100 संतानों को इस अप्सरा ने दिया था जन्म, देखते ही मोहित हो जाते थे ऋषि और…
आप सभी को बता दें कि शास्त्रों की माने तो देवराज इन्द्र के स्वर्ग में 11 अप्सराएं प्रमुख सेविका थीं और ये 11 अप्सराएं हैं- कृतस्थली, पुंजिकस्थला, मेनका, रम्भा, प्रम्लोचा, अनुम्लोचा, घृताची, वर्चा, उर्वशी, पूर्वचित्ति और तिलोत्तमा. कहा जाता है इन सभी अप्सराओं की प्रधान अप्सरा रम्भा थीं. औरअलग-अलग मान्यताओं में अप्सराओं की संख्या 108 से लेकर 1008 तक बताई गई है. ऐसे में सभी अप्सराओं के किस्से और कहानियां बहुत ही रोचक है जिनमे से एक आज हम आपको बताने जा रहे हैं. जी हाँ, आज हम आपको अप्सरा घृताची के बारे में बताने जा रहे हैं जिनके जीवन की अद्भुत कहानी है. आइए जानते हैं.
घृताची अप्सरा- घृताची प्रसिद्ध अप्सरा थीं. कहते हैं कि एक बार भरद्वाज ऋषि की तपस्या भंग करने के लिए इंद्र ने इसे भेजा था. भारद्वाज गंगा स्नान कर अपने आश्रम की ओर लौट रहे थे. तभी उनकी नजर घृताची पर पड़ी जो नदी से स्नान कर बाहर निकल रही थी. भीगे वस्त्रों में उसके कामुक तन और भरे-पूरे अंगों को देखकर भारद्वाज मुनी वहीं रुक गए. उन्होंने अपने नेत्रों को बंद कर खुद को नियंत्रित करने का प्रयास किया लेकिन ऐसा करने में वे असफल रहे. आंखें खोलकर वे उसके रूप और सौंदर्य को निहारने लगे. कामवासना से पीड़ित भारद्वाज का देखते ही देखते वीर्यपात हो गया था.
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तभी वीर्य को उन्होंने एक द्रोणि (मिट्टी का बर्तन) में रख दिया जिससे द्रोणाचार्य का जन्म हुआ था. एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार यह कश्यप ऋषि तथा प्राधा की पुत्री थीं. पौराणिक मान्यता के अनुसार घृताची ने कई पुरुषों के साथ समागम किया था. दरअसल स्वर्ग का राजा इंद्र इन अप्सराओं को धरती पर ऋषियों की तपस्या भंग करने के लिए भेजा करता था. कहा जाता है कि विश्वकर्मा से भी घृताची के पुत्र हुए थे.
-रुद्राश्व से घृताची को दस पुत्र और दस पुत्रियां उत्पन्न हुई थीं.
-कन्नौज के नरेश कुशनाभ ने इसके गर्भ से सौ कन्याएं उत्पन्न की थीं.
-महर्षि च्यवन के पुत्र प्रमिति ने घृताची के गर्भ से रूरू नामक पुत्र उत्पन्न किया था.
-घृताची की खूबसूरत काया को निहारने मात्र से वेदव्यास ऋषि कामाशक्त हो गए थे जिसके चलते शुकदेव उत्पन्न हुए.
अन्य अप्सराएं : कृतस्थली, प्रम्लोचा, अनुम्लोचा, वर्चा, पूर्वचित्ति, अम्बिका, अलम्वुषा, अनावद्या, अनुचना, अरुणा, असिता, बुदबुदा, चन्द्रज्योत्सना, देवी, घृताची, गुनमुख्या, गुनुवरा, हर्षा, इन्द्रलक्ष्मी, काम्या, कर्णिका, केशिनी, क्षेमा, लता, लक्ष्मना, मनोरमा, मारिची, मिश्रास्थला, मृगाक्षी, नाभिदर्शना, पूर्वचिट्टी, पुष्पदेहा, रक्षिता, ऋतुशला, साहजन्या, समीची, सौरभेदी, शारद्वती, शुचिका, सोमी, सुवाहु, सुगंधा, सुप्रिया, सुरजा, सुरसा, सुराता, उमलोचा, शशि, कांचन माला, कुंडला हारिणी, रत्नमाला, भूषणि आदि.