपत्ति पर पोस्टर, बैनर व झंडे लगाने के साथ वॉल राइटिंग नहीं कर सकते हैं। बिना अनुमति के ऐसा करने पर आचार संहिता का उल्लंघन माना जाएगा।

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